हनुमानगढ़ के प्रसिद्ध भटनेर अश्व मेले में करोड़ों का हुआ सौदा, देखिए तस्वीरें
Hanumangarh, Rajasthan: उत्तर भारत के प्रसिद्ध 17वें अश्व मेले (Horse Fair) का समापन हो गया. प्रसिद्ध अश्व मेले का आयोजन हनुमानगढ़ जंक्शन के अबोहर बाईपास पर हुआ. इस मेले में प्रमुख रूप से हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश व पुरे राजस्थान से अश्व पालक खरीद फरोख्त के लिए आते हैं. हर साल की तरह इस बार भी ये मेला भटनेर अश्व पलक समिति द्वारा आयोजित करवाया गया. इन 6 दिनों तक चले इस मेले में 4 से 5 करोड़ रुपए की खरीद फरोख्त बताई जा रही है. समापन समारोह में मुख्य अतिथि कलेक्टर रुक्मणि रियार, विशिष्ट अतिथि शहीद मेजर विकास भांभू के पिता भागीरथ भांभू थे. समापन के दौरान मेले में विभिन्न रोमांचकारी प्रतियोगिताएं आयोजित हुई. भटनेर मेले में मारवाड़ी नस्ल का घोड़ा अल्कोहल आकर्षण का केंद्र बना हुआ है.
मारवाड़ी घोड़ी प्रतियोगिता में अमृतसर के सिद्धार्थ गुप्ता की घोड़ियों ने प्रथम व द्वितीय स्थान और लीलांवाली के विजय गोदारा की घोड़ी ने तृतीय, शेरेकां के पवित्र बिश्नोई की घोड़ी ने चतुर्थ और संगरिया के जगप्रीत सिंह की घोड़ी 5वें स्थान पर रही. अश्व मेले में छोटी चाल, बड़ी चाल, दो दांत, लंबा कद, बछेरी, मारवाड़ी ,सबसे सुंदर घोड़ा, सबसे स्टाइलिश घोड़ा, विभिन्न प्रकार की प्रतियोगिताएं करवाई गई. प्रथम स्थान पर रहने वाले घोड़ा-घोड़ी पालक को सम्मानित भी किया गया.
समापन समारोह में अतिथियों ने प्रथम स्थान पर रहे विजेताओं को 31 हजार रुपए नकद और ट्रॉफी, द्वितीय स्थान प्राप्त करने वाले विजेताओं को 21 हजार रुपए नकद, तृतीय स्थान प्राप्त करने वाले विजेताओं को 11 हजार रुपए, चतुर्थ स्थान प्राप्त करने वाले विजेताओं को 5100 रुपए व 5वां स्थान प्राप्त करने वाले विजेताओं को 3100 रुपए नकद और स्मृति चिन्ह दिया. 17 वर्षों से आयोजित हो रहा अश्व मेला अब राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति प्राप्त करने के लिए और भी कोशिश कर रहे हैं, मेले में जहां पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, गुजरात, छत्तीसगढ़ से अश्वपालक आते हैं.
40-45 लाख तक के घोड़े बिक चुके
इस बार मेले में 22 लाख की कीमत का घोड़ा भी दिखा. पिछले मेलों की बात करें तो 40 लाख 35 लाख तक के घोड़े भी यहां बिक चुके हैं. वहीं समिति संचालकों की मानें तो घोड़ों की कई ऐसी नस्ल भी है जिनकी कीमत करोड़ों की है, जिनके सौदे भी होते हैं.
17 साल से चल रहा है मेला
भटनेर अश्व पालक समिति ने बताया कि मेला पिछले 17 से 20 सालों से लगातार जारी है. उन्होंने एक मेडिकल कैंप के जरिए इस मेले को शुरू किया था. जहां पशुओं का इलाज किया जाता था, धीरे-धीरे यह कैम्प अश्व मेले के रूप में तब्दील हो गया है. जिसमें दूरदराज से पशुपालक पहुंचते हैं, अलग-अलग नस्ल के घोड़े यहां खरीद-फरोख्त के लिए आते हैं. मारवाड़ी, नुकरा यहां सबसे ज्यादा पसंद की जाने वाली वाली नस्ल है. वे प्रयास कर रहे हैं कि इस मेले को राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति मिले. इतना ही नहीं यहां दूसरे देशों से भी कई बार लोग यहां पहुंचे हैं.
प्रशासन का मिला अच्छा सहयोग
इस बार इस मेले में नगर परिषद प्रशासन द्वारा काफी सुविधाएं दी गई. पहले पानी की काफी असुविधा रहती थी, लेकिन इस बार नगर परिषद प्रशासन द्वारा एक बड़ा समर्सिबल लगा कर दिया गया है. अब यहां उचित व्यवस्था की जा रही है. जिससे कि दूरदराज से अश्व पालक यहां पहुंचते हैं. इसके अलावा पशु चिकित्सकों की टीम ने भी सेवाएं दी.
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