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OTT INDIA विशेष : राजस्थान में ‘मिशन पायलट’ फेल !!!

Jaipur : राजस्थान की राजनीति में विधायकों के इस्तीफों का मामला लंबा खिंचता हुआ नजर आ रहा है. इस्तीफे मामले में गहलोत खेमे, कांग्रेस आलाकमान से लेकर विधानसभा में उपनेता प्रतिपक्ष और राजस्थान हाईकोर्ट भी शामिल हो गए हैं. रविवार को जहां गहलोत समर्थक माने जाने वाले 91 विधायकों ने अपने इस्तीफे वापस ले लिए वहीं दूसरी ओर राजस्थान हाईकोर्ट ने उपनेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौड़ की याचिका पर सख्त रुख अपनाया. हाईकोर्ट में सोमवार को विधानसभा अध्यक्ष से 10 दिन में इस्तीफों पर निर्णय कर जवाब पेश करने को कहा है. वहीं विधानसभा अध्यक्ष और सचिव की ओर से जवाब पेश करने के लिए समय मांगा गया था.

राजस्थान के विधायकों ने पिछले साल 25 सितंबर को अपने इस्तीफे विधानसभा अध्यक्ष डॉक्टर सी.पी. जोशी को सौंपे थे और वहीं कोर्ट का सख्त ऐसे समय आया है जब मुख्यमंत्री अशोक गहलोत मौजूदा कार्यकाल में अपना आखिरी और पांचवां बजट पेश करने की तैयारी कर रहे हैं. जानकारों का कहना है कि हाईकमान राजस्थान में सीएम अशोक गहलोत और सचिन पायलट गुट के बीच हालातों को सामान्य कर रहा है और दोनों गुटों के बीच सुलह का फॉर्मूला तैयार हो चुका है.
विधायकों के इस्तीफे वापस लेने के बाद अब राज्य में नेतृत्व परिवर्तन की शंकाओं पर विराम लग गया है और कांग्रेस नेता सचिन पायलट का इंतजार लंबा हो गया है. इसके साथ ही इस्तीफा वापस लेने पर विधायकों ने मुक्त कंठ से मुख्यमंत्री गहलोत की तारीफ की. हालांकि अब इस मामले की अगली सुनवाई 16 जनवरी को होगी.
गहलोत ने फिर चल दिया ‘पासा’
राजस्थान कांग्रेस के विधायकों के इस्तीफे वापस लेने के बाद सरकार के मुख्य सचेतक महेश जोशी ने पत्रकारों से बात करते हुए कहा कि वापसी से “सौहार्द और खुशनुमा माहौल बनेगा. वहीं पिछले महीने नए कांग्रेस राज्य प्रभारी सुखजिंदर सिंह रंधावा के नेतृत्व में चर्चा के बाद, पार्टी ने विधायकों से इस्तीफा वापस लेने को कहा गया था और विधायकों ने आखिरकार उसका पालन किया.
गहलोत खेमे के लिए, अगर आलाकमान की ओर से उन्हें एक बार फिर से सत्ता से हटाने का प्रयास किया जाता तो विधायकों के इस्तीफे सुरक्षित नहीं थे और तब से, यह पूरी तरह से साफ है कि गहलोत, जिन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष पद के पार्टी के आधिकारिक उम्मीदवार होने के बजाय मुख्यमंत्री पद पर बने रहने का विकल्प चुना, उनको कांग्रेस के अधिकांश विधायकों का समर्थन प्राप्त है.
इस्तीफों की वापसी में कानूनी अनिवार्यताओं के अलावा गहलोत की राजनीतिक दृढ़ता दिखाती है जिन्होंने आलाकमान का समय पर पुरजोर विरोध किया. वहीं इस साल के आखिर में होने वाले चुनावों को देखते हुए अब कांग्रेस आलाकमान की यथास्थिति को भंग करने की संभावना नहीं दिखाई देती है. वहीं इस्तीफों की वापसी कांग्रेस विधायकों के बीच अनिश्चितता और आशंका को खत्म करने का काम करेगी.कांग्रेस सूत्रों का कहना है कि इस पूरे मामले में भी आलाकमान एक अलग तरह की पशोपेस में फंसा है जहां इस्तीफों की वापसी के बाद अब कोई बीच का रास्ता निकालने की कोशिश की जा रही है.
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