Parole and Furlough : बलात्कार के केस में 20 साल की सजा काट रहे गुरमीत राम रहीम को तीन सप्ताह की फरलों को मंजूरी मिल गई है। इस दौरान वह 21 दिन के लिए उत्तरप्रदेश में बागपत बरनावा में डेरा सच्चा सौदा आश्रम जाएगा। इससे पहले राम रहीम ने फरलो (Parole and Furlough) के लिए आवेदन किया था। बता दें कि डेरा प्रमुख हरियाणा के रोहतक जिले की सुनारिया जेल में बंद है। आज हम आपको बताएंगे कि पैरोल और फरलो क्या होती है, जिसके जरिए कैदी जेल से बाहर आ सकता है।
आखिर यह पैरोल या फरलो क्या हैं ?
LiveLaw.in के एक यू-ट्यूब वीडियो के मुताबिक पैरोल किसी भी कैदी, सजा पा चुके शख्स या विचारधीन को मिल सकता है। इसकी कुछ जरूरी शर्तें होती हैं। यह किसी भी कैदी को तब दी जा सकती है जब उसकी सजा का एक हिस्सा पूरा हो चुका हो। इसके साथ ही उस कैदी का व्यवहार का भी देखा जाता है।
इसके साथ ही अगर किसी कैदी की मानसिक स्थिति बिगड़ जाती है या उसके परिवार में कोई शुभ काम या अनहोनी हो जाती है तो उसे पैरोल (Parole and Furlough) पर कुछ दिन की छूट दी जा सकती है। विशेष स्थिति में जेल अधिकारी ही सात दिन तक की पैरोल अर्जी को मंजूर कर सकते हैं।
अगर कोई भी अपराधी ऐसा व्यक्ती है है जो जेल से बाहर निकलने के बाद समाज के लिए खतरा साबित हो सकता है तो उसे पैरोल पर नहीं छोड़ा नहीं जाता है। इसका फैसला अधिकारी ही करते है। आमतौर पर पैरोल (Parole and Furlough) पर मौत की सजा पाए दोषियों, आतंकवादियों को छूट नहीं दी जाती है। अनलॉफुल एक्टिविटि प्रिवेंशन एक्ट के तहत सजा काट रहे अपारधियों को भी पैरोल नहीं दी जाती है। बता दें कि पैरोल के दौरान कैदी को सभी नियमों का पालन करना अनिवार्य होता है।
अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग नियम
पैरोल के लिए अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग नियम हो सकते है। जो भी कैदी पैरोल पर रिहा होता है उसके समय-समय पर नजदीकी थाने में हाजिरी देनी होती है। इसके साथ ही पैरोल उन्हीं कैदियों को दिया जाता है जिनका वाकई बाहर की दुनिया में कुछ काम है। अगर ऐसा नहीं है तो उन्हें पैरोल देने से मना कर दिया जाता है।
फरलो क्या होती है?
LiveLaw.in के वीडियो के मुताबिक फरलो (Parole and Furlough) का मतलब कैदियों को दी जाने वाली एक छूट ही है। यह कैदी को व्यक्तिगत, पारिवारिक या सामाजिक जिम्मेदारियां पूरी करने के लिए दी जाती है। एक कैदी फरलो के लिए एक साल में तीन बार आवेदन कर सकता है। जेल में उसका व्यवहार कैसा है, इसके अनुसार ही सरकार इसे मंजर और नमंजूर कर सकती है। इसके लिए भी अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग कानून है।
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