Uttarakhand Tunnel Rescue : सिलक्यारा टनल में फंसे श्रमिकों को 17 दिनों के बाद 18वें दिन सफलतापूर्वक बाहर निकाल लिया गया है। इस दौरान रेस्क्यू टीम को कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ा। लेकिन टीम के हौसलों के सामने सभी दिक्कतें साफ होती चली गई। सभी श्रमिकों को चिन्यालीसौड़ के एक अस्पताल में भर्ती कराया गया है और अभी तक मिली जानकारी के अनुसार सभी मजदूर स्वस्थ है। लेकिन जरा सोचिए कि 17 दिनों तक टनल (Uttarakhand Tunnel Rescue) में फंसे श्रमिक कर क्या रहे थे तो चलिए जानते है कि 17 दिनों की दिनचर्या के बारे में..
लगता है नई जिंदगी मिल गई..
सोचिए आप एक ऐसी जगह पर फंस गए है जहां कभी भी हवा खत्म हो सकती है और आप के ऊपर मौत का साया लगातार मंडरा रहा है तो शायद ही आप अपने आपको ऐसी स्थिति में शांत रख सकेंगे। लेकिन अगर मन में उम्मीद हो और आपको भरोसा हो की आपको बचाने के लिए प्रयास किया जा रहा है तो जीने का हौसला खुद ब खुद आ जाता है। झारखंड के खूंटी के रहने वाल चमरा ओरांव बताते है कि जब वह टनल (Uttarakhand Tunnel Rescue) मे फंसे हुए थे तो वह पानी के नेचरुल स्त्रोत से नहा रहे थे, फोन पर लूडो खेल रहे थे और इलायची युक्त चावल खा रहे थे। उन्होंने आगे बताया कि 28 नवंबर की रात जब उन्होंने खुली हवा में सांस ली तो उन्हें लगा जैसे दूसरी जिंदगी मिल गई हो। उन्होंने इसका पूरा श्रेय रेस्कयू टीम को दिया है।
ऐसी रहती थी मजदूरों की दिनचर्या
ओरांव बताते है कि 12 नवंबर को जब वह सुरंग में काम कर रहे थे कि तभी अचानक उन्हें जोरों से आवाज आई जैसे ही उन्होंने देखा तो मलबा गिरने लगा था। इसके बाद वह बाहर निकलने के लिए भागे लेकिन तब तक काफी देर हो चुकी थी। अभी तक ओरांव को पता चल चुका था कि वह अब इस टनल (Uttarakhand Tunnel Rescue) में बुरी तरह से फंस चुके है और न ही उनके पास कुछ खाने-पीने के लिए है और न ही कुछ अन्य जरूरी सामान। उन्होंने आगे बताया कि हम सब बस भगवान से प्रार्थाना कर रहे है।
इसके बाद उन्होंने बताया कि जब 24 घंटे बाद उन्हें इलायची युक्त चावल मिला तो उनकी जान में थोड़ी जान आई। इसके बाद उन्हें विश्वास हो गया कि कोई न कोई उनकी मदद के लिए बाहर आ गया है। इसके बाद सभी मजदूरों में खुशी की लहर दौड़ गई थी। ओरांव ने बताया कि इतने दिनों तक बाहर निकलने की उम्मीद कायम रखना और समय काटना काफी मुश्किल हो रहा था।
उन्होंने बताया कि उनके पास जो मोबाइल था वह उसमें लूडो खेल कर टाइम पास कर रहे थे लेकिन नेटर्वक की वजह से किसी से भी बात नहीं कर पा रहे थे। उन्होंने आगे बताया कि नहाने के लिए वह पानी के नेचुरल स्त्रोत का प्रयोग कर रहे थे और शौच के लिए सारे मजदूरों ने मिलकर एक जगह निश्चित तय करके रखी थी।
आगे देखते है कि क्या करेंगे
झारखंड के ही रहवे वाले विजय होरो बताते है कि अब वह अपने राज्य झारखंड से कहीं बाहर काम करने के लिए कहीं नहीं जाएंगे। विजय के भाई रॉबिन कहते है कि हम लोग पढ़े लिखे है इसलिए अब अपने राज्य में ही कोई न कोई काम खोज लेंगे। अगर बाहर जाने की नौबत आ भई गई तो कोई कम खतरे वाली नौकरी करेंगे। तीन बच्चों के पिता ओरांव कहते हैं कि घर वाले उनका इंतजार कर रहे हैं। वो अच्छे हैं, भगवान पर भरोसा था और वहीं से शक्ति मिल रही थी। हमें यकीन था कि सुरंग में कुल 41 लोग फंसे हुए हैं कोई ना कोई बचाने के लिए जरूर आएगा।
ओरांव से जब यह पूछा गया कि क्या वो दोबारा काम पर वापस लौटेंगे तो उनका जवाब था कि देखिए 18 हजार रुपए कमाता हूं, यह तो समय ही बताएगी कि वो वापस लौटेंगे या नहीं। हमारे राज्य यानी झारखंड से कुल 15 मजदूर फंसे हुए थे।
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