खेत से घर तक पहुंचने में दस गुना महंगा हो जाता है यह सुपरफूड

अमेरिका का सुपर फूड किनोवा इन दिनों राजस्थान में भी किसानों की पसंद बनता जा रहा है। वैसे तो प्रदेश के कई जिलों में इसकी खेती हो रही है लेकिन प्रतापगढ़, चित्तौड़गढ़ जिले में पिछले दो साल से किसानों का रुझान तेजी से बढ़ा है। कम खर्च में अच्छी पैदावार और बेहतर दाम के चलते किसान इसे पसंद करने लगे हैं। हांलाकि इस इलाके में प्रोसेसिंग यूनिट नहीं होने के कारण किसानों को आसपास की मंडियों का रुख करना पड़ता है। मंडियों में साढ़े तीन से पांच हजार रुपए क्विंटल तक बिकने वाला किनोवा बाजार में 300 से 500 रुपए किलो तक बिकता है। इसे किनवा और क्विनोवा जैसे नामों से भी जाना जाता है।

दो साल से बढ़ रहा रुझान

चित्तोड़गढ़ में कृषि विभाग के उपनिदेशक बद्रीलाल जाट बताते हैं कि जिले में करीब दस साल पहले किनोवा की खेती शुरु हुई थी। बीच में दाम कम मिलने के कारण इसकी तरफ रुझान कम हुआ था लेकिन पिछले दो सालों से रेट ठीक मिलने के कारण पैदावार बढ़ रही है। फिलहाल 3500 से 4000 प्रति क्विंटल तक दाम मिल रहे हैं। जिले में बड़ीसादड़ी, भदेसर आदि इलाकों में 150 से 200 हैक्टेयर में किनोवा की खेती हो रही है। इसकी खेती को बढ़ावा देने के लिए सरकार किसानों को मिनी किट बांटने के साथ राज्य बीज निगम के माध्यम से बीज बाय बैक भी कर रही है।

प्रोसेसिंग यूनिट नहीं होने से भेजते हैं बाहर

बद्रीलाल बताते हैं कि किनोवा को प्रोसेसिंग की जरूरत होती है। जोधपुर और पाली में प्रोसेसिंग यूनिट लगी हैं, इसलिए माल वहां भेजा जाता है। इसके अलावा आंध्रप्रदेश, कर्नाटक और तमिलनाडु भी भेजा जाता है। किनोवा की खेती दो-तीन पानी में ही तैयार हो जाती है और लागत भी कम है इसलिए चित्तौड़ के अलावा प्रतापगढ़, पाली, सिरोही आदि जिलों में भी इसकी खेती हो रही है।

कृषि विज्ञान केंद्र प्रतापगढ़ के डा. योगेश कनोजिया बताते हैं कि इसके बीज पर एक परत होती है जो स्वाद में कड़वी होती है। इसलिए इसे सीधे नहीं खाया जा सकता है। प्रोसेसिंग प्लांट में इस परत को हटाने के बाद ही इसका उपयोग हो सकता है। प्रोसेसिंग में करीब 20 फीसदी की छीजत होती है, यानि 100 किलो किनोवा प्रोसेसिंग के बाद 80 किलो रह जाता है। प्रोसेसिंग की लागत 100 रुपए प्रति किलो तक पड़ती है। उदयपुर में भी इसका प्लांट लगा है, जहां किसान अपनी फसल भेजते हैं। प्रतापगढ़ में ही प्लांट लग जाए तो किसानों को फायदा होगा।

कम खर्च की फसल

प्रतापगढ़ में किनोवा की खेती करने वाले किसान पवन धाकड़ बताते हैं कि यह कम मेहनत की फसल है। केवल 2-3 पानी की जरूरत होती है जबकि खाद और दवा ज्यादा नहीं लगती है। सर्दी में पाला भी इसे ज्यादा नुकसान नहीं पहुंचाता है। इसीलिए उनके कनाड़ गांव में आज सौ से ज्यादा किसान इसकी खेती कर रहे हैं। दो साल पहले एक किसान के पास एक बीघा में 7 क्विंटल की पैदावार देखी तो उससे बीज लेकर वे भी इसकी खेती करने लगे। पहले किसान फसल निंबाहेड़ा की मंडी में ले जाते थे लेकिन अब प्रतापगढ़ जिले की अरनोद मंडी में भी खरीदार मिल जाते हैं फिर भी कई किसान पास ही नीमच (मध्यप्रदेश) की मंडी में जाते हैं, जहां 5000 से 5500 रुपए क्विंटल तक दाम मिल जाते हैं।

पाला पड़ने पर भी नुकसान ज्यादा नहीं

अरनोद के किसान भंवरलाल कुमावत ने बताया कि उन्होंने पहली बार पांच बीघा में फसल बोई है। फिलहाल इसकी कटाई चल रही है। फसल की थ्रेसिंग की गई तो 6 किवंटल बीघा तक औसत रही। अभी किनवा का बाजार भाव साढ़े तीन से चार हजार रुपए प्रति किवंटल चल रहा है। प्रतापगढ़ जिले में सर्दी में इसकी बुवाई अधिक की जाने लगी है। अधिक पैदावार के लिए रात में सर्दी व दिन में अधिक तापमान की आवश्यकता होती है। इस फसल में विशेष देखरेख की जरूरत नहीं होती है। यह सामान्य फसल की तरह है। इसमें सूखा, पाला सहन करने की क्षमता होती है। साथ ही परम्परागत फसलों से अधिक आय प्राप्त की जा सकती है।

गेहूं, दाल, चावल जैसा किनोवा

किनोवा खासकर दक्षिण अमेरिका में पाया जाता है। इसके बीज ओट्स और गेहूं की तरह गोल लेकिन लाल, भूरे और काले होते हैं। किनोआ के बीज चिया से थोड़े बड़े होते है। इसका उपयोग गेहूं, चावल और दाल की तरह ही किया जाता है। इसके दाने से आटा, दलिया बनाया जाता है। आटे के कई तरह के व्यंजन बनते हैं। गेहूं व मक्का का आटा मिलाकर ब्रेड, बिस्किट, पास्ता आदि बनाए जा सकते है।

सुपरफूड है किनोवा

किनोवा को विदेश में सुपर फुड कहा जाता है क्योंकि इसमें प्रोटीन की अधिकता के साथ कैल्शियम और लोहे जैसे खनिज तत्व पाए जाते हैं। किनोवा में गेहूं से लगभग डेढ़ गुणा अधिक मात्रा में कैल्शियम पाया जाता है। इसकी पत्तियों में पर्याप्त मात्रा में विटामिन सी व ई पाया जाता है। इसलिए पत्ते भी सब्जी के रूप में भी उपयोग लेते हैं। उपमा, डोसा, सूप और सलाद में भी किनोवा का उपयोग होता है। इतने गुण होने के कारण यह कुपोषण के खिलाफ कारगर हथियार हो सकता है। पौष्टिकता के कारण ही इसे शाकहारियों के लिए वरदान कहा जाता है। यह शुगर रोगियों के लिए भी फायदेमंद है। ज्यादातर किनोवा ग्लूटेन फ्री होता है जो ग्लूटेन पीड़ितों के लिए उपयोगी है।