नागौर में विचारधारा नहीं, जाति और जीत ही सब कुछ

जाटलैंड का सम्राट कौन होगा, यह नागौर के वोटर 19 अप्रैल को तय करेंगे। 20वीं सदी के दिग्गज जाट नेता नाथूराम मिर्धा की विरासत और 21वीं सदी के जाट नेता हनुमान बेनीवाल का भविष्य दोनों दांव पर हैं। विचारधारा और दल का मोह न ज्योति मिर्धा को है, न ही हनुमान बेनीवाल को। दोनों को बस एक जीत की दरकार है, अपना वजूद बचाने और दूसरे की राजनीति को खत्म करने के लिए। लगातार दो लोकसभा और फिर विधानसभा चुनाव हार चुकी ज्योति मिर्धा के लिए जीत संजीवनी से कम नहीं होगी। कभी तीन विधायकों व एक सांसद वाली आरएलपी के लिए भी जीत अमृत जैसी ही होगी।

वर्चस्व की लड़ाई

नागौर लोकसभा सीट पर ज्योति मिर्धा और हनुमान बेनीवाल की सियासी रंजिश जाटों के इस गढ़ में खुद को बड़ा जाट नेता साबित करने की है। ज्योति मिर्धा उन्हीं नाथूराम मिर्धा की पोती हैं जो नागौर सीट से 6 बार सांसद रह चुके हैं। चार बार कांग्रेस से, एक बार कांग्रेस (यू) से और एक बार जनता दल से। फिर भी नागौर में कांग्रेस का मतलब मिर्धा परिवार ही होता था। भाजपा ने कांग्रेस के वर्चस्व को तोड़ने के लिए नाथूराम मिर्धा के पुत्र भानुप्रकाश मिर्धा को टिकट देकर पहली बार नागौर में जीत हासिल की थी। इस बार भाजपा ने नाथूराम की पोती पर दांव लगाया है। ज्योति 2009 में कांग्रेस के टिकट पर सांसद बन चुकी हैं, लेकिन उसके बाद नागौर की राजनीति में हनुमान बेनीवाल उनके आड़े आ गए। 2014 में निर्दलीय खड़े हुए हनुमान ज्योति को भी ले डूबे तो 2019 में एनडीए में शामिल होकर ज्योति को हराया। तीसरी बार दोनों आमने सामने हैं।

हनुमान ने विधानसभा चुनाव में ही बिछा दी थी बिसात

कांग्रेस से गठबंधन की तैयारी बेनीवाल ने विधानसभा चुनाव के वक्त ही कर ली थी। नागौर में ज्योति मिर्धा के खिलाफ आरएलपी ने अपना प्रत्याशी नहीं उतारा था, जिसका फायदा कांग्रेस के हरेंद्र मिर्धा को हुआ। लाडनूं सीट आरएलपी ने चंद्रशेखर रावण की आजाद समाज पार्टी को दे दी थी, जिसके उम्मीदवार ने एन वक्त पर नाम वापस लेकर कांग्रेस के मुकेश भाकर की जीत आसान कर दी थी। कुछ ऐसे ही समीकरण परबतसर और मकराना में भी रहे। अब ये चारों कांग्रेस विधायक बेनीवाल के साथ हैं और नामांकन रैली में भी मौजूद रहे। हनुमान ने जिन्हे वोट दिलाए थे, अब उनकी बारी है वोट दिलाने की।

ज्योति के लिए आखिरी मौका

 मिर्धा परिवार की विरासत की सबसे बड़ी दावोदार ज्योति मिर्धा के लिए जीत बहुत जरूरी है। वे कांग्रेस के टिकट पर पिछले दो लोकसभा चुनाव लगातार हार चुकी हैं। हनुमान बेनीवाल के एनडीए से अलग होने के बाद भाजपा को भी नागौर में बड़े चेहरे की जरूरत थी। विधानसभा चुनाव से पहले ज्योति जब दलबदल कर भाजपा में शामिल हुईं तो उन्होंने तब आरएलपी में भी बड़ी टूट कराई थी। माना जाता है कि 2023 के विधानसभा चुनाव में ज्योति भले ही नागौर सीट से हार गई लेकिन आरएलपी को हनुमान बेनीवाल की एकमात्र सीट तक समेटने में भी ज्यति फैक्टर ने काम किया था। इसीलिए लगातार तीन हार के बावजूद भाजपा ने उन पर भरोसा जताया है।

हनुमान भी अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे

 

हनुमान भी ज्योति की तरह मौके की राजनीति करते रहे हैं। वक्त जरूरत के हिसाब से उनके साथी बदल जाते हैं। 2008 में भाजपा के टिकट पर विधानसभा पहुंचे, तो 2013 में निर्दलीय विधायक बने। भाजपा में रहते हुए तब वसुंधरा राजे के विरोधी हो गए, जब राजस्थान में भाजपा का मतलब ही वसुंधरा था। भाजपा के ही दूसरे वसुंधरा विरोधी नेता किरोड़ी लाल मीणा के साथ मिलकर तीसरी ताकत बनने की नाकाम कोशिश की।
2019 में भाजापा से हाथ मिलाकर आरएलपी के टिकट पर नागौर से लोकसभा सांसद बने। कृषि बिल के विरोध में किसान आंदोलन के दौरान एनडीए से बाहर आ गए। पिछली सरकार में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से मुधर संबंधों के आरोप लगते रहे। सचिन पायलट ने गहलोत के खिलाफ विद्रोह किया तो बेनीवाल ने पायलट को अपने साथ आने का न्योता दिया। इस बार गहलोत बेनीवाल की आरएलपी से गठबंधन करना चाहते थे। इलाके के जाट नेता पूर्व मंत्री हरीश चौधरी, दिव्या मदेरणा विरोध में थे लेकिन फिर भी कांग्रेस ने नागौर सीट बेनीवाल को दे दी।

 

कांग्रेस और मिर्धा परिवार का इतिहास मजबूत

नागौर लोकसभा सीट से कांग्रेस 11 बार जीत चुकी है जबकि भाजपा को तीन बार जीत हासिल हुई। पिछली बार भाजपा के समर्थन से आरएलपी के हनुमान बेनीवाल जीते थे। इस सीट पर मिर्धा परिवार का वर्चस्व रहा है। मिर्धा परिवार भी यहां से 8 बार जीत चुका है। नाथूराम मिर्धा 6 बार, उनके पुत्र भानुप्रकाश एक बार और नाथूराम की पोती व भानुप्रकाश की भतीजी ज्योति मिर्धा एक बार चुनाव जीत चुके हैं।

नागौर लोकसभा की 8 सीटों में चार विधानसभा सीटों लाडनूं, परबतसर, मकराना और नागौर पर कांग्रेस का कब्जा है। भाजपा ने जायल औऱ नावां सीटें जीती थीं, जबकि खींवसर में आरएलपी के हनुमान बेनीवाल औऱ डीडवाना में भाजपा के बागी यूनुस खान ने निर्दलीय जीत हासिल की थी।

जाट जिसके साथ उसकी राह आसान

संसदीय क्षेत्र में कुल 21 लाख 42 हजार वोटर हैं, जिनमें सबसे बड़ी संख्या जाटों की है। यहां लगभग सवा पांच लाख जाट, चार लाख से ज्यादा एससी और करीब तीन लाख मुस्लिम वोटर हैं। भाजपा को अपने वोट बैंक और मिर्धा परिवार की विरासत पर भरोसा है, तो बेनीवाल को भी जाट समाज में अपने समर्थन और कांग्रेस का सहारा है। बड़ा सवाल यह कि नागौर के मतदाताओं को दो जाटों में से एक को चुनना है। जाट वोट यदि एक तरफा हुए तो फैसला जाट समाज के हाथ में ही होगा।