Political Son's In Campaign

Political Son’s In Campaign: नेता पुत्रों को आ रहा है पसीना, दोपहर में पिताओं की जीत के लिए निकल पड़े हैं युवराज

Political Son’s In Campaign: भोपाल। एमपी में चुनाव की सरगर्मियां तेज हो गई हैं, लेकिन इस बीच नेता पुत्र भी काफी एक्टिव दिख रहे हैं , कोई मैदान में अपने पिता के लिए वोटर्स के बीच है, तो कोई मंदिर जाकर अपने पिता की जीत का आशीर्वाद मांग रहा है। एमपी की सियायत में इस वक्त दो चेहरों पर काफी नजर है। खासयित ये है कि एक केंद्रीय मंत्री का बेटा है, तो दूसरा पूर्व मुख्यमंत्री का, दोनों ही एसी वाले कमरे से निकलकर मैदान में पसीना बहा रहे हैं।

महाराजा और पूर्व सीएम के बेटे का जोर

एमपी के दो चेहरे काफी चर्चित हैं। एक पूर्व सीएम शिवराज सिंह चौहान तो दूसरे केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया हैं। दोनों ही काफी एक्टिव और जनता के चहेते माने जाते हैं। सिंधिया की वजह से ही 2019 में मध्यप्रदेश की कांग्रेस सरकार गिरी थी और बीजेपी सत्ता में वापिस आई। लेकिन अब इनके बेटे भी एसी से निकलकर अपने पिताओं के लिए वोट मांगने चिलचिलाती धूप में पसीना बहा रहे हैं। युवाओं में भी इनका अच्छा खासा क्रेज देखने को मिल रहा है। शिवराज मामा के बेटे कार्तकेय चौहन चुनाव प्रचार में पूरी तरह घुलमिल गए हैं।
प्रचार के दौरान कार्तिकेय चौहान ने रास्ते में घायल युवक देखा तो कार से उतरकर खुद उसे इलाज के लिए नजदीक के अस्पताल मे ले गए। वहीं, महाराजा वंश के ज्योतिरादित्य सिंधिया के बेटे महाआर्यन ने भी चुनावी मोर्चा संभाल लिया है। वे उम्र में काफी कम है और अभी उतने परिपक्व भी नहीं है। लेकिन इनका क्रेज काफी है। महाआर्यमन के बयानबाजी का तरीका उनके पिता की तरह ही है।

महाआर्यमन पिता से सीख रहे राजनीतिक बारीकियां

महाआर्यमन सिंधिया ने कहा कि, उज्जैन भी उनकी रियासत रही है। उन्होंने महाकाल से जनता की खुशहाली और पापा की जीत के लिए भी आशीर्वाद मांगा। बता दें कि गुना संसदीय सीट से सिंधिया परिवार चुनाव लड़ता रहा, लेकिन 2019 में सिंधिया को यहां से बीजेपी ने पटखनी दी थी। इससे सिंधिया और उनके परिवार को एक तगड़ा झटका लगा था।

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सिंधिया के चलते गिरी थी कमलनाथ सरकार

साल 2018 में जनता ने कमलनाथ को आशीर्वाद दिया और कांग्रेस की सरकार सत्ता में आई। कमलनाथ को मुख्यमंत्री बनाया गया लेकिन सिंधिया को दरकिनार कर दिया गया। सिंधिया समर्थक उन्हें प्रदेश अध्यक्ष बनाने की मांग कर रहे थे, जो कमलनाथ ने नहीं मानी। इसके बाद सिंधिया ने अपना पासा खेला और बीजेपी में शामिल हो गए। ऐसा कहा जाता है कि दिग्विजय सिंह और कमलनाथ की जुगलबंदी की वजह से ही सिंधिया प्रदेशाध्यक्ष नहीं बन सके। दिग्विजय सिंह नहीं चाहते थे कि सिंधिया का कद बड़े, लिहाजा सिंधिया को दरकिनार कर दिया गया।

आपरेशन लोटस के तहत एमपी में खिला कमल

साल 2018 में जब ऑपरेशन लोटस शुरू हुआ तो सिंधिया का रोल भी सामने दिखा। उन्होंने अपने 22 विधायकों के साथ बीजेपी का दामन थाम लिया, जिसमें सिंधिया समर्थक मंत्री भी कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में शामिल हो गए। साल 2019 में ही कमलनाथ की सरकार सिंधिया के चलते गिर गई।