मंदिर के शिखर पर चढ़ा शख्स
सूत्रों के अनुसार, यह घटना देर शाम की है जब श्रद्धालु मंदिर के दर्शन के लिए इंतजार कर रहे थे। अचानक एक व्यक्ति ने मंदिर के शिखर पर चढ़कर सभी को हैरान कर दिया। इस घटना का वीडियो भी सोशल मीडिया पर वायरल हो गया है। व्यक्ति खुद को छत्रपुर, ओडिशा का निवासी बता रहा है और उसने दावा किया है कि वह 1988 से इस मंदिर में आ रहा है। उसकी एक मन्नत पूरी हुई थी और वह निलचक्र को छूकर प्रणाम करना चाहता था, इसीलिए वह शिखर तक पहुंच गया।
सुरक्षाकर्मियों ने समय पर कार्रवाई की
जब सुरक्षा कर्मियों को इस व्यक्ति के शिखर पर चढ़ने की जानकारी मिली, तो उन्होंने तुरंत उसे नीचे उतारा और पुलिस के हवाले कर दिया। फिलहाल, पुलिस इस मामले की गहन जांच कर रही है और यह पता लगाने की कोशिश कर रही है कि सुरक्षा में इतनी बड़ी चूक कैसे हुई। लोगों का कहना है कि मंदिर के चारों ओर सुरक्षा का कड़ा घेरा होता है और ऐसे में यह घटना बेहद चौंकाने वाली है।
धरती पर बैकुंठ है जगन्नाथ मंदिर
पुरी स्थित जगन्नाथ मंदिर को पुराणों में धरती का बैकुंठ माना गया है, क्योंकि यहाँ भगवान श्रीकृष्ण हमेशा मौजूद रहते हैं। इस मंदिर की विशेषता है कि यहां की सबर जनजाति भगवान श्रीकृष्ण को अपना अराध्य मानती है, और इसीलिए यहां भगवान विष्णु का रूप अन्य मंदिरों की तुलना में थोड़ा अलग नजर आता है।
यह मंदिर वैष्णव सम्प्रदाय का महत्वपूर्ण स्थल है और इसकी स्थापना 1150 ईस्वी में गंग राजवंश के शासनकाल के दौरान की गई थी। मंदिर के गर्भगृह में भगवान जगन्नाथ, बलभद्र, और सुभद्र की मूर्तियां स्थापित हैं और इसके चारों प्रवेश द्वारों पर हनुमान जी की मूर्तियां हैं। मंदिर के शिखर पर लगा झंडा हमेशा हवा की विपरीत दिशा में लहराता है, जो इसकी खासियत है।
हवा का अनोखा रूख
जगन्नाथ मंदिर की छत पर लहराते ध्वज का चमत्कारपूर्ण पहलू है कि यह हमेशा हवा के विपरीत दिशा में लहराता है। सामान्यतः हवा दिन में समुद्र से धरती की ओर और शाम को धरती से समुद्र की ओर बहती है, लेकिन इस मंदिर में हवा की दिशा उलटी होती है। इसके अलावा, मंदिर के सुदर्शन चक्र को आप परिसर में कहीं से भी देख सकते हैं क्योंकि यह हर कोण से दिखाई देता है।
प्रसाद की अनोखी प्रक्रिया
मंदिर का प्रसाद बहुत ही अनोखे तरीके से तैयार किया जाता है। सात बर्तन एक-दूसरे पर रखे जाते हैं और लकड़ी के चूल्हे पर पकाए जाते हैं। इसमें सबसे ऊपर रखा बर्तन सबसे पहले पकता है और फिर नीचे के बर्तन में रखी सामग्री पकती है। इस विशाल रसोई में भगवान जगन्नाथ के महाप्रसाद को तैयार करने के लिए लगभग 800 लोग मिलकर काम करते हैं।
प्रसाद की कभी कम न होने वाली मात्रा
मंदिर में आए भक्तों के लिए प्रसाद कभी भी कम नहीं पड़ता। कहा जाता है कि यहां के मुख्य गुंबद की छाया दिन में जमीन पर नहीं पड़ती। इसके साथ ही, चाहे श्रद्धालुओं की संख्या कितनी भी बढ़ जाए, प्रसाद की मात्रा कभी घटती नहीं है।
समुद्र की आवाज का रहस्य
मंदिर के अंदर प्रवेश करते ही समुद्र की लहरों की आवाज सुनाई नहीं देती, लेकिन जैसे ही आप मंदिर के प्रांगण से बाहर निकलते हैं, समुद्र की लहरों की आवाज स्पष्ट सुनाई देती है। इस चमत्कारी घटना को सुबह और शाम के समय अधिक स्पष्टता से महसूस किया जा सकता है।
ध्वज बदलने की अनूठी मान्यता
भगवान जगन्नाथ के मंदिर में हर दिन ध्वज बदला जाता है, जो भारत के किसी अन्य मंदिर में नहीं होता। मान्यता है कि अगर एक दिन भी ध्वज नहीं बदला गया, तो मंदिर को 18 वर्षों के लिए बंद करना पड़ेगा।
रथ यात्रा की विशेषता
भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा तभी शुरू होती है जब वे पूरी तरह स्वस्थ होते हैं। ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा से अमावस्या तक भगवान बीमार रहते हैं और इन 15 दिनों में उनका इलाज शिशु की तरह किया जाता है। इस दौरान भगवान जगन्नाथ अपने भाई और बहन के साथ गुंडीचा मंदिर जाते हैं, जिसे भगवान की मौसी का घर माना जाता है।
जन्म स्नान की महत्ता
भगवान जगन्नाथ के जन्मदिन पर भी एक विशेष उत्सव मनाया जाता है। इस दिन भगवान जगन्नाथ, सुभद्र और बलभद्र को पारंपरिक तरीके से शुद्ध जल से स्नान कराया जाता है, जिसमें 108 घड़े जल का उपयोग होता है। यह परंपरा राजा इंद्रद्युम्न के समय से चली आ रही है।