कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया को MUDA जमीन घोटाले के मामले में कर्नाटक हाई कोर्ट से बड़ा झटका लगा है। कोर्ट ने राज्यपाल द्वारा जांच जारी रखने के आदेश को बरकरार रखते हुए सिद्धारमैया की याचिका खारिज कर दी है। यह फैसला प्रदेश की राजनीति में हलचल मचा सकता है, खासकर जब से बीजेपी इस मुद्दे को लेकर कांग्रेस सरकार पर हमलावर है।
सिद्धारमैया ने हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी, जिसमें उन्होंने तर्क दिया था कि राज्यपाल के पास जांच के आदेश देने का अधिकार नहीं है। लेकिन हाई कोर्ट ने इस तर्क को अस्वीकार करते हुए कहा कि इस मामले में उचित जांच की आवश्यकता है ताकि सही तथ्य सामने आ सकें। अदालत ने स्पष्ट किया कि राज्यपाल ने अपने अधिकार क्षेत्र में रहकर ही यह आदेश पारित किया है।
प्रदेश में उबाल लाने वाला मुद्दा
सीएम सिद्धारमैया की याचिका खारिज होने के बाद, कर्नाटक की राजनीति में इस मुद्दे पर उबाल आना तय माना जा रहा है। बीजेपी लगातार कांग्रेस सरकार पर भ्रष्टाचार के आरोप लगा रही है, और अब अदालत के फैसले ने इस मामले को और अधिक जटिल बना दिया है। पार्टी के नेताओं ने इस फैसले को एक बड़ा अवसर माना है, जिससे वे कांग्रेस को घेर सकते हैं।
MUDA लैंड स्कैम मामले में जांच का आदेश देने का मतलब है कि अब इस घोटाले से जुड़े सभी तथ्य सामने आ सकेंगे। यह मामला कर्नाटक की राजनीतिक छवि को प्रभावित कर सकता है, और इससे सरकार की विश्वसनीयता पर भी सवाल उठ सकते हैं। सरकार को इस मामले को गंभीरता से लेते हुए उचित कदम उठाने की आवश्यकता है।
सीएम की प्रतिक्रिया
सीएम सिद्धारमैया ने अभी तक इस फैसले पर कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं दी है, लेकिन उनके कार्यालय से यह संकेत मिल रहे हैं कि वे इस फैसले को चुनौती देने की कोशिश करेंगे। सिद्धारमैया के करीबी सूत्रों के अनुसार, वे अब 25 सितंबर 2024 को डबल बेंच के सामने अपील करने की तैयारी कर रहे हैं। उनकी टीम का कहना है कि इस पिटीशन की सुनवाई पूरी होने तक निचली अदालत में सुनवाई पर रोक लगाने की अपील की जा सकती है। यदि डबल बेंच याचिका को सुनवाई के लिए स्वीकार कर लेती है, तो यह सिद्धारमैया के लिए राहत का एक मौका हो सकता है।
सीएम कैंप ने यह स्पष्ट कर दिया है कि अगर डबल बेंच से भी राहत नहीं मिली, तो वे सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाएंगे। सिद्धारमैया ने कहा है कि वे तब तक इस्तीफा नहीं देंगे जब तक सुप्रीम कोर्ट का फैसला नहीं आ जाता। यह स्थिति कर्नाटक की राजनीति में और भी तनाव बढ़ा सकती है।
सिद्धरामैया की याचिका: गवर्नर के आदेश को चुनौती
कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धरामैया ने 17 अगस्त को गवर्नर द्वारा जारी आदेश को चुनौती दी थी। इस आदेश में भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम की धारा 17A के तहत जांच की अनुमति और भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) की धारा 218 के अनुसार अभियोजन की स्वीकृति दी गई थी।
क्या है धारा 17A?
धारा 17A उन अपराधों की जांच से संबंधित है, जो सार्वजनिक अधिकारियों द्वारा आधिकारिक कार्यों के दौरान किए गए अनुशंसाओं या निर्णयों से जुड़ी होती हैं। सिद्धरामैया ने अपनी याचिका में यह दावा किया कि गवर्नर का स्वीकृति आदेश बिना उचित विवेचना के जारी किया गया है, जिससे विधिक आवश्यकताओं का उल्लंघन होता है।
संवैधानिक सिद्धांतों का उल्लंघन
मुख्यमंत्री ने कहा था कि यह आदेश संवैधानिक सिद्धांतों के विपरीत है, जिसमें संविधान के अनुच्छेद 163 के तहत मंत्रिपरिषद की सलाह भी शामिल है, जो कि बाध्यकारी होती है। उन्होंने यह भी कहा कि यह विवादित आदेश राजनीतिक कारणों से कर्नाटक की निर्वाचित सरकार को अस्थिर करने के प्रयास का हिस्सा है और इसमें दुर्भावना दिखाई देती है।