जम्मू-कश्मीर की राजनीति में होगा बड़ा बदलाव, राज्य को मिल सकता है पहला हिंदू मुख्यमंत्री!
जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनावों की 90 सीटों के परिणाम 8 अक्टूबर को घोषित होने वाले हैं, लेकिन भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने पहले ही सरकार बनाने की तैयारियां शुरू कर दी हैं। पार्टी की निगाहें इस बार घाटी में अपने आधार को मजबूत करने और पहली बार श्रीनगर में कमल खिलाने पर हैं। इस दिशा में बीजेपी ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी है, जिसमें पार्टी के वरिष्ठ नेता राम माधव मुख्य भूमिका में हैं।
बीजेपी के सूत्रों के अनुसार, इस बार चुनावी माहौल ऐसा बना है कि पार्टी को सरकार बनाने के लिए जरूरी 48 सीटों तक पहुंचना संभव लग रहा है। विभिन्न रिपोर्टों और उप राज्यपाल की टिप्पणियों ने बीजेपी के आत्मविश्वास को और बढ़ा दिया है। चुनावों के दौरान, बीजेपी ने अपने पुराने वादों को याद दिलाते हुए एक सकारात्मक संदेश देने का प्रयास किया है।
पहली बार हिंदू मुख्यमंत्री की संभावना
यदि बीजेपी अपनी रणनीति को सफलतापूर्वक लागू करने में सफल रहती है, तो जम्मू-कश्मीर को उसका पहला हिंदू मुख्यमंत्री मिल सकता है। इससे न केवल बीजेपी के लिए एक महत्वपूर्ण राजनीतिक जीत होगी, बल्कि यह क्षेत्र के लिए भी एक ऐतिहासिक क्षण होगा। पार्टी इस बार जम्मू-कश्मीर में हिंदू बहुल इलाकों में ज्यादा फोकस कर रही है, जिससे उन्हें एक मजबूत समर्थन मिल सके।
1947 से आज तक का सफर
साल 1947 में भारत संघ में शामिल होने के बाद से लेकर 5 मार्च 1965 तक, जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री को प्रधानमंत्री के रूप में संबोधित किया जाता था। न्यायमूर्ति मेहर चंद महाजन, जो जम्मू-कश्मीर के पहले प्रधानमंत्री थे, के बाद सभी प्रधानमंत्री मुस्लिम रहे और घाटी से ही थे। इनमें शेख मोहम्मद अब्दुल्ला, बख्शी गुलाम मोहम्मद, ख्वाजा शम्सुद्दीन, और गुलाम मोहम्मद सादिक शामिल हैं। बाद में, प्रधानमंत्री का पद मुख्यमंत्री में बदल दिया गया और सदर-ए-रियासत (राष्ट्रपति) का नाम राज्यपाल रखा गया।
जनसंख्या और राजनीतिक स्थिति
2011 की जनगणना के अनुसार, जम्मू और कश्मीर में 68.8% मुसलमान हैं, जिनमें से अधिकांश कश्मीर घाटी में रहते हैं, जबकि 28.8% हिंदू हैं, जो अधिकतर जम्मू में रहते हैं। जम्मू में विधानसभा और लोकसभा सीटों पर अक्सर हिंदू प्रत्याशी ही जीतते रहे हैं। जम्मू में बीजेपी, कांग्रेस और कुछ सीटों पर नेशनल कॉन्फ्रेंस का दबदबा है।
बीजेपी के जम्मू नॉर्थ के उम्मीदवार और राज्य उपाध्यक्ष शाम लाल शर्मा ने मतदाताओं से अपील की है कि वे पार्टी के उम्मीदवारों को जिताएं, ताकि जम्मू को अपना पहला डोगरा हिंदू मुख्यमंत्री मिल सके। उन्होंने यह भी कहा कि अगर महाराष्ट्र में एक मुस्लिम मुख्यमंत्री हो सकता है, तो जम्मू-कश्मीर में हिंदू मुख्यमंत्री क्यों नहीं हो सकता, क्योंकि हिंदुओं की आबादी 32% है।
जम्मू के हक में निर्णय
हाल के वर्षों में जम्मू की स्थिति कश्मीर के मुकाबले कमजोर हुई है। जम्मू अब कश्मीर की शीतकालीन राजधानी नहीं रही, और अन्य समस्याओं के कारण यहां के लोग चाहते हैं कि जम्मू का कोई नेता मुख्यमंत्री बने, ताकि उनके हक में फैसले हो सकें।
त्रिशंकु विधानसभा का इतिहास
बीजेपी की रणनीति यह है कि हिंदुओं के वोट बीजेपी और कांग्रेस में बंटने की संभावना है। जम्मू में 43 विधानसभा सीटें हैं, और बीजेपी इस बार अधिकतम सीटें जीतने का प्रयास कर रही है। इतिहास में जम्मू-कश्मीर विधानसभा में त्रिशंकु विधानसभाएं बनी हैं। अगर इस बार भी त्रिशंकु विधानसभा बनती है, तो बीजेपी के सीएम बनने की संभावना ज्यादा होगी, क्योंकि 5 नामित सदस्यों का समर्थन भी उन्हें मिल सकता है।
नए परिसीमन के बाद का परिदृश्य
अब, नए परिसीमन के बाद जम्मू और कश्मीर क्षेत्र लगभग बराबर हो चुके हैं। यदि जम्मू क्षेत्र की सभी 30 हिंदू बहुल सीटों पर बीजेपी या कांग्रेस जीतती है, तो तस्वीर बदल सकती है। बीजेपी यदि 35 सीटें जीतती है, तो उसे उपराज्यपाल के कोटे से 5 विधायकों का समर्थन मिल सकता है।
यदि कांग्रेस को अधिकतर सीटें मिलती हैं, तो हिंदू विधायकों की संख्या मुस्लिम विधायकों के करीब पहुंच जाएगी। ऐसी स्थिति में, कांग्रेस और नेशनल कॉन्फ्रेंस चाहेंगी कि किसी हिंदू को मुख्यमंत्री बनाया जाए, ताकि बीजेपी को मजबूत न होने दिया जा सके।
एलजी करेंगे 5 सदस्यों का मनोनयन
जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनावों के लिए नियम के अनुसार 90 चुने हुए सदस्यों के साथ-साथ 5 सदस्यों का मनोनयन भी किया जाएगा, जिसे जम्मू-कश्मीर के उप राज्यपाल (एलजी) करेंगे। इस प्रक्रिया का विरोध कांग्रेस और अन्य विपक्षी दल कर रहे हैं। कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष रमन भल्ला का कहना है कि इस मनोनयन का असर सरकार के गठन पर पड़ेगा।
5 सदस्य मनोनीत किए जाएंगे
जम्मू-कश्मीर बीजेपी के मुख्य प्रवक्ता सुनील सेठी ने बताया कि विधानसभा के गठन के साथ ही ये 5 सदस्य मनोनीत किए जाएंगे। यह प्रावधान पहले से ही मौजूद है और एलजी 8 अक्टूबर या उसके बाद कभी भी इस संबंध में नोटिफिकेशन जारी कर सकते हैं। नियमों के अनुसार, एलजी 2 महिला और 3 कश्मीरी विस्थापित पंडितों को विधायक के रूप में मनोनीत कर सकते हैं। इन मनोनीत सदस्यों को भी उतने ही अधिकार मिलेंगे, जितने चुने हुए विधायकों को मिलते हैं, और वे सरकार गठन के लिए वोट देने में सक्षम होंगे।
किसी भी पार्टी को पूर्ण बहुमत मिलना मुश्किल
जम्मू-कश्मीर के वरिष्ठ पत्रकार वाहिद भट्ट ने मीडिया से बातचीत में बताया कि इस बार किसी भी पार्टी को पूर्ण बहुमत मिलना मुश्किल लग रहा है। ऐसे में इन 5 विधायकों का मनोनयन बीजेपी के लिए फायदेमंद साबित हो सकता है। अगर बीजेपी 43 के आंकड़े तक पहुंचती है, तो इन 5 सदस्यों की मदद से वह सरकार बनाने के लिए जरूरी 48 के जादुई आंकड़े को हासिल कर सकती है।
भट्ट ने यह भी कहा कि चूंकि इन 5 सदस्यों का मनोनयन एलजी करेंगे, जो केंद्र के प्रतिनिधि हैं, ऐसे में यह संभावना कम है कि मनोनीत सदस्य किसी अन्य पक्ष में खड़े होंगे। केंद्र में बीजेपी की सरकार होने के कारण उनके समर्थन की संभावना और भी बढ़ जाती है।
43 के आंकड़े छूने के लिए बीजेपी का मास्टर प्लान
जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनावों के लिए कुल 90 सीटें हैं, जिनमें से 43 सीटें जम्मू रीजन और 47 कश्मीर रीजन में हैं। बीजेपी की स्थिति जम्मू रीजन में काफी मजबूत है, और पार्टी का दावा है कि इस बार वह सबसे बड़ी पार्टी बनने जा रही है।
बीजेपी की बढ़त और उम्मीदें
2024 के लोकसभा चुनाव में जम्मू रीजन की 29 सीटों पर बीजेपी को बढ़त मिली थी, जिससे पार्टी को इस बार संख्या में बढ़ोतरी की उम्मीद है। इसके अलावा, बीजेपी को घाटी की कुछ सीटों पर भी जीत की आशा है।
निर्दलीय विधायकों से संपर्क
बीजेपी के सूत्रों के अनुसार, पार्टी ने उन निर्दलीय विधायकों से संपर्क साधना शुरू कर दिया है, जो स्थानीय स्तर पर मजबूत स्थिति में हैं। इस काम को खुद बीजेपी के वरिष्ठ नेता राम माधव देख रहे हैं, जिन्होंने 2014 में पीडीपी के साथ सरकार बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
निर्दलीय विधायकों की भूमिका
वरिष्ठ पत्रकार वाहिद भट्ट का मानना है कि इस बार घाटी में कई निर्दलीय विधायकों के जीतने की उम्मीद है, और ये निर्दलीय ही सरकार के किंगमेकर साबित हो सकते हैं। इसलिए बीजेपी और अन्य दल इन निर्दलीय विधायकों को अपने पक्ष में लाने की कोशिश कर रहे हैं।
सरकार बनाने की कवायद
भट्ट के मुताबिक, 8 अक्टूबर को चुनाव के नतीजे आने के बाद सरकार बनाने की कवायद तेज हो जाएगी। यदि बीजेपी अकेले दम पर 30-35 सीटें भी जीत लेती है, तो वह सरकार बनाने की रेस में सबसे आगे होगी।