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सीट शेयरिंग का पेच: महाराष्ट्र और झारखंड में इंडिया गठबंधन की खींचतान, कांग्रेस परेशान

महाराष्ट्र और झारखंड में सीट शेयरिंग न होने की वजह इंडिया गठबंधन में कन्यफ्यूजन की स्थिति बनी हुई है.
महाराष्ट्र और झारखंड में सीट शेयरिंग न होने की वजह इंडिया गठबंधन में कन्यफ्यूजन की स्थिति बनी हुई है.

झारखंड और महाराष्ट्र में चुनावी घोषणा के बाद कांग्रेस के सामने सीट बंटवारे का संकट गहराता जा रहा है। चार दिन से अधिक समय बीतने के बावजूद, कांग्रेस अपने सहयोगी दलों के साथ मिलकर सीटों का बंटवारा नहीं कर पा रही है। झारखंड में पहले चरण के चुनाव की नामांकन प्रक्रिया शुरू हो चुकी है, और समय तेजी से बीत रहा है। दोनों राज्यों में नामांकन की तारीखें नजदीक आ रही हैं, और कांग्रेस के लिए यह स्थिति चिंताजनक बन गई है।

सहयोगी दलों की बेरुखी

सीट शेयरिंग में देरी की मुख्य वजह सहयोगी दलों का कांग्रेस के प्रति बढ़ता असंतोष है। हरियाणा में कांग्रेस की हार के बाद, क्षेत्रीय दल ज्यादा सीटें देने के लिए तैयार नहीं हैं। महाराष्ट्र में कांग्रेस को शिवसेना (उद्धव ठाकरे) और एनसीपी (शरद पवार) के साथ गठबंधन में समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है, जबकि झारखंड में लालू यादव की आरजेडी और हेमंत सोरेन की झामुमो के साथ सीटों का बंटवारा विवादित हो गया है।

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झारखंड में मामला कहां फंस रहा है?

झारखंड में विधानसभा की 81 सीटें हैं, और यहां कांग्रेस को झामुमो की ओर से केवल 27 सीटें देने का प्रस्ताव दिया जा रहा है। पिछली बार कांग्रेस 31 सीटों पर चुनाव लड़ी थी। झामुमो का तर्क है कि वह केवल 27 सीटों पर ही अच्छा प्रदर्शन कर पाई थी। इस बार आरजेडी को 5 और माले को 4 सीटें मिल रही हैं, लेकिन कांग्रेस की मांगों पर सहमति नहीं बन पा रही है।

कांग्रेस का ध्यान दक्षिणी छोटानागपुर की सीटों पर है, जबकि झामुमो पलामू की 4 सीटों को लेकर अड़ा हुआ है। राहुल गांधी की मीटिंग के बाद स्थिति स्पष्ट हो सकती है, लेकिन अब तक किसी भी ठोस समाधान की उम्मीद नहीं दिख रही है।

महाराष्ट्र में भी वही कहानी

महाराष्ट्र में कांग्रेस, एनसीपी और शिवसेना (शिंदे) के साथ मिलकर चुनाव लड़ने की तैयारी में है, लेकिन यहां भी सीट बंटवारे में पेच फंसा हुआ है। राज्य की 288 सीटों में से लगभग 260 पर चर्चा हो चुकी है, लेकिन 28 सीटों पर अभी भी विवाद बना हुआ है। मुंबई की सीटों पर कांग्रेस की दावेदारी है, जबकि विदर्भ में शिवसेना अपने अधिकार को बरकरार रखना चाहती है।

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क्यों फंसा है पेच?

हरियाणा की हार: हरियाणा में कांग्रेस की हार ने क्षेत्रीय दलों के नजरिए को बदल दिया है। अब सहयोगी दल ज्यादा सीटें देने को राजी नहीं हैं।

प्रदेश की नेतृत्व की दिक्कत: कांग्रेस की प्रदेश इकाई में सीटों के बंटवारे को लेकर असहमति बनी हुई है। स्थानीय नेता अपने अनुसार सीटों का बंटवारा चाहते हैं, जिससे स्थिति और जटिल हो गई है।

झारखंड और महाराष्ट्र में वापसी की चुनौती

झारखंड में कांग्रेस की सरकार में शामिल होने के बावजूद, सत्ता में वापसी की चुनौती सामने है। 2019 में कांग्रेस को झारखंड की 16 सीटों पर जीत मिली थी, लेकिन अब उसे अपने प्रदर्शन को दोहराना है। वहीं, महाराष्ट्र में पिछले कई चुनावों से कांग्रेस की स्थिति में सुधार नहीं हो पाया है, और उसे जीतने के लिए नई रणनीति बनानी होगी।

कुल मिलाकर, कांग्रेस के लिए यह समय चुनौतियों से भरा है, और अगर जल्द ही सीट शेयरिंग का विवाद नहीं सुलझा, तो चुनावी रणनीति पर गंभीर असर पड़ सकता है।

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