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गांदरबल हमला: पाकिस्तानी साजिश, लश्कर के मुखौटे के पीछे टीआरएफ का खेल

जानिए लश्कर के मुखौटे TRF के बारे में

टीआरएफ: जम्मू-कश्मीर के गांदरबल जिले में हाल ही में हुए एक आतंकी हमले ने फिर से क्षेत्र में सुरक्षा स्थिति को चर्चा में ला दिया है। सोनमर्ग क्षेत्र में निर्माणाधीण सुरंग की साइट पर हुए इस हमले में 7 लोगों की जान गई, जिनमें एक डॉक्टर और तीन गैर-कश्मीरी मजदूर शामिल हैं। यह हमला तब हुआ जब मजदूर अपने शिविर लौट रहे थे।

खुफिया एजेंसियों के अनुसार, इस हमले के पीछे लश्कर-ए-तैयबा के मुखौटे के रूप में काम कर रहे संगठन ‘द रेजिस्टेंस फोर्स’ (टीआरएफ) का हाथ हो सकता है। टीआरएफ के प्रमुख शेख सज्जाद गुल को इस हमले का मास्टरमाइंड माना जा रहा है, और कहा जा रहा है कि स्थानीय माड्यूल ने इसके लिए तैयारी की थी। पिछले एक महीने से इस समूह ने हमले की जगह की रेकी की थी।

लश्कर-ए-तैयबा की एक शाखा टीआरएफ

14 फरवरी 2019 को पुलवामा में एक बड़ा आतंकी हमला हुआ, जिसके बाद पाकिस्तान वैश्विक स्तर पर बेनकाब हो गया। इस हमले की जिम्मेदारी जैश-ए-मोहम्मद ने ली थी। जब दुनियाभर में पाकिस्तान पर दबाव बढ़ा, तो उसने समझ लिया कि उसे आतंकवादी संगठनों के खिलाफ कुछ ठोस कदम उठाने होंगे। इसके चलते, पाकिस्तान ने एक ऐसा संगठन बनाने की साजिश की, जिससे भारत में आतंक फैलाने के साथ-साथ उसका नाम भी न आए। इस उद्देश्य से, आईएसआई ने लश्कर-ए-तैयबा के साथ मिलकर ‘द रेजिस्टेंस फोर्स’ (टीआरएफ) की स्थापना की।

जानिए लश्कर के मुखौटे TRF के बारे में

कहां से आती है फंडिंग?

‘द रेजिस्टेंस फोर्स’ (टीआरएफ) के उद्देश्य के पीछे फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (FATF) से मिलने वाली मदद को बनाए रखना है। पाकिस्तान पर यह दबाव था कि वह आतंकी फंडिंग के मुद्दे पर अंतरराष्ट्रीय समुदाय को सफाई दे। मनी लॉन्ड्रिंग और आतंकी फंडिंग के कारण FATF ने पाकिस्तान को ग्रे लिस्ट में डाला हुआ है। ऐसे में, फंडिंग को जारी रखने और अंतरराष्ट्रीय आरोपों से बचने के लिए पाकिस्तान को यह दिखाना आवश्यक है कि उसका किसी भी आतंकी संगठन या आतंकवाद से कोई संबंध नहीं है।

टीआरएफ का नाम जानबूझकर ऐसा रखा गया है कि यह एक स्वदेशी आंदोलन की तरह प्रतीत हो, न कि धार्मिक संगठन के रूप में। अब तक सामने आए सभी आतंकी संगठनों के नाम धार्मिक संदर्भ में रहे हैं।

कई बार माइग्रेंट्स पर हमले कर चुका है टीआरएफ 

टीआरएफ पहले भी कई बार माइग्रेंट्स पर हमले कर चुका है। यह संगठन लश्कर-ए-तैयबा की एक शाखा है, जिसे अनुच्छेद-370 को हटाए जाने के बाद ऑनलाइन यूनिट के रूप में स्थापित किया गया। इसका मुख्य उद्देश्य लश्कर जैसे आतंकी संगठनों को कवर देना और भारत में आतंक फैलाना है, जबकि पाकिस्तान का नाम इस पर न आए।

गृह मंत्रालय ने मार्च में राज्यसभा में कहा था कि टीआरएफ एक मुखौटा संगठन है जो लश्कर-ए-तैयबा से जुड़ा है। इसे पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई और लश्कर-ए-तैयबा द्वारा मिलकर बनाया गया था। इसका निर्माण इस उद्देश्य से किया गया कि भारत में आतंकवादी गतिविधियों का प्रभाव पाकिस्तान पर न पड़े।

172 आतंकवादियों को मारा गया

2022 में जम्मू-कश्मीर पुलिस की रिपोर्ट के अनुसार, सुरक्षा बलों के अभियानों में 172 आतंकवादियों को मारा गया, जिनमें से अधिकांश टीआरएफ या लश्कर से जुड़े थे। इसके अलावा, टीआरएफ की भर्ती में भी काफी वृद्धि हुई है, जो पाकिस्तान समर्थित आतंकवाद के बढ़ते खतरे को दर्शाता है।

टीआरएफ का टारगेट किलिंग पर ध्यान केंद्रित करना, विशेषकर गैर-कश्मीरियों और अल्पसंख्यक कश्मीरी पंडितों को निशाना बनाना, एक रणनीतिक कदम है। 2020 में इसने बीजेपी कार्यकर्ताओं की हत्या की, और हाल ही में पुलवामा में एक कश्मीरी पंडित की हत्या भी की। इस प्रकार, यह संगठन कश्मीर में फिर से 90 के दशक जैसी स्थिति लाना चाहता है।

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