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सियासी मैदान में कांग्रेस का ‘तुरुप का पत्ता’: प्रियंका गांधी की अमेठी से वायनाड वाया रायबरेली तक की कहानी!

प्रियंका गांधी का नोम‍िनेशन, वायनाड में कांग्रेस के दिग्गजों का जमावड़ा

प्रियंका गांधी का चुनावी राजनीति में आगाज़ एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है, जिसका इंतज़ार देश की राजनीति में दशकों से किया जा रहा था।  जून महीने में कांग्रेस पार्टी ने ऐलान किया कि प्रियंका गांधी वायनाड लोकसभा क्षेत्र से चुनावी मैदान में उतरेंगी। इस घोषणा ने न केवल कांग्रेस कार्यकर्ताओं में जोश भर दिया, बल्कि राजनीतिक विश्लेषकों के बीच भी चर्चा का एक नया विषय पैदा कर दिया।

प्रियंका गांधी का वायनाड सीट से चुनावी डेब्यू इस संदर्भ में भी खास है कि यह सीट पहले उनके भाई राहुल गांधी के पास थी। राहुल ने 2019 के चुनाव में वायनाड और रायबरेली दोनों सीटों से चुनाव लड़ा था, और जीतने के बाद वायनाड सीट को छोड़ दिया था।  अब इसी सीट पर आज प्रियंका गांधी अपना नामांकन पत्र दाखिल कर रही हैं।

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प्रियंका गांधी के चुनाव प्रचार से चुनाव लड़ने तक की कहानी

प्रियंका गांधी का चुनावी सफर एक दिलचस्प कहानी है, जो उनकी राजनीति में भूमिका को साफ-साफ दिखाता है। हालाँकि अब वो चुनावी मैदान में मजबूती से आ चुकी हैं, लेकिन उनकी सक्रियता का इतिहास काफी पुराना है। 1990 के दशक के अंत से ही प्रियंका अपनी मां सोनिया गांधी के चुनाव अभियानों में मदद कर रही थीं, वहीं से उन्होंने राजनीति का अनुभव बटोरना शुरू कर दिया था।

2004 में, जब राहुल गांधी ने अमेठी सीट से राजनीति में कदम रखा, तब प्रियंका ने उनके लिए एक जबरदस्त जनसंपर्क अभियान चलाया। लेकिन इस दौरान वो खुद ज्यादा सामने नहीं आईं। साल 2019 में उनकी आधिकारिक एंट्री हुई जब उन्हें पूर्वी उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के चुनावी अभियान का जिम्मा दिया गया। हालांकि, उस चुनाव में पार्टी को सिर्फ एक सीट मिली, जिससे उनके काम पर सवाल उठने लगे।

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2022 में यूपी के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का प्रदर्शन काफी खराब रहा। उस वक्त कई आलोचकों ने कहा कि प्रियंका गांधी के तौर पर कांग्रेस का ‘तुरूप का पत्ता’ चूक गया। इस बीच यह चर्चा भी होने लगी कि उन्हें रायबरेली से चुनाव लड़ाया जा सकता है, और उनके चुनावी मैदान में आने के लिए पोस्टर भी लगे। लेकिन उस बार भी उन्हें चुनावी मैदान में नहीं उतारा गया।

अब  प्रियंका के सियासी सफर का एक नया अध्याय शुरू हो रहा है। यह सिर्फ उनके सियासी सफर की शुरुआत नहीं, बल्कि कांग्रेस पार्टी की युवा नेतृत्व के साथ फिर से चुनावी मैदान में उतरने की तैयारी का भी इशारा है।

साल घटना विवरण
2018 सक्रिय राजनीति में प्रवेश प्रियंका गांधी ने कांग्रेस पार्टी के लिए सक्रियता दिखाई।
2019 चुनाव प्रचार का काम उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के लिए चुनाव प्रचार किया।
2020 राष्ट्रीय महासचिव नियुक्ति कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव बनाई गई।
2021 उत्तर प्रदेश चुनाव में भूमिका महिलाओं के लिए 40% टिकट देने की घोषणा की।
2022 चुनावी रैलियाँ युवाओं को आकर्षित करने के लिए रैलियाँ आयोजित की।
2023 पार्टी की रणनीति और संगठनात्मक सुधार चुनावी रणनीति पर काम किया और संगठन को मजबूत किया।
2024 चुनाव लड़ने की घोषणा लोकसभा चुनाव में भाग लेने की इच्छा व्यक्त की।

आख़िर कांग्रेस ने प्रियंका गांधी को चुनाव में अब उतारने का फैसला क्यों किया?

सवाल ये उठता है कि कांग्रेस ने प्रियंका गांधी को अब चुनाव में क्यों उतारने का फैसला किया। कांग्रेस की राजनीति को समझने वाले जानकारों का कहना है कि यह बिलकुल सही समय है। 2024 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस ने अच्छा प्रदर्शन किया है, और पार्टी संसद में काफी मुखर दिखाई दे रही है।

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अगर प्रियंका भी लोकसभा पहुंचती हैं, तो वो अपने भाई राहुल गांधी के साथ मिलकर मोदी सरकार को और भी अच्छी तरह से घेर सकती हैं। वायनाड उनके लिए एक आसान सीट साबित हो सकती है, क्योंकि राहुल गांधी यहां काफी लोकप्रिय हैं। इसके अलावा, भारतीय मतदाता एक वर्ग प्रियंका गांधी को पसंद भी करता है। लोग उनमें अपनी दादी, पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की झलक देखते हैं। लोगों का मानना है कि प्रियंका भी इंदिरा गांधी जैसी मजबूत इच्छाशक्ति वाली महिला हैं और भारतीय राजनीति की चुनौतियों का अच्छे से सामना कर सकती हैं।

प्रियंका और इंदिरा गांधी

अपने पिता की राजनीतिक उत्तराधिकारी मानी जाती हैं  प्रियंका गांधी

प्रियंका गांधी को राहुल के मुकाबले अपने पिता राजीव गांधी की राजनीतिक उत्तराधिकारी माना जाता है। यहां तक कि जब उनके पिता का अंतिम संस्कार हो रहा था, तब लोगों को उम्मीद थी कि प्रियंका ही कांग्रेस की नई नेता बनेंगी। लेकिन इसके बाद प्रियंका सक्रिय राजनीति में नहीं आईं। उनके पिता की मौत के बाद पहली बार उन्होंने सार्वजनिक रूप से तब नजर आईं, जब उनकी शादी बिज़नेसमैन रॉबर्ट वाड्रा से हुई।

कहा जाता है कि 1990 के दशक के अंत में, जब कांग्रेस नेतृत्व संकट में थी और सोनिया गांधी ने राजनीति में न आने का फैसला किया था, तब प्रियंका ने पर्दे के पीछे हालात संभाले। इसके बाद से वो लगातार अपनी मां सोनिया गांधी और भाई राहुल गांधी की मदद करती रहीं। जब राहुल गांधी ने भारत जोड़ो अभियान के तहत लंबी यात्राएं कीं, तब प्रियंका उनके साथ बनी रहीं।

लेकिन 2019 से 2024 के बीच, लोगों ने प्रियंका को सक्रिय रूप से कांग्रेस में भूमिका निभाते देखा। इससे पार्टी कार्यकर्ताओं का हौसला बढ़ा और उनके अंदर और बाहर प्रियंका को चुनावी राजनीति में उतारने की मांग जोर पकड़ने लगी। इस सबके बीच प्रियंका का चुनावी मैदान में आना, कांग्रेस के लिए एक उम्मीद की एक नई किरण जरूर बन सकता है। यह उनके लिए सिर्फ एक चुनावी डेब्यू नहीं, बल्कि कांग्रेस की एक नई पहचान बनाने का मौका भी है।

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