ज्यादा वोट नहीं देते अमेरिकी राष्ट्रपति की कुर्सी की गारंटी, ऐसे तय होता है व्हाइट हाउस का भविष्य
अमेरिकी चुनाव 2024: अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव जारी हैं, और अब सभी की नजरें इस बात पर टिकी हैं कि इस बार के चुनाव में डेमोक्रेटिक पार्टी से कमला हैरिस और रिपब्लिकन पार्टी से डोनाल्ड ट्रंप के बीच कौन जीत हासिल करेगा। 5 नवंबर को मतदान हुए, लेकिन नतीजों में कुछ समय लग सकता है क्योंकि अमेरिका में चुनावी प्रक्रिया काफी जटिल है। आपको यह जानकर हैरानी हो सकती है कि अमेरिकी राष्ट्रपति बनने के लिए सिर्फ ज्यादा वोट जीतना ही जरूरी नहीं है, बल्कि इलेक्टोरल वोट्स की संख्या भी निर्णायक होती है। आइए, समझते हैं पूरी प्रक्रिया को और क्यों सिर्फ ज्यादा वोट जीतने से कोई भी राष्ट्रपति नहीं बन सकता।
समझें इलेक्टोरल कॉलेज का गणित
अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव की प्रक्रिया के तहत मतदाता सीधे तौर पर राष्ट्रपति को नहीं चुनते। आम जनता उन इलेक्टर्स को वोट देती है, जो इलेक्टोरल कॉलेज का हिस्सा होते हैं। ये इलेक्टर्स बाद में अपने-अपने राज्यों में इकट्ठा होकर राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के लिए मतदान करते हैं। इस सिस्टम को समझना थोड़ा जटिल हो सकता है, लेकिन इसे सरल रूप में कहें तो अमेरिकी नागरिक जो वोट देते हैं, वो सिर्फ इलेक्टर्स को चुनते हैं, जो बाद में राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति का चुनाव करते हैं।
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इलेक्टोरल कॉलेज में कुल 538 इलेक्टर्स होते हैं, जो पूरे अमेरिका के 50 राज्यों और कोलंबिया जिले का प्रतिनिधित्व करते हैं। इन इलेक्टर्स का चुनाव उन राज्यों के सांसदों (सीनेटरों और प्रतिनिधियों) की संख्या के आधार पर किया जाता है। इस प्रक्रिया में, राज्य की जनसंख्या के अनुसार उस राज्य को इलेक्टोरल वोट्स मिलते हैं। उदाहरण के लिए, सबसे बड़े राज्य कैलिफोर्निया को 54 इलेक्टोरल वोट्स मिलते हैं, जबकि छोटे राज्यों को कम वोट मिलते हैं। राष्ट्रपति बनने के लिए उम्मीदवार को कम से कम 270 इलेक्टोरल वोट्स की आवश्यकता होती है, जो कुल 538 में से बहुमत होता है।
क्या ज्यादा वोट हासिल करने से राष्ट्रपति बनना तय है?
अमेरिका में यह जरूरी नहीं कि जो उम्मीदवार देशभर में सबसे ज्यादा वोट हासिल करे, वही राष्ट्रपति बन जाए। 2016 में भी यह देखने को मिला था, जब हिलेरी क्लिंटन ने लोकप्रिय वोट में डोनाल्ड ट्रंप से ज्यादा वोट प्राप्त किए थे, लेकिन इलेक्टोरल कॉलेज की व्यवस्था के चलते ट्रंप राष्ट्रपति बने। यही कारण है कि अमेरिकी राष्ट्रपति पद की दौड़ सिर्फ लोकप्रिय वोट पर निर्भर नहीं होती, बल्कि इलेक्टोरल कॉलेज में मिलने वाले वोट्स भी निर्णायक होते हैं।
कौन बनेगा राष्ट्रपति?
अमेरिकी चुनावों में, हर राज्य का एक निर्धारित इलेक्टोरल वोट्स होता है। यह संख्या उस राज्य के प्रतिनिधियों और सीनेटरों की संख्या के आधार पर तय होती है। यदि एक उम्मीदवार को 270 या उससे अधिक इलेक्टोरल वोट्स मिल जाते हैं, तो वही राष्ट्रपति बनता है। लेकिन इसके बावजूद, यह आवश्यक नहीं है कि वही उम्मीदवार देशभर में सबसे अधिक वोट प्राप्त करे। यह गिनती उन इलेक्टर्स के वोट्स पर आधारित होती है, जो अंत में राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति का चुनाव करते हैं।
स्विंग स्टेट्स: चुनावी नतीजे यहां से तय होंगे
अमेरिका में चुनावी राजनीति का एक दिलचस्प पहलू यह है कि देश के 50 राज्यों में से कुछ राज्य ऐसे होते हैं, जहां दोनों प्रमुख पार्टियों (रिपब्लिकन और डेमोक्रेट) के बीच कांटे की टक्कर होती है। इन्हें “स्विंग स्टेट्स” या “पर्पल स्टेट्स” कहा जाता है। स्विंग स्टेट्स वो राज्य होते हैं, जहां चुनाव परिणाम अक्सर चौंकाने वाले होते हैं, और यहां से जीतने वाला उम्मीदवार व्हाइट हाउस की कुर्सी पर बैठ सकता है।
अमेरिका के कुछ प्रमुख स्विंग स्टेट्स में पेंसिल्वेनिया, जॉर्जिया, मिशिगन, एरिजोना, विस्कॉन्सिन, नेवादा और नॉर्थ कैरोलिना शामिल हैं। इन राज्यों में दोनों पार्टियों के उम्मीदवारों के बीच मुकाबला बेहद करीब होता है। स्विंग स्टेट्स की महत्वपूर्ण भूमिका चुनाव में निर्णायक साबित होती है।
स्विंग स्टेट | इलेक्टोरल कॉलेज वोट |
---|---|
पेंसिल्वेनिया | 19 |
जॉर्जिया | 16 |
नॉर्थ कैरोलिना | 16 |
मिशिगन | 15 |
एरिजोना | 11 |
विस्कॉन्सिन | 10 |
नेवादा | 6 |
स्विंग स्टेट्स में कौन आगे है?
हालिया सर्वे के मुताबिक, स्विंग स्टेट्स में डोनाल्ड ट्रंप और कमला हैरिस के बीच कांटे की टक्कर देखने को मिल रही है। पेंसिल्वेनिया, जॉर्जिया और एरिजोना में ट्रंप को मामूली बढ़त मिल रही है, जबकि मिशिगन, विस्कॉन्सिन और नेवादा में कमला हैरिस को थोड़ा फायदा होता दिख रहा है। इस प्रकार, चुनावी नतीजे इन स्विंग स्टेट्स पर निर्भर करेंगे, और इन राज्यों के वोट्स ही तय करेंगे कि व्हाइट हाउस की कुर्सी किसके हाथों में जाएगी।
राष्ट्रपति की शपथ कब ली जाती है?
अमेरिका के राष्ट्रपति का शपथ ग्रहण समारोह हर साल जनवरी के महीने में आयोजित किया जाता है। इस बार यह शपथ ग्रहण समारोह 20 जनवरी 2025 को होगा। तब तक चुनावी प्रक्रिया पूरी हो चुकी होगी और नए राष्ट्रपति के रूप में शपथ ली जाएगी।
अमेरिकी राजनीति के रंग: लाल, नीला और पर्पल
अमेरिकी राजनीति में रंगों का भी विशेष महत्व है। जहां रिपब्लिकन पार्टी को लाल रंग (Red) से और डेमोक्रेटिक पार्टी को नीला रंग (Blue) दर्शाता है, वहीं पर्पल (Purple) रंग स्विंग स्टेट्स के लिए इस्तेमाल होता है। इन राज्यों में चुनाव परिणाम हमेशा अप्रत्याशित रहते हैं, क्योंकि यहां दोनों पार्टियों के बीच मुकाबला काफी कांटेदार होता है।