इंटरनेट पर सैटेलाइट लॉन्च की फोटो-वीडियो तो आपने जरूर देखी होगी। लेकिन क्या आपने कभी लकड़ी वाली सैटेलाइट को देखा है। जी हां, जापान के वैज्ञानिकों ने दुनिया का पहला लकड़ी का उपग्रह लॉन्च किया है। आज हम आपको बताएंगे कि आखिर जापान ने कैसे लकड़ी वाला सैटेलाइट तैयार किया है और ये किस तरीके से काम करेगा।
लकड़ी का सैटेलाइट
जापान के वैज्ञानिकों ने gnoSat नाम के इस सैटेलाइट को स्पेसएक्स के रॉकेट पर रखकर अंतरिक्ष में भेजा है। रिपोर्ट्स के मुताबिक इस सैटेलाइट को क्योटा यूनिवर्सिटी के रिसर्चर्स और घर बनाने वाली कंपनी Sumitomo Forestry की संयुक्त टीम ने मिलकर बनाया है। बता दें कि अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन के लिए इस सैटेलाइट को लॉन्च किया गया है।
स्पेस में कैसे काम करेगा लकड़ी का सैटेलाइट
बता दें कि वैज्ञानिकों ने जो लकड़ी का सैटेलाइट बनाया है, इसका लिग्नोसैट नाम लकड़ी के लिए लैटिन शब्द पर रखा गया है। जानकारी के मुताबिक इसे आने वाले हफ्तों में अंतरिक्ष स्टेशन से छोड़ा जाएगा। वैज्ञानिकों के मुताबिक यह छह महीने तक उसी कक्ष में रहेगा। इसके अलावा यह सैटेलाइट ISS पर रहकर ये टेस्ट करेगा कि यह सामग्री अंतरिक्ष के चरम वातावरण का कितना बेहतर तरीके से सामना कर सकती है।
क्या है ये मिशन
जापान के पूर्व शटल एस्ट्रोनॉट ताकाओ दोई क्योटो यूनिवर्सिटी की रिसर्च टीम का हिस्सा थे. उन्होंने बताया कि वैज्ञानिक यह पता लगाना चाहते हैं कि अंतरिक्ष में लकड़ी का उपयोग किया जा सकता है या नहीं। यही कारण है कि हमने यह लकड़ी का उपग्रह बनाया है।
नासा ने भी की मदद
जापान के एस्ट्रोनॉट ताकाओ दोई ने बताया है कि अगर लिग्नोसैट इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन और अंतरिक्ष के रेडिएशन को बर्दाश्त कर लेता है, तो भविष्य में इससे काफी काफी मदद मिलेगी। टिंबर को चंद्रमा और मंगल ग्रह पर उगाने की तैयारी की जा रही है। जानकारी के मुताबिक अगले 50 साल में ये काम भी किया जा सकता है। नासा ने इस सैटेलाइट को बनाने में मदद की है।
स्पेस में लकड़ी बेहतर करेगी काम
वन विज्ञान के प्रोफेसर कोजी मुराता ने बताया कि लकड़ी अंतरिक्ष में बेहतर तरीके से काम कर सकती है। ऐसा इसलिए होगा क्योंकि वहां ऐसा कुछ भी नहीं है, जो इसके सड़ने या आग पकड़ने का कारण बन सकता है। इतना ही नहीं इस उपग्रह में इस्तेमाल की गई लकड़ी एक मैगनोलिया पेड़ जापानी होनोकी से आती है। इसे प्रोसेस करना आसान है और ये लकड़ी जल्दी टूटती भी नहीं है। रिसर्च के मुताबिक इस लकड़ी से पृथ्वी के वायुमंडल को कोई नुकसान नहीं होगा।