महाराष्ट्र और झारखंड में बीजेपी ने विधानसभा चुनाव प्रचार के लिए जो रणनीति अपनाई, वो कई मायनों में दिलचस्प और अलग रही। सबसे खास बात यह है कि बीजेपी ने जिन दो नेताओं को सबसे ज़्यादा रैलियां करने के लिए आगे किया, वे दोनों ही मुख्यमंत्री पद के दावेदार नहीं थे। महाराष्ट्र में नितिन गडकरी और झारखंड में हिमंत बिस्वा सरमा की रैलियां सबसे ज़्यादा हुईं। अब सवाल ये उठता है कि क्या वजह थी कि इन दोनों नेताओं को ऐसा ‘प्रमुख प्रचारक’ बनाया गया, जबकि ये दोनों किसी भी राज्य के मुख्यमंत्री की दौड़ में नहीं थे? आइए, इस बात को समझने की कोशिश करते हैं कि बीजेपी ने इन दोनों नेताओं का चुनाव प्रचार में इतना अहम रोल क्यों दिया?
झारखंड में हिमंत बिस्वा सरमा का दबदबा
झारखंड में बीजेपी ने 68 सीटों पर चुनाव लड़ा, और इस दौरान असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने 54 रैलियां कीं, जो कि पार्टी के बाकी बड़े नेताओं से कहीं ज़्यादा थीं। शिवराज सिंह चौहान, अमित शाह और योगी आदित्यनाथ ने भी कुछ रैलियां कीं, लेकिन हिमंत की संख्या सबसे ज़्यादा रही।
झारखंड विधानसभा चुनाव रैलियों की संख्या
नेता |
रैलियों की संख्या |
पद |
---|---|---|
हिमंत बिस्वा सरमा |
54 |
असम के मुख्यमंत्री, बीजेपी के सह चुनाव प्रभारी |
शिवराज सिंह चौहान |
50 |
केंद्रीय मंत्री, बीजेपी नेता |
अमित शाह |
16 |
केंद्रीय मंत्री |
योगी आदित्यनाथ |
12+ |
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री |
बाबू लाल मरांडी |
सीमित (धनवार सीट) |
बीजेपी नेता |
अर्जुन मुंडा |
सीमित (पोटका सीट) |
पूर्व मुख्यमंत्री, बीजेपी नेता |
हिमंत बिस्वा सरमा को इतनी ज़्यादा रैलियों के लिए क्यों चुना गया?
1- स्थानीय नेताओं का सीमित दायरा: झारखंड में बीजेपी ने अपने बड़े नेताओं को सिर्फ अपनी सीटों तक सीमित किया। बाबू लाल मरांडी, अर्जुन मुंडा और अमर बाउरी जैसे नेता अपनी-अपनी सीटों पर ही फोकस करते रहे। ऐसे में हिमंत को पूरे राज्य में घूमकर बीजेपी के प्रचार का जिम्मा सौंपा गया।
2- हिंदुत्व और ‘माटी-बेटी’ का मुद्दा: हिमंत की रैलियां मुख्य रूप से हिंदुत्व, बांग्लादेशी घुसपैठ और माटी-बेटी जैसे मुद्दों पर केंद्रित थीं। बीजेपी ने इस बार झारखंड में ज़्यादा आक्रामक तरीके से चुनावी प्रचार किया और इन मुद्दों को प्रचारित किया, जिसके लिए हिमंत बिस्वा सरमा को सबसे फिट माना गया।
3- झारखंड के सह चुनाव प्रभारी: हिमंत बिस्वा सरमा झारखंड के सह चुनाव प्रभारी भी थे, जो उनके प्रचार की ज़िम्मेदारी को और भी अहम बनाता था। लोकसभा चुनाव के बाद से ही पार्टी की रणनीति में बदलाव आ चुका था और हिमंत को चुनावी मोर्चे पर लाकर बीजेपी ने अपनी स्थिति मजबूत करने की कोशिश की।
महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव रैलियों की संख्या
नेता | रैलियों की संख्या | पद |
---|---|---|
नितिन गडकरी |
72 |
केंद्रीय मंत्री, बीजेपी नेता |
देवेंद्र फडणवीस |
64 |
महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री, बीजेपी नेता |
अमित शाह |
15 |
केंद्रीय मंत्री |
योगी आदित्यनाथ |
11 |
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री |
चंद्रशेखर बावनकुले |
27 |
बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष |
नाना पटोले |
65 |
कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष |
शरद पवार |
53 |
एनसीपी अध्यक्ष |
उद्धव ठाकरे |
44 |
शिवसेना प्रमुख |
महाराष्ट्र में गडकरी का जलवा
महाराष्ट्र में चुनाव प्रचार के दौरान केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने 72 रैलियां कीं। ये संख्या देवेंद्र फडणवीस (64 रैलियां) और बाकी बड़े नेताओं से भी ज़्यादा थी। सवाल यह है कि गडकरी, जो मुख्यमंत्री पद के दावेदार नहीं हैं, को इतनी ज़्यादा रैलियां करने के लिए क्यों आगे किया गया?
गडकरी को इतनी ज़्यादा रैलियों के लिए क्यों चुना गया?
1- एंटी इनकंबेंसी का मुद्दा: महाराष्ट्र में बीजेपी सत्ता में है, लेकिन लोकसभा चुनाव में पार्टी को हार का सामना करना पड़ा था। बीजेपी पर यह भी आरोप लगे थे कि वह लगातार पार्टियां तोड़कर सरकार में बनी हुई है। फडणवीस का प्रभाव पूरे राज्य में एक जैसा नहीं है, और पार्टी में भी उनकी नेतृत्व क्षमता पर सवाल उठते रहे हैं। ऐसे में गडकरी को प्रचार में ज़्यादा रैलियां करने के लिए आगे किया गया। गडकरी की छवि विकास पुरुष के रूप में रही है और उन्होंने अपनी रैलियों में सड़क परिवहन जैसे क्षेत्रों में किए गए कार्यों को प्रमुखता से उठाया।
2- विदर्भ क्षेत्र में बीजेपी की हार को सुधारने की कोशिश: विदर्भ, जहां हाल ही में बीजेपी को लोकसभा चुनावों में करारी हार मिली थी, में गडकरी को लाकर पार्टी ने यह संदेश देने की कोशिश की कि वह इस क्षेत्र में बीजेपी की खोई हुई ज़मीन वापस लाने का प्रयास कर रहे हैं। गडकरी का विदर्भ से गहरा नाता है, और उनकी रैलियों ने इस क्षेत्र में बीजेपी के पक्ष में माहौल बनाने का काम किया।
3- विकास के एजेंडे को प्रमोट करना: गडकरी के लिए यह भी एक मौका था कि वे विकास के मुद्दे को हर मंच से उठाएं। उन्होंने अपने कार्यकाल में सड़क परिवहन विभाग में जो काम किए, उन्हें प्रचारित किया और लोगों से इसका आकलन करने को कहा। गडकरी ने यह सुनिश्चित किया कि बीजेपी का विकास एजेंडा राज्य के लोगों तक पहुंचे, जिससे एंटी इनकंबेंसी को नकारा जा सके।
बीजेपी की नई रणनीति: ‘हिंदुत्व’ और ‘विकास’ का मिश्रण
बीजेपी ने दोनों राज्यों में चुनावी रणनीति में स्थानीय नेताओं की सीमित सक्रियता का फायदा उठाया। झारखंड में हिमंत बिस्वा सरमा को हिंदुत्व और राज्य की सुरक्षा के मुद्दों को ज़ोर-शोर से उठाने का मौका मिला, जबकि महाराष्ट्र में गडकरी को विकास के मुद्दे को फोकस करके एंटी इनकंबेंसी का सामना करने के लिए आगे किया गया। इन दोनों नेताओं ने चुनावी माहौल को बीजेपी के पक्ष में बनाने के लिए अपनी-अपनी ताकत से प्रचार किया।