बीजेपी का चेहरा कैसे बने फडणवीस?
2013 में, जब नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री पद के दावेदार बने थे, तो बीजेपी की नजर महाराष्ट्र पर थी। पार्टी को मजबूत नेतृत्व की जरूरत थी, और उस वक्त देवेंद्र फडणवीस की तरफ सबकी निगाहें गईं। वे महज 43 साल के थे, लेकिन पार्टी के भीतर एक कद्दावर नेता के तौर पर उभरे थे। फडणवीस की पहचान तब तक संगठन से जुड़ी हुई थी। वह नागपुर के रहने वाले थे, और संघ के करीबी थे, इसलिए उनके नाम की सिफारिश भी संघ ने की थी।
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लेकिन बीजेपी में अध्यक्ष पद को लेकर एक बड़ा विवाद था। गोपीनाथ मुंडे और नितिन गडकरी दोनों ही अपने-अपने गुट के नेताओं को इस पद पर देखना चाहते थे। यह पेच फंस गया था, लेकिन फडणवीस को उनके तटस्थ रुख की वजह से फायदा मिला और उन्हें बीजेपी का अध्यक्ष बना दिया गया। अध्यक्ष बनने के बाद फडणवीस ने पार्टी संगठन को मजबूती दी, और 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को बड़ी जीत दिलाई। इसके बाद विधानसभा चुनाव में भी बीजेपी ने शानदार प्रदर्शन किया, और देवेंद्र फडणवीस को महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री बनने का मौका मिला।
यह कदम ऐतिहासिक था, क्योंकि महाराष्ट्र में आम तौर पर मुख्यमंत्री की कुर्सी पर ब्राह्मण समुदाय से कोई नहीं बैठता था। ब्राह्मणों की जगह हमेशा मराठा और ओबीसी समुदाय के नेता लेते आए थे। लेकिन फडणवीस को यह मौका दिया गया और वह मुख्यमंत्री बने। हालांकि, इस फैसले को लेकर भी सवाल उठे थे क्योंकि फडणवीस पहले से राज्य में इतना जाना-पहचाना चेहरा नहीं थे। लेकिन उनकी संगठन क्षमता और समझदारी ने उन्हें मुख्यमंत्री पद तक पहुंचा दिया।
साल | घटना | महत्व |
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2014 | महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में बीजेपी की जीत | देवेंद्र फडणवीस ने पहली बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली, और बीजेपी को बड़ी जीत दिलाई। |
2014 | मुख्यमंत्री बने | फडणवीस महाराष्ट्र के पहले ब्राह्मण मुख्यमंत्री बने, जो एक बड़ा बदलाव था। |
2016 | पंकजा मुंडे और विनोद तावड़े से विभाग छीनना | अपनी कड़ी शैली से पार्टी में हलचल मचाई, फडणवीस ने किसी को भी नहीं बख्शा। |
2016 | राज ठाकरे को “गली छाप गुंडा” और अजित पवार को जेल भेजने की धमकी | फडणवीस की तीखी बयानबाजी ने उन्हें एक आक्रामक नेता के तौर पर स्थापित किया। |
2019 | शिवसेना के साथ गठबंधन टूटना और सरकार गिरना | राजनीतिक संकट के दौरान फडणवीस की सरकार गिर गई, और राष्ट्रपति शासन लागू हुआ। |
2019 | अजित पवार के साथ मिलकर रातोंरात मुख्यमंत्री बने | विवादास्पद फैसला, लेकिन यह कदम सफल नहीं रहा और उन्हें फिर से कुर्सी गंवानी पड़ी। |
2023 | अजित पवार और एनसीपी के 40 विधायकों को अपने पाले में लाना | फडणवीस ने शरद पवार को बड़ा झटका दिया और साबित कर दिया कि वे अब सियासत के मास्टरमाइंड हैं। |
2024 | अब पर्दे के पीछे से राजनीति की रणनीति बनाना | फडणवीस अब चुपचाप और समझदारी से अपनी रणनीतियों को अंजाम दे रहे हैं, आक्रामक नहीं रहे। |
मुख्यमंत्री बनने से लेकर विवादों तक
जब देवेंद्र फडणवीस ने मुख्यमंत्री की कुर्सी संभाली, तो उनके सामने कई चुनौतियां थीं। यह उनका पहला बड़ा राजनीतिक पद था, और उन्होंने पूरी ताकत से काम किया। इस दौरान उनकी छवि एक तुनकमिजाज और आक्रामक नेता के रूप में बनी। वह अपने विरोधियों को खुलकर जवाब देते थे, और अक्सर मीडिया के सामने अपने विचार रखते थे। कभी किसी अधिकारी को लताड़ दिया, तो कभी किसी नेता पर खुलकर हमला बोल दिया। उनकी यह आक्रामक शैली उन्हें विवादों में डाल देती थी।
मुख्यमंत्री रहते हुए, 2016 में फडणवीस ने अपने ही कैबिनेट सहयोगियों पंकजा मुंडे और विनोद तावड़े से विभाग छिनने का फैसला किया। इस फैसले ने काफी तूल पकड़ा, और पार्टी के भीतर अंदरूनी हलचल शुरू हो गई। लेकिन फडणवीस ने अपनी कड़ी शैली से किसी को भी बख्शा नहीं। उनकी इस शैली से कुछ लोग खुश थे, तो कुछ गुस्से में थे। लेकिन एक बात साफ थी, फडणवीस अपनी बात पर डटे रहने वाले नेता थे।
राज ठाकरे जैसे नेताओं पर उनकी तल्ख टिप्पणियों ने भी सुर्खियां बटोरीं। उन्होंने राज ठाकरे को “गली छाप गुंडा” कहकर तगड़ा बयान दिया था। वहीं, अजित पवार के बारे में यह बयान भी दिया था कि यदि वह सरकार में आए तो उन्हें जेल में डाल दिया जाएगा। इन बयानों ने फडणवीस को एक ‘फायरब्रांड’ नेता के रूप में स्थापित कर दिया।
राजनीति के तख्तापलट और फडणवीस की वापसी
2019 में लोकसभा चुनाव के बाद, महाराष्ट्र की सियासत में एक बड़ा उलटफेर हुआ। बीजेपी और शिवसेना के गठबंधन में दरार आ गई, और फडणवीस की सरकार गिर गई। राष्ट्रपति शासन लागू किया गया, और महाराष्ट्र में राजनीतिक संकट गहरा गया। लेकिन फडणवीस ने हार मानने के बजाय एक और सियासी पैंतरा चला।
रातों-रात, उन्होंने अजित पवार के साथ मिलकर मुख्यमंत्री पद की शपथ ले ली। यह पूरी घटना विवादों से घिरी रही। कुछ लोग इसे शरद पवार और अहमद पटेल की एक बड़ी साजिश मानते थे। खैर, फडणवीस की यह चाल सफल नहीं रही। अजित पवार के खेमे ने जल्द ही अपनी राह बदल ली, और फडणवीस को अपनी कुर्सी फिर से गंवानी पड़ी।
फडणवीस ने इस घटनाक्रम को शरद पवार का जाल कहा था, क्योंकि वह मानते थे कि पवार और पटेल ने मिलकर राष्ट्रपति शासन को हटवाने के लिए अजित को भेजा था।
सियासत के मास्टर बन गए फडणवीस
2023 में, फडणवीस ने फिर से शरद पवार से बदला लिया। इस बार उनका कदम और भी बड़ा था। उन्होंने अजित पवार और एनसीपी के 40 विधायकों को अपने पाले में खींच लिया। यह कदम शरद पवार और उनकी पार्टी के लिए एक बड़ा झटका था। फडणवीस ने साबित कर दिया कि वह सियासत के मास्टर हैं, और अब वह पूरी तरह से परिपक्व नेता बन चुके हैं।
अब, फडणवीस पहले जैसे आक्रामक नहीं रहे। उनकी राजनीति अब सोची-समझी और पर्दे के पीछे से दांव खेलने वाली हो गई है। उन्होंने यह सीख लिया है कि महाराष्ट्र की राजनीति में गठबंधन की अहमियत है। यहां न ज्यादा दोस्ती होती है और न ज्यादा दुश्मनी। फडणवीस अब अपनी रणनीति को चुपचाप अंजाम देते हैं, और यही उनकी नई पहचान बन चुकी है।