महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के रिजल्ट के बाद सरकार गठन और मुख्यमंत्री पद को लेकर सस्पेंस बना हुआ था, लेकिन बुधवार को कार्यवाहक मुख्यमंत्री और शिवसेना नेता एकनाथ शिंदे की प्रेस कॉन्फ्रेंस ने स्थिति को थोड़ा स्पष्ट किया। सूत्रों की मानें तो अब यह लगभग तय हो गया है कि महाराष्ट्र में मुख्यमंत्री पद बीजेपी के पास जाएगा और मौजूदा व्यवस्था जस की तस बनी रहेगी। इसका मतलब यह है कि राज्य में एक मुख्यमंत्री के साथ दो डिप्टी सीएम होंगे।
इस बीच, गुरुवार शाम दिल्ली में महाराष्ट्र एनडीए की बैठक होगी, जिसमें महाराष्ट्र में एनडीए का नेता कौन होगा, इस पर फैसला लिया जाएगा। यह बैठक महत्वपूर्ण मानी जा रही है क्योंकि इसमें गठबंधन के अगले कदमों का निर्धारण होगा और सीएम पद के लिए पार्टी का आधिकारिक नाम भी तय होगा। नए मुख्यमंत्री के शपथ ग्रहण तक शिंदे ही कार्यवाहक मुख्यमंत्री के रूप में काम करेगें। इस स्थिति में एक बड़ा सवाल उठता है कि आखिर मुख्यमंत्री और कार्यवाहक मुख्यमंत्री में क्या फर्क है और कार्यवाहक मुख्यमंत्री के पास कितनी पावर होती है।
मुख्यमंत्री और कार्यवाहक मुख्यमंत्री के बीच क्या फर्क है?
अगर बात करें मुख्यमंत्री की तो यह पद भारतीय संविधान के तहत राज्य का सबसे महत्वपूर्ण कार्यकारी पद होता है। राज्यपाल के द्वारा मुख्यमंत्री की नियुक्ति की जाती है, जो उस पार्टी का नेता होता है, जिसने विधानसभा चुनाव में बहुमत हासिल किया हो। मुख्यमंत्री को राज्य की पूरी प्रशासनिक व्यवस्था का प्रमुख माना जाता है।
मुख्यमंत्री के पास कई शक्तियाँ होती हैं:
- ♦- राज्य सरकार की नीतियाँ बनाना और उन्हें लागू करना।
- ♦- राज्य की कानून व्यवस्था बनाए रखना।
- ♦- मंत्रिपरिषद के प्रमुख के रूप में राज्यपाल से सलाह लेकर महत्वपूर्ण निर्णय लेना।
- ♦- नई योजनाओं की शुरुआत करना और उनके बारे में फैसले लेना।
अब, जब मुख्यमंत्री अपना इस्तीफा देता है और कार्यवाहक मुख्यमंत्री की भूमिका में आता है, तो उसकी पावर में कमी आ जाती है। कार्यवाहक मुख्यमंत्री के पास वह सारी शक्तियाँ नहीं होतीं जो एक सामान्य मुख्यमंत्री के पास होती हैं।
कार्यवाहक मुख्यमंत्री के पास क्या अधिकार होते हैं?
कार्यवाहक मुख्यमंत्री का पद अस्थायी होता है और यह तब तक चलता है, जब तक नया मुख्यमंत्री शपथ ग्रहण नहीं कर लेता। कार्यवाहक मुख्यमंत्री की भूमिका सिर्फ राज्य की सामान्य स्थिति बनाए रखने तक सीमित होती है। वह कोई नई योजना नहीं शुरू कर सकता, न ही कोई नया महत्वपूर्ण निर्णय ले सकता है।
कार्यवाहक मुख्यमंत्री के पास कुछ सीमित अधिकार होते हैं:
- ♦- वह राज्य में चल रही योजनाओं की निगरानी कर सकते हैं।
- ♦- राज्य की कानून व्यवस्था बनाए रखने की जिम्मेदारी उनके ऊपर होती है।
- ♦- वह उस समय तक जारी प्रशासनिक मामलों को चलाने के लिए दिशा-निर्देश जारी कर सकते हैं, जब तक नया मुख्यमंत्री नहीं आता।
हालांकि, कार्यवाहक मुख्यमंत्री का कोई भी बड़ा फैसला या नई नीति बनाने का अधिकार नहीं होता। वह केवल पूर्व मुख्यमंत्री के द्वारा शुरू किए गए कामकाज को देखता है, और किसी भी नई योजना को लागू करने से बचता है।
कार्यवाहक मुख्यमंत्री की पावर कब खत्म होती है?
कार्यवाहक मुख्यमंत्री की पावर तब तक रहती है जब तक राज्य में नया मुख्यमंत्री शपथ नहीं ले लेता। जैसे ही नया मुख्यमंत्री शपथ ग्रहण करता है, कार्यवाहक मुख्यमंत्री का कार्यकाल समाप्त हो जाता है। अगर इस बीच राष्ट्रपति शासन लागू हो जाता है, तो कार्यवाहक मुख्यमंत्री का पद समाप्त हो जाता है और राज्य की पूरी कमान राज्यपाल के हाथ में चली जाती है।