भारत के कई राज्यों में डायन प्रथा आज भी पूरी ताकत से जारी है। ये प्रथा, जिसे कई बार अंधविश्वास और समाज की पुरानी सोच से जोड़ा जाता है, महिलाओं के खिलाफ एक अमानवीय अत्याचार है। खासकर झारखंड, राजस्थान, बिहार, छत्तीसगढ़, असम और हरियाणा जैसे राज्यों में इसे लेकर कई घिनौनी घटनाएं सामने आती हैं। इन घटनाओं में महिलाओं को ‘डायन’ बताकर उनका शारीरिक, मानसिक और यौन उत्पीड़न किया जाता है। सवाल यह है कि आखिर क्यों महिलाएं इस प्रथा का शिकार बनती हैं और उन्हें डायन घोषित करने के पीछे असल कारण क्या हैं?
कौन तय करता है कि महिला डायन है?
यहां पर बात की जाती है, उन घटनाओं की जब महिलाओं को डायन बताकर उनका जीवन तबाह कर दिया जाता है। सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि डायन घोषित करने वाले लोग अक्सर उनके करीबी रिश्तेदार, पड़ोसी या फिर तांत्रिक होते हैं। जिनका मकसद सिर्फ महिला को प्रताड़ित करना या फिर किसी और कारण से उसे समाज से बाहर करना होता है। ऐसा देखा गया है कि अक्सर महिलाओं को छोटी-छोटी बातों पर डायन घोषित कर दिया जाता है। जैसे किसी बीमार बच्चे को ठीक न कर पाना, दुधारू पशुओं का दूध देना बंद कर देना या फिर किसी के बीमार होने पर उसे जादू-टोना का आरोप लगाना। इसके अलावा, संपत्ति विवाद भी एक बड़ा कारण बनता है जब महिलाओं को डायन घोषित किया जाता है ताकि उनके अधिकारों पर कब्जा किया जा सके।
डायन घोषित करने के बाद की दुखभरी कहानी
छूटनी महतो का नाम डायन प्रथा के खिलाफ संघर्ष करने वाली महिलाओं में सबसे प्रमुख है। झारखंड के सरायकेला खरसांवा जिले की रहने वाली छूटनी को 1995 में गांववालों ने डायन घोषित कर दिया था। उन्होंने खुद एक इंटरव्यू में बताया कि किस तरह उनके साथ अमानवीय बर्ताव किया गया। उनके पड़ोसी की बेटी अचानक बीमार हो गई थी, और इसका आरोप छूटनी पर लगाया गया कि उन्होंने जादू-टोना कर उस बच्ची को बीमार किया। इस आरोप के बाद उन्हें न केवल प्रताड़ित किया गया बल्कि उन्हें जबरन मल-मूत्र भी खिलाया गया और गांव से बाहर निकाल दिया गया। छूटनी महतो ने इस घटना के बाद अपना जीवन पूरी तरह से बदल लिया और डायन प्रथा के खिलाफ संघर्ष करना शुरू किया। 2021 में उन्हें पद्मश्री पुरस्कार से नवाजा गया।
राजस्थान का बूंदी मामला
राजस्थान के बूंदी में एक और जख्म देने वाली घटना सामने आई। 50 साल की नंदूबाई मीणा को डायन घोषित किया गया, सिर्फ इसलिए कि उनके पेट में दर्द था और इलाज के बावजूद उनकी तबियत ठीक नहीं हो रही थी। परिजनों ने उन्हें एक तांत्रिक के पास ले जाया, जिसने नंदूबाई पर ‘बुरी आत्मा’ का साया बताया और उसे डायन घोषित कर दिया। फिर नंदूबाई को पेड़ से बांध दिया गया और उसके शरीर पर गर्म सलाखों से दागा गया। सिर के बाल काटकर उनके चेहरे पर कालिख पोत दी गई। यह घटना साबित करती है कि डायन प्रथा के खिलाफ कानून बनने के बावजूद कुछ इलाकों में इस प्रथा के खिलाफ कोई ठोस कदम नहीं उठाए जा रहे हैं।
क्या कहती हैं विशेषज्ञ?
कई सामाजिक कार्यकर्ता और विशेषज्ञ डायन प्रथा के खात्मे के लिए प्रयासरत हैं। इनमें से एक नाम है, प्रोफेसर कंचन माथुर का, जिन्होंने 2012 में एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी। इस रिपोर्ट में उन्होंने बताया था कि डायन घोषित करने के पीछे अंधविश्वास और पिछड़ी मानसिकता सबसे बड़ा कारण है। उन्होंने 60 से अधिक महिलाओं से मुलाकात की थी, जिन्होंने इस प्रथा का सामना किया था। ज्यादातर महिलाएं आदिवासी, दलित और पिछड़े वर्गों से थीं। कंचन माथुर का कहना था कि महिलाएं छोटी-छोटी घटनाओं के कारण डायन घोषित कर दी जाती हैं, जैसे किसी के बीमार होने पर या फिर किसी बच्चे की मौत के बाद। कई बार तो संपत्ति हड़पने के लिए भी महिलाओं को डायन घोषित किया जाता है।
समाज में बदलाव की जरूरत
अगर इस प्रथा को समाप्त करना है तो सबसे पहले समाज में जागरूकता फैलानी होगी। लोगों को समझाना होगा कि किसी भी महिला को डायन कहकर उसके साथ अमानवीय व्यवहार करना ना केवल अपराध है, बल्कि यह पूरी तरह से गलत और असंवेदनशील भी है। महिलाओं के अधिकारों की रक्षा करना, उनके खिलाफ होने वाले अत्याचारों को रोकना और समाज में समानता लाना यही एकमात्र तरीका है, जिससे डायन प्रथा को समाप्त किया जा सकता है।
कानून और सरकारी कदम
भारत सरकार ने डायन प्रथा के खिलाफ कानून भी बनाए हैं। हालांकि, यह जरूरी है कि इन कानूनों का सही तरीके से पालन हो और समाज में इस प्रथा के खिलाफ सख्त कदम उठाए जाएं। कई राज्यों में जहां इस प्रथा के खिलाफ कड़े कानून हैं, वहीं वहां की पुलिस और प्रशासन को इसे लेकर और भी सजग होने की जरूरत है। अगर हम इस समस्या का हल चाहते हैं तो समाज को ही खुद जागरूक होना होगा और महिलाओं के अधिकारों का सम्मान करना होगा।
डायन प्रथा एक अंधविश्वास और घोर अमानवीयता का प्रतीक बन चुकी है। यह प्रथा महिलाओं के खिलाफ न केवल शारीरिक, बल्कि मानसिक उत्पीड़न का कारण भी बनती है। आज भी इस प्रथा से कई महिलाएं पीड़ित हैं और उनके खिलाफ हो रही घटनाएं हमें यह याद दिलाती हैं कि हमें समाज में बदलाव लाने के लिए और काम करने की जरूरत है। समाज के हर वर्ग को इसके खिलाफ एकजुट होना होगा, तभी हम इस घिनौनी प्रथा का अंत कर सकते हैं।