Mahila Naga Sadhu: 2025 में प्रयागराज में महाकुंभ मेला होने वाला है, और ये मेला हर बार लाखों लोगों को आकर्षित करता है। यहां पर हर साल कुछ खास साधु-संत देखने को मिलते हैं, जो अपनी जिंदगी भगवान के नाम पर बिता देते हैं। इनमें से एक खास श्रेणी होती है – नागा साधु। इन साधुओं का जीवन बिल्कुल अलग और रहस्यमय होता है। ये साधु अक्सर नग्न रहते हैं और अपनी साधना में पूरी तरह से तल्लीन होते हैं। इनके जीवन में तपस्या, कठोर अनुशासन और त्याग होता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि सिर्फ पुरुष ही नागा साधु नहीं बनते, बल्कि महिलाएं भी इस रास्ते पर चलती हैं?
जी हां, महिला नागा साधु भी होती हैं, जो भगवान के नाम पर अपना जीवन समर्पित कर देती हैं। जैसे पुरुष नागा साधु कठोर तपस्या करते हैं, वैसे ही महिला नागा साधु भी कठिन साधना करती हैं, लेकिन उनका रास्ता और भी कठिन होता है। समाज में महिलाओं को लेकर बहुत सी परंपराएं और नियम होते हैं, जिनका पालन करना आसान नहीं होता, फिर भी कुछ महिलाएं इस कठिन मार्ग को अपनाती हैं।
महिला नागा साधु बनने के लिए उन्हें न सिर्फ मानसिक बल्कि शारीरिक और सामाजिक रूप से भी कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। महिला नागा साधु बनने के लिए पारंपरिक धार्मिक नियमों और संस्कारों को छोड़ना पड़ता है, जो समाज में एक महिला के लिए बहुत ही चुनौतीपूर्ण होते हैं। इन साधुओं को अपनी पहचान खोनी पड़ती है, और उन्हें समाज से अलग रहकर अपनी साधना करनी होती है। इसके अलावा, महिला होने के कारण इन्हें कई बार तो खुद को साबित करना पड़ता है कि वे भी पुरुषों की तरह इस कठिन तपस्या के योग्य हैं।
महिला नागा साधु का जीवन पुरुषों से भी ज्यादा संघर्षपूर्ण होता है, क्योंकि एक ओर जहां समाज की कई परंपराएं और दृष्टिकोण होते हैं, वहीं दूसरी ओर इन महिलाओं को अपनी आत्मा और शरीर को परिष्कृत करने के लिए एक लंबी और कठिन यात्रा करनी पड़ती है। इनका जीवन शारीरिक और मानसिक कठिनाइयों से भरा होता है, लेकिन इन सभी कठिनाइयों के बावजूद, ये महिला साधु अपने उद्देश्य के प्रति पूरी तरह समर्पित रहती हैं। तो चलिए, जानते हैं कि महिला नागा साधु बनने के लिए क्या कठिनाईयों का सामना करना पड़ता है और उनका जीवन कैसा होता है।
महिला नागा साधु बनना इतना आसान नहीं
महिला नागा साधु (How women become Naga Sadhus) बनना कोई आम बात नहीं है, ये बिल्कुल भी आसान नहीं होता। यह एक लंबी और बहुत कठिन प्रक्रिया है, जिसमें शारीरिक, मानसिक और आत्मिक तपस्या की जरूरत होती है। महिलाओं को अपनी पूरी जिंदगी भगवान की भक्ति में समर्पित करनी होती है, और इसी वजह से उनका जीवन बहुत साधारण और तपस्वी बन जाता है।
महिला नागा साधु बनने का रास्ता इतना आसान नहीं होता। ये महिलाएं बहुत कठिन साधना करती हैं और इस रास्ते पर चलने की हिम्मत बहुत कम ही लोग जुटा पाते हैं। वे जंगलों में या साधुओं के अखाड़ों में जाकर वर्षों तक कठोर तप करती हैं। उनका मुख्य उद्देश्य अपनी आत्मा को शुद्ध करना और भगवान के करीब पहुंचना होता है। इस रास्ते पर चलने के लिए उन्हें अपनी सारी सांसारिक इच्छाओं और आराम-फुर्सत को छोड़ना पड़ता है, क्योंकि यहां जीवन सिर्फ साधना और तपस्या का होता है।
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इन्हें अपनी साधना के दौरान ना सिर्फ शारीरिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है, बल्कि मानसिक रूप से भी बहुत मजबूत होना पड़ता है। ये महिलाएं समाज की नज़रों से दूर रहकर एकांत में साधना करती हैं, और यही उनकी राह को और भी मुश्किल बनाता है।
महिला नागा साधु बनने के लिए क्या करना पड़ता है?
महिला नागा साधु बनने के लिए सबसे पहले उसे ब्रह्मचर्य का पालन करना पड़ता है। ब्रह्मचर्य का मतलब होता है अपनी सभी इच्छाओं और वासनाओं पर नियंत्रण रखना। यह नियम करीब 6 से 12 साल तक चलता है, और इस दौरान महिला को एक बहुत ही संयमित और साधारण जीवन जीना होता है। मतलब, उसे अपने मन और शरीर को पूरी तरह से शुद्ध करने के लिए हर तरह की सांसारिक चीजों से दूर रहना पड़ता है।
इस समय में, महिला को खुद को मानसिक और शारीरिक रूप से तैयार करना होता है। इसका मतलब यह है कि उसे अपनी इच्छाओं और इच्छाओं से दूर रहकर, कठिन साधना करनी होती है। उसे ध्यान, साधना, और तपस्या के जरिए अपने शरीर और मन को परिष्कृत करना होता है।
अगर इस कठिन तपस्या में महिला सफल हो जाती है, तो उसे अपने गुरु से अनुमति मिलती है, और फिर वह महिला नागा साधु बनने की ओर बढ़ सकती है। इसके बाद उसका जीवन पूरी तरह से साधना में ही बसा होता है। वो समाज से दूर रहकर अपनी साधना में समय बिताती है और भगवान के करीब पहुंचने के लिए हर दिन कठिन तप करती है।
महिला नागा साधु बनने की अहम प्रक्रिया है पिंडदान
महिला नागा साधु बनने का रास्ता बहुत ही कठिन और खास होता है। सबसे पहले, जब कोई महिला नागा साधु बनती है, तो उसका सिर मुंडवाया जाता है। ये एक बहुत अहम कदम होता है, जो उसकी नई शुरुआत को दिखाता है। इसके बाद आता है पिंडदान की प्रक्रिया, जो नागा साधु बनने का सबसे बड़ा पड़ाव है।
महिला नागा साधु बनने के लिए जीते जी पिंडदान कराया जाता है, जिससे वह अपने पुराने जीवन से पूरी तरह मुक्ति पा लेती है। पिंडदान के बाद, महिला मान लेती है कि अब उसका जीवन सिर्फ भगवान की भक्ति और साधना के लिए है। अब वह समाज से दूर अपने आध्यात्मिक सफर पर निकल पड़ती है और अपना पूरा जीवन ईश्वर को समर्पित कर देती है। इस प्रक्रिया में, वह यह मानती है कि अब वह भगवान के मार्ग पर चलने वाली है, और उसकी पुरानी दुनिया अब खत्म हो गई है।
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अब बात करें महिला नागा साधु की पहचान की। महिला नागा साधु, पुरुषों से थोड़ी अलग होती हैं, खासकर उनकी पोशाक और रूप-रंग में। जहां पुरुष नागा साधु अक्सर नग्न रहते हैं, वहीं महिला नागा साधु को गेरुआ रंग के वस्त्र पहनने की अनुमति होती है। लेकिन ये वस्त्र सिले हुए नहीं होते, और यही उनकी पहचान बन जाते हैं।
महिला नागा साधु के माथे पर तिलक भी होता है और वे अपने शरीर पर भष्म (विभूति) भी लगाती हैं। यह भष्म उनके आत्मिक शुद्धि और भगवान के प्रति श्रद्धा का प्रतीक होता है। महिला नागा साधु का जीवन बहुत साधारण होता है, वे हमेशा सादा जीवन जीती हैं और उनका ध्यान पूरी तरह से भक्ति और साधना में ही लगा रहता है।
महिला नागा साधु भी करती हैं शाही स्नान