Goa Liberation Day 2024: मुगलों की सालों की गुलामी के बाद भी भारत की मुश्किलें कम नहीं हो रही थी, मुगलों के बाद भारत पर अंग्रेजों ने अपना आधिपत्य जमा लिया था, उस समय यूरोप की कई ताकतें दुनिया के अलग-अलग देशों को अपना गुलाम बना रहीं थी। ऐसे में पुर्तगाल ने भी भारत की और रुक किया और भारत के एक राज्य गोवा पर कब्ज़ा कर लिया। भारत को आज़ादी की लंबी लड़ाई लड़ने के बाद मिली, लेकिन गोवा पर पुर्तगालियों का कब्जा बना रहा। करीब 450 साल तक गोवा पर शासन करने वाले पुर्तगालियों को हटाना आसान नहीं था, क्योंकि उनका शासक नाटो का सदस्य था और उस पर हमला करना नाटो पर हमला करने जैसा होता। हालांकि, भारत ने आज़ादी के 14 साल बाद गोवा को अपना हिस्सा बनाने का फैसला किया और इसे पूरा करने में सिर्फ 36 घंटे लगे।
19 दिसंबर 1961 को भारत ने गोवा को अपने साथ जोड़ लिया था, और तभी से इस दिन को गोवा मुक्ति दिवस के रूप में मनाया जाता है। आइए आपको इस खास दिन से जुड़ी कुछ रोचक बातें बताते हैं।
गोवा को नहीं मिली थो 1947 में आज़ादी
साल 1498 में जब वास्को डी गामा भारत आया तो इसके बाद धीरे-धीरे पुर्तगाली भारत में आने लगे। कुछ ही सालों में पुर्तगालियों ने गोवा पर अपना कब्जा कर लिया। बता दें 1510 तक भारत के कई हिस्सों पर उनका शासन हो गया था। लेकिन 19वीं शताब्दी तक पुर्तगालियों के पास सिर्फ गोवा, दमन, दादर, दीव और नागर हवेली ही बच गए थे। 1947 में भारत को तो आज़ादी मिल गई और अंग्रेजों को भारत छोड़ना पड़ा था। लेकिन पुर्तगालियों ने गोवा को आज़ाद करने से मना कर दिया था।
सभी प्रयास विफल होने पर लिया सेना का सहारा
जब भारत आजाद हो गया, तो उसने गोवा को भी अपने देश का हिस्सा बनाने की कोशिशें शुरू कीं। इसके लिए भारत सरकार ने कई कदम उठाए। 1955 में भारत ने गोवा पर आर्थिक प्रतिबंध भी लगा दिया था, ताकि पुर्तगालियों पर दबाव डाला जा सके। लेकिन ये तरीका भी सफल नहीं हो पाया। जब सभी राजनयिक प्रयासों से कोई असर नहीं हुआ, तब प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने यह फैसला किया कि अब गोवा को मुक्त कराने के लिए सेना का सहारा लेना पड़ेगा। एक बार पंडित नेहरू ने अपने भाषण में कहा था कि पुर्तगालियों का गोवा पर कब्जा एक फुंसी जैसा है, जिसे हटाना जरूरी है।
पुर्तगाली सैनिकों ने भारतीय मछुआरों पर चलायीं थी गोलियां
गोवा पर हमला करना आसान नहीं था क्योंकि उस समय पुर्तगाल नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी ऑर्गेनाइजेशन (नाटो) का हिस्सा था। इसका मतलब था कि पुर्तगाल पर हमला करना नाटो पर हमला करने जैसा होता। अगर भारत ऐसा करता तो नाटो के सदस्य देश भारत के खिलाफ खड़े हो जाते और भारत पर हमला कर देते। लेकिन भारत को एक मौका मिला और यह मौका पुर्तगाल ने खुद दे दिया। उनकी एक गलती ने भारत को गोवा पर सैन्य कार्रवाई करने का रास्ता दिखा दिया।
नवंबर 1961 में पुर्तगाली सैनिकों ने भारत के मछुआरों पर गोलियां चला दी थीं, जिसमें एक मछुआरे की मौत हो गई थी। इस घटना ने पुर्तगाल के खिलाफ लोगों के गुस्से को और बढ़ा दिया। अब लोग हर हाल में गोवा को भारत का हिस्सा बनते हुए देखना चाहते थे। हालात दिन-ब-दिन बिगड़ते जा रहे थे, और इस पर काबू पाना मुश्किल हो गया था। इस स्थिति को देखते हुए प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने रक्षा मंत्री केवी कृष्णा मेनन के साथ एक आपात बैठक बुलाई। इस बैठक में तय किया गया कि अब सख्त कदम उठाए जाएंगे और पुर्तगाल के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।
ऑपरेशन विजय शुरू हुआ तो चित हुए पुर्तगाली
17 दिसंबर 1961 को प्रधानमंत्री और रक्षा मंत्री के बीच हुई बैठक के बाद गोवा को पुर्तगालियों से मुक्त कराने के लिए ऑपरेशन विजय शुरू किया गया। इसमें भारतीय वायु सेना, नौसेना और थल सेना के करीब 30 हजार सैनिकों को गोवा भेजा गया। पुर्तगालियों ने शुरुआत में इन सैनिकों का मुकाबला करने की कोशिश की और गोवा में भारतीय सैनिकों के आने वाले मुख्य रास्ते वास्को के पास एक पुल को उड़ा दिया। लेकिन भारतीय सेनाएं पीछे कहां हटने वाली थीं । वायु सेना ने पुर्तगालियों के ठिकानों पर बमबारी शुरू कर दी, जबकि थल सेना भी आगे बढ़ रही थी। अंत में पुर्तगालियों को अपनी हार माननी पड़ी और गोवा को स्वतंत्रता मिल गई।
19 दिसंबर 1961 को भारतीय नौसेना की वेबसाइट के अनुसार, पुर्तगाल के गवर्नर मेन्यू वासलो डे सिल्वा ने समर्पण की घोषणा की। रात के लगभग साढ़े आठ बजे उन्होंने समर्पण की सन्धि पर हस्ताक्षर किए जिसके बाद गोवा में पुर्तगालियों का 450 साल पुराना शासन खत्म हो गया। इसके साथ ही गोवा भारत का हिस्सा बन गया और दमन तथा दीव को भी आज़ादी मिल गई। 30 मई 1987 को गोवा को पूर्ण राज्य का दर्जा मिला और वह आधिकारिक रूप से भारत का 25वां राज्य बन गया।
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