दिल्ली में चुनावी सर्दी में जिस तरह से ठंड बढ़ रही है, ठीक वैसे ही पूर्वांचलियों के मुद्दे पर राजनीति भी गर्मा गई है। पूर्वांचल के लोग दिल्ली के लिए एक बड़ा वोट बैंक माने जाते हैं और इनका समर्थन हासिल करने के लिए दोनों प्रमुख राजनीतिक दलों, आम आदमी पार्टी (AAP) और भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। 2015 और 2020 के विधानसभा चुनावों में आम आदमी पार्टी ने पूर्वांचलियों का समर्थन हासिल किया था, लेकिन इस बार भाजपा ने इन वोटों को वापस लाने की पूरी कोशिश की है। इसके जवाब में आम आदमी पार्टी ने अपनी रणनीतियों को और तेज कर दिया है। आइए, जानते हैं कि दिल्ली की विधानसभा चुनावों में पूर्वांचलियों की भूमिका कितनी अहम है और दोनों दल कैसे इस वोट बैंक पर नजर जमाए हुए हैं।
दिल्ली में पूर्वांचलियों का वोट कितना अहम है?
दिल्ली में कुल मतदाता करीब डेढ़ करोड़ हैं, जिनमें से लगभग 40 से 45 लाख मतदाता पूर्वांचल से आते हैं। ये मतदाता दिल्ली की कुल 70 विधानसभा सीटों में से 35 सीटों पर निर्णायक भूमिका निभाते हैं। मतलब, इन सीटों पर जीत-हार का सीधा असर पूर्वांचल वोटों पर ही निर्भर करता है। दिल्ली में जहां एक ओर भाजपा अपने पूर्वांचल वोटों को बढ़ाने के लिए काम कर रही है, वहीं आम आदमी पार्टी भी इस रणनीति पर काम कर रही है कि वे किसी भी कीमत पर अपने इस वोट बैंक को बचाए रखें।
कुल वोटर | कुल सीटें | पूर्वांचली वोटर | पूर्वांचली बहुल सीटें |
---|---|---|---|
1.5 करोड़ | 70 | करीब 40-45 लाख | 35 |
किस सीट पर कितनी है पूर्वांचलियों की ताकत?
दिल्ली की कई विधानसभा सीटों पर पूर्वांचलियों का भारी दबदबा है। उदाहरण के तौर पर विकलापुरी, द्वारका, करावल नगर, मॉडल टाउन, बुराड़ी, उत्तम नगर, पटपड़गंज, लक्ष्मी नगर, बदरपुर, पालम, राजेंद्र नगर, देवली जैसी सीटें हैं जहां पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड से आए हुए पूर्वांचली वोटरों की संख्या सबसे ज्यादा है। इन क्षेत्रों में लगभग 40 से 50 प्रतिशत मतदाता पूर्वांचल से आते हैं और इनकी भूमिका इन सीटों पर बहुत महत्वपूर्ण हो जाती है। इन सीटों पर चुनावी परिणाम पूर्वांचलियों के मतों पर निर्भर करते हैं, और यही कारण है कि अब भाजपा और आम आदमी पार्टी दोनों ही इन वोटरों को अपने पक्ष में लाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं।
BJP और AAP के बीच वोट बैंक की जंग
आम आदमी पार्टी ने भाजपा पर आरोप लगाया है कि पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने पूर्वांचलियों की तुलना रोहिंग्याओं और घुसपैठियों से की है। इसके जवाब में आम आदमी पार्टी ने जेपी नड्डा के बयान का वीडियो भी जारी किया था। पार्टी के नेता संजय सिंह ने इस बयान को लेकर बीजेपी पर जोरदार हमला किया और कहा कि बीजेपी पूर्वांचलियों को टारगेट कर रही है। इसके बाद मामला और बढ़ा जब दिल्ली नगर निगम (MCD) ने अवैध बांग्लादेशी अप्रवासियों के खिलाफ कार्रवाई की बात की। MCD ने 18 दिसंबर को स्कूल मैनेजमेंट को निर्देश दिए कि अवैध बांग्लादेशी छात्रों की पहचान की जाए। इसके साथ ही, स्वास्थ्य विभाग को भी निर्देश दिए गए कि अवैध अप्रवासियों के बर्थ सर्टिफिकेट न बनाए जाएं। MCD ने यह भी कहा कि अगर बांग्लादेशी अप्रवासियों ने अवैध निर्माण कर लिया है तो उसे गिराया जाए। बीजेपी का आरोप है कि आम आदमी पार्टी अवैध बांग्लादेशी घुसपैठियों को वोटर लिस्ट में शामिल करवा रही है, जिससे उनकी पहचान और आवाज कमजोर हो रही है।
बीजेपी का जवाब: ‘AAP भ्रम फैला रही है’
बीजेपी ने आम आदमी पार्टी के इन आरोपों का खंडन किया है। पार्टी का कहना है कि जेपी नड्डा का जन्म पटना में हुआ है और उनका पूर्वांचलियों से गहरा रिश्ता है। बीजेपी का कहना है कि नड्डा के दिल में पूर्वांचलियों के प्रति अपार सम्मान और इज्जत है, और पार्टी ने हमेशा उनकी भलाई के लिए काम किया है। बीजेपी नेता और दिल्ली से सांसद मनोज तिवारी ने कहा कि आम आदमी पार्टी भ्रम फैला रही है और उसने राजनीति की नई दिशा अपनाई है। उन्होंने अरविंद केजरीवाल को सुझाव देते हुए कहा कि अगर वे इतने ही गंभीर हैं तो उन्हें बांग्लादेश में जाकर चुनाव लड़ना चाहिए।
पूर्वांचलियों को एकजुट करने की कोशिश
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि दिल्ली चुनावों में पूर्वांचलियों का वोट एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, और यही वजह है कि दोनों पार्टियां इसे अपने पक्ष में करने के लिए कड़ी मेहनत कर रही हैं। आम आदमी पार्टी के लिए यह एक मुश्किल स्थिति है क्योंकि 2015 और 2020 में उन्होंने पूर्वांचलियों के वोट से बड़ी जीत हासिल की थी। अब बीजेपी ने इन मतदाताओं को लुभाने के लिए कई रणनीतियों को अपनाया है। वहीं, आम आदमी पार्टी भी इस वोट बैंक को खोने नहीं देना चाहती है। पार्टी ने अपनी योजनाओं में पूर्वांचलियों की अहमियत को समझते हुए कुछ खास कदम उठाए हैं, ताकि उनका समर्थन बना रहे। इन दोनों पार्टियों के बीच यह राजनीतिक जंग अब और भी तेज हो चुकी है।
दिल्ली चुनाव में पूर्वांचलियों का बड़ा योगदान
कुल मिलाकर देखा जाए तो दिल्ली विधानसभा चुनाव में पूर्वांचलियों का वोट बैंक दोनों प्रमुख पार्टियों के लिए एक बड़ा मुद्दा बन चुका है। जहां बीजेपी ने इसे अपनी तरफ लाने के लिए अपनी रणनीतियां बनाई हैं, वहीं आम आदमी पार्टी भी इसे बचाए रखने के लिए पूरी ताकत लगा रही है। इस जंग में पूर्वांचलियों की भूमिका और उनका वोट बैंक इस बार निर्णायक साबित हो सकता है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले दिनों में किस पार्टी को इस अहम वोट बैंक का समर्थन मिलता है और क्या दिल्ली चुनावों में पूर्वांचलियों का असर वोटों की गिनती में नजर आएगा।
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