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पीएम मोदी को मिला 20वां अंतरराष्ट्रीय सम्मान, कुवैत के सर्वोच्च सम्मान ‘द ऑर्डर ऑफ मुबारक अल कबीर’ से हुए सम्मानित

रविवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को कुवैत का सबसे बड़ा सम्मान ‘द ऑर्डर ऑफ मुबारक अल कबीर’ दिया गया। कुवैत के अमीर, शेख मेशल अल-अहमद अल-जबर अल सबा ने उन्हें यह सर्वोच्च नागरिक सम्मान प्रदान किया। बता दें प्रधानमंत्री मोदी शनिवार को कुवैत पहुंचे थे और पीएम मोदी इस समय कुवैत की दो दिवसीय यात्रा पर हैं।

प्रधानमंत्री मोदी को यह 20वां अंतरराष्ट्रीय सम्मान मिला है। कुवैत ने उन्हें “द ऑर्डर ऑफ मुबारक अल कबीर” से सम्मानित किया, जो एक नाइटहुड ऑर्डर है। यह सम्मान राष्ट्राध्यक्षों, विदेशी शाही परिवारों के सदस्य और संप्रभुओं को दोस्ती का प्रतीक मानकर दिया जाता है। इससे पहले यह सम्मान बिल क्लिंटन, प्रिंस चार्ल्स और जॉर्ज बुश जैसे प्रमुख विदेशी नेताओं को भी मिल चुका है।

गार्ड ऑफ ऑनर देकर पीएम मोदी का हुआ सम्मान  

रविवार को प्रधानमंत्री कुवैत के बयान पैलेस पहुंचे, जहां उनका औपचारिक स्वागत हुआ और उन्हें गार्ड ऑफ ऑनर दिया गया। कुवैत के प्रधानमंत्री महामहिम शेख अहमद अब्दुल्ला अल-अहमद अल-सबाह ने उनका बड़ा गर्मजोशी से स्वागत किया।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कुवैती अमीर शेख मेशाल अल-अहमद अल-जबर अल-सबाह के साथ विस्तार से बातचीत की। इस बातचीत में भारत और कुवैत के रिश्तों को और मजबूत करने पर जोर दिया गया। खासतौर पर व्यापार, निवेश और ऊर्जा के क्षेत्रों में दोनों देशों के बीच सहयोग और व्यापार को बढ़ाने पर चर्चा की गई।

43 साल बाद कोई भारतीय प्रधानमंत्री पहुंचा कुवैत 

 

प्रधानमंत्री मोदी शनिवार को कुवैत दो दिवसीय यात्रा पर पहुंचे। यह 43 सालों में किसी भारतीय प्रधानमंत्री की कुवैत की पहली यात्रा है। मोदी ने शनिवार को यहां भारतीय समुदाय के एक कार्यक्रम को संबोधित किया और भारतीय श्रमिकों के शिविर का दौरा भी किया। इससे पहले 1981 में इंदिरा गांधी कुवैत यात्रा पर गई थीं। भारत, कुवैत के प्रमुख व्यापारिक साझेदारों में से एक है और कुवैत में भारतीय समुदाय सबसे बड़ा प्रवासी समुदाय है।

पहले खजूर और घोड़ों का होता था व्यापार 

भारत और कुवैत के बीच पुराने समय से अच्छे संबंध रहे हैं, जिनका इतिहास में भी जिक्र है। कुवैत में तेल के मिलने से पहले भी दोनों देशों के बीच दोस्ती मजबूत थी। पहले कुवैत और भारत का व्यापार खजूर और घोड़ों पर आधारित था। कुवैती नाविक शत्त-अल-अरब और भारत के पश्चिमी तटों के बीच व्यापार करते थे, और यह व्यापार हर साल होता था। हालांकि, द्वितीय विश्व युद्ध के बाद घोड़ों का व्यापार बंद हो गया। फिर कुछ समय तक मोती और सागौन जैसी लकड़ियों का व्यापार इस संबंध का अहम हिस्सा बन गया।

 

 

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