SC ने ‘समलैंगिक विवाह’ को लेकर दायर पुनर्विचार याचिकाओं को किया खारिज, कहा-‘फैसले में कोई खामी नहीं’

सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को ‘समलैंगिक विवाह’ को कानूनी मान्यता देने के खिलाफ अपनी ऐतिहासिक निर्णय की समीक्षा करने की याचिकाओं को खारिज कर दिया। बता दें कि इससे पहले दिए गए फैसले में सर्वोच्च न्यायालय ने यह कहा था कि समलैंगिक विवाहों को कानूनी मान्यता देने के लिए संविधान में कोई आधार नहीं है। सुप्रीम कोर्ट का ये फैसला LGBTQIA+ कार्यकर्ताओं और समर्थकों के बीच व्यापक बहस और निराशा का कारण बना था।

सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा

गुरुवार को इस मामले पर पांच न्यायाधीशों की पीठ ने समलैंगिक विवाह पर 2023 के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं की सुनवाई की। जस्टिस बीआर गवई, सूर्यकांत, बीवी नागरथना, पीएस नारसिम्हा और दीपांकर दत्ता की पीठ ने चेम्बर में इन याचिकाओं की समीक्षा की। बता दें कि इन याचिकाओं पर खुले कोर्ट में कोई सुनवाई नहीं हुई। अपने नए आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पहले के फैसले में कोई स्पष्ट गलती नहीं है। पीठ ने यह भी स्पष्ट किया कि पहले के निर्णय में व्यक्त विचार कानून के अनुसार थे और इसमें कोई और हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है। जिसके बाद कोर्ट ने फैसले पर पुनर्विचार की मांग करने वाली सभी याचिकाएं खारिज कर दी।

 Supreme Court Rejects Review Petitions on 'Same-Sex Marriage

पिछली सुनवाई पर कोर्ट ने क्या कहा था

इस मामले पर पिछले साल जुलाई में सुनवाई हुई थी। इस दौरान याचिकाकर्ताओं ने इस मुद्दे में सार्वजनिक हित को देखते हुए खुले अदालत में सुनवाई की मांग की थी। जस्टिस एसके कौल, एस रवींद्र भट, पूर्व मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ और जस्टिस कोहली के रिटायर होने के बाद एक नई पीठ का पुनर्गठन किया गया। जस्टिस संजीव खन्ना, जो अब मुख्य न्यायाधीश हैं ने पिछले साल खुद को मामले से अलग कर लिया था।

अक्टूबर 2023 में तब के भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली एक संविधान पीठ ने समलैंगिक विवाहों को कानूनी मान्यता देने से इनकार कर दिया था। 3-2 के फैसले में अदालत ने समलैंगिक जोड़ों के लिए नागरिक संघों की अनुमति देने से भी इनकार कर दिया था।

‘कानून बनाने के लिए संसद सबसे उपयुक्त मंच’

सुनवाई के दौरान जस्टिस भट ने बहुमत का मत लिखा, जबकि जस्टिस कौल, मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ के साथ अल्पमत में रहे। हालांकि, सभी न्यायाधीश इस बात पर एकमत थे कि ‘विशेष विवाह अधिनियम 1954’ में समलैंगिक विवाहों की अनुमति देने के लिए कोई संशोधन करना संभव नहीं है। बहुमत के फैसले में यह कहा गया कि अदालत विधायी क्षेत्र में हस्तक्षेप नहीं करना चाहती है। कोर्ट ने कहा कि समलैंगिक विवाह को कानूनी दर्जा देने पर बहस और कानून बनाने के लिए संसद सबसे उपयुक्त मंच है।

तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने क्या कहा था

अपने अल्पमत फैसले में तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ और जस्टिस कौल ने समलैंगिक जोड़ों के लिए नागरिक संघ के विस्तार का समर्थन किया था। बता दें कि नागरिक संघ विवाह से अलग होता है। ‘नागरिक संघ’ का दर्जा देने से समलैंगिक जोड़ों को वे विशेष अधिकार और जिम्मेदारियां मिलतीं हैं, जो सामान्यतः विवाहित जोड़ें करते हैं।

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पुनर्विचार याचिकाओं में याचिकाकर्ताओं ने क्या कहा

वहीं, अपने पुनर्विचार याचिकाओं में याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला समलैंगिक जोड़ों को ‘क्लोजेट’ में रहने और झूठी जिंदगी जीने के लिए मजबूर करता है।

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