Naga Sadhu in Mahakumbh: काशी विश्वनाथ मंदिर बचाने को नागा साधुओं ने लड़ी थी औरंगज़ेब से लड़ाई, जानिए पूरा इतिहास

Naga Sadhu in Mahakumbh: काशी विश्वनाथ मंदिर बचाने को नागा साधुओं ने लड़ी थी औरंगज़ेब से लड़ाई, जानिए पूरा इतिहास

Naga Sadhu in Mahakumbh: महाकुंभ 2025 मेले में वैसे तो बहुत कुछ है जो आपको दिव्यता का अनुभव करा देगा, लेकिन अभी भी यहां आकर्षण का सबसे बड़े केंद्र नागा साधु ही है। कुंभ मेले में सबसे ज्यादा चर्चा नागा संतों या नागा साधुओं की होती है। नागा साधुओं (Naga Sadhu in Mahakumbh) को हमेशा नहीं देखा जा सकता। कुंभ जैसे दुर्लभ आयोजनों में ही आम लोग नागा साधुओं का दर्शन कर पाते हैं। नागा साधु अपने विचित्र भेष-भूषा के कारण अलग ही दिखते हैं।

नागा साधुओं (Naga Sadhu in Mahakumbh) के बारे में बहुत कुछ लिखा पढ़ा गया है। लेकिन अभी हम में से बहुत से लोग ऐसे हैं जो इनके बारे में बहुत अधिक जानकारी नहीं रखते हैं। आज हम इस आर्टिकल में नागा साधुओं के बारे में कुछ अनजानी बातों के बारे में बात करेंगे।

नागा साधुओं ने धर्म की रक्षा के लिए उठाए थे अस्त्र

क्या आप जानते हैं कि नागा साधुओं ने हिंदू धर्म की रक्षा के लिए न केवल हथियार उठाए बल्कि अपने प्राणों की आहुति भी दी। भारत के मध्यकालीन इतिहास में एक उल्लेख मिलता है जब उन्होंने मुगल बादशाह औरंगजेब (Mughal Emperor Aurangzeb) के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी। जैसा कि दावा किया जाता है, औरंगजेब के शासनकाल में कई मंदिरों को तोड़ दिया गया था और उनकी जगह मस्जिदें बनाई गई थीं।

औरंगज़ेब से की थी एक बार काशी विश्वनाथ मंदिर की रक्षा

इतिहास में उल्लेख है कि मुगल बादशाह औरंगजेब ने वाराणसी स्थित काशी विश्वनाथ मंदिर (Kashi Vishwanath Temple Varanasi) को ध्वस्त करने की कोशिश की थी। लेकिन नागा साधुओं की वजह से वह अपने पहले प्रयास में सफल नहीं हो सका। औरंगजेब की मुगल सेना ने 1664 में पहली बार काशी विश्वनाथ मंदिर पर हमला किया था। लेकिन नागा साधुओं ने मंदिर की रक्षा की और औरंगजेब की सेना को हरा दिया।

मुगलों की इस हार का वर्णन लेखक जेम्स जी लोचटेफेल्ड (James G. Lochtefeld ) ने अपनी पुस्तक ‘द इलस्ट्रेटेड इनसाइक्लोपीडिया ऑफ हिंदूइज्म’ (The Illustrated Encyclopedia of Hinduism) के पहले खंड में किया है। जेम्स जी लोचटेफेल्ड की इस पुस्तक के अनुसार वाराणसी में महानिर्वाणी अखाड़े (Mahanirvani Akhada) के नागा साधुओं ने औरंगजेब की सेना के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी। इस लड़ाई में नागा साधुओं की जीत हुई और मुगलों की हार हुई। जेम्स जी लोचटेफेल्ड को यह ऐतिहासिक घटना वाराणसी में महानिर्वाणी अखाड़े के अभिलेखागार में एक हस्तलिखित पुस्तक में मिली। उन्होंने अपनी पुस्तक में इस घटना का वर्णन ‘ज्ञानवापी युद्ध’ (Battle of Jnanavapi) के रूप में किया है।

1664 में किया था औरंगज़ेब ने पहली बार काशी विश्वनाथ मंदिर पर हमला

1664 में काशी विश्वनाथ मंदिर (Kashi Vishwanath Temple) पर औरंगजेब के हमले का जिक्र यदुनाथ सरकार की ऐतिहासिक किताब ‘दशनामी नागा संतों का इतिहास’ (History of the Dasnami Naga Saints’ by Yadunath Sarkar) में भी मिलता है। यदुनाथ सरकार लिखते हैं कि नागा संतों ने धर्म और मंदिर की रक्षा के लिए भीषण युद्ध लड़ा। उनके अनुसार यह युद्ध सूर्योदय से सूर्यास्त तक चला। अंत में दशनामी नागा संतों ने खुद को वीर साबित किया।

मंदिर की रक्षा के लिए 40,000 नागा संतों ने अपने प्राणों की आहुति दी थी

काशी विश्वनाथ मंदिर पर पहला हमला विफल होने के चार साल बाद 1669 में औरंगजेब ने वाराणसी पर हमला किया। इस बार मुगल सेना ने मंदिर को तहस-नहस कर दिया। औरंगजेब जानता था कि यह मंदिर हिंदुओं की आस्था और भावनाओं से जुड़ा हुआ है, इसलिए उसने सुनिश्चित किया कि इसका दोबारा निर्माण न हो सके। उसने मंदिर के स्थान पर ज्ञानवापी मस्जिद बनवाई। यह मस्जिद आज भी मंदिर परिसर में मौजूद है। स्थानीय लोककथाओं और मौखिक कहानियों के अनुसार, उस समय काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग की रक्षा करते हुए करीब 40,000 नागा संतों ने अपने प्राणों की आहुति दी थी।

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