Republic Day 2025: 26 जनवरी को भारत के गणतंत्र दिवस के मौके पर कर्तव्य पथ (पहले राजपथ) पर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने तिरंगा फहराया। इसके साथ ही 21 तोपों की सलामी भी दी गई। इस बार समारोह में इंडोनेशिया के राष्ट्रपति मुख्य अतिथि के रूप में शामिल हुए और भारत की विकास यात्रा और ताकत का नजारा देखा।
लेकिन क्या आप जानते हैं कि 21 तोपों की सलामी की परंपरा कहां से शुरू हुई? और क्या इसमें सच में 21 तोपें इस्तेमाल होती हैं? इसके पीछे की कहानी और इसमें इस्तेमाल होने वाली तोपों के बारे में जानना काफी दिलचस्प है। साथ ही, यह सलामी किन खास मौकों पर दी जाती है? आइए, इन सवालों के जवाब जानते हैं!
1950 को हुआ था पहली परेड का आयोजन
भारत में पहली गणतंत्र दिवस परेड 26 जनवरी 1950 को आयोजित हुई, जब हमारा संविधान लागू हुआ। यही वह दिन था जब पहली बार गणतंत्र दिवस की परेड का आयोजन किया गया। हालांकि, इससे पहले ब्रिटिश शासन के दौरान भी शाही परेड होती थी। आज़ादी के बाद इस परंपरा को जारी रखने का फैसला लिया गया। जब देश के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने शपथ ली, तब से यह परेड गणतंत्र दिवस का हिस्सा बन गई।
तोपों की सलामी की कहानी
26 जनवरी 1950 को जब भारत का संविधान लागू हुआ, तो डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने पुराने संसद भवन के दरबार हॉल में राष्ट्रपति पद की शपथ ली। इसके बाद वह घोड़ा गाड़ी (बग्घी) में सवार होकर राष्ट्रपति भवन से निकले और लगभग पांच मील दूर इरविन स्टेडियम (आज का मेजर ध्यानचंद स्टेडियम या नेशनल स्टेडियम) पहुंचे।
यहां उन्होंने पहली बार गणतंत्र भारत में तिरंगा फहराया। इस मौके पर 21 तोपों की सलामी दी गई, जो भारत सरकार की आधिकारिक जानकारी के अनुसार मान्य है। हालांकि, कुछ जगहों पर यह भी कहा जाता है कि पहली बार 31 तोपों की सलामी दी गई थी।
साल 1971 में इस परंपरा में बदलाव किया गया, और तभी से 21 तोपों की सलामी को ही मानक बना दिया गया। अब हर गणतंत्र दिवस पर इसी परंपरा का पालन किया जाता है।
तोपों की सलामी की प्रक्रिया में 52 सेकंड लगते हैं
रामचंद्र गुहा की किताब इंडिया आफ्टर गांधी में बताया गया है कि 26 जनवरी 1950 को देश के पहले राष्ट्रपति, डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने पहली परेड का निरीक्षण किया। इसके बाद झंडा फहराया गया और उसी समय आर्टिलरी द्वारा 21 तोपों की सलामी दी गई।
यह सलामी तीन राउंड में पूरी की जाती है, जिसमें हर राउंड में सात फायर किए जाते हैं। पूरी प्रक्रिया में 52 सेकंड लगते हैं, क्योंकि राष्ट्रगान भी ठीक 52 सेकंड में समाप्त होता है। जैसे ही झंडा फहराया जाता है, राष्ट्रगान शुरू हो जाता है, और बैकग्राउंड में तोपों की सलामी दी जाती है, जिससे यह क्षण बेहद खास और ऐतिहासिक बन जाता है।
किन मौकों पर दिया जाता है यह खास सम्मान?
21 तोपों की सलामी को देश में सबसे बड़ा सम्मान माना जाता है। यह सलामी खास मौकों पर दी जाती है, जैसे गणतंत्र दिवस और स्वाधीनता दिवस के समारोहों में, या किसी विदेशी राष्ट्राध्यक्ष के स्वागत में। यह परंपरा बेहद गर्व और सम्मान का प्रतीक है।
साल 1971 के बाद से 21 तोपों की सलामी राष्ट्रपति और विदेशी राष्ट्राध्यक्षों को दिया जाने वाला सबसे ऊंचा सम्मान बन गई है। इसके अलावा, यह सलामी नए राष्ट्रपति के शपथ ग्रहण जैसे विशेष अवसरों पर भी दी जाती है।
सिर्फ 7 तोपों का होता है इस्तेमाल
21 तोपों की सलामी में असल में केवल 7 तोपों का इस्तेमाल होता है। यह सुनकर आपको थोड़ा हैरानी हो सकती है, लेकिन ऐसा ही होता है। सलामी के दौरान 21 गोले दागे जाते हैं, लेकिन ये काम 7 तोपों से किया जाता है। इसके अलावा एक अतिरिक्त तोप भी रिज़र्व में रहती है, यानी कुल 8 तोपें मौके पर मौजूद होती हैं।
सलामी के वक्त हर तोप से एक-एक करके तीन गोले दागे जाते हैं। इन गोलों के बीच एक तय अंतराल होता है। इस पूरे समारोह को अंजाम देने के लिए करीब 122 जवानों की एक खास टीम होती है, जिसका मुख्यालय मेरठ में है।
इस सलामी के लिए जो गोले इस्तेमाल किए जाते हैं, वे खास तौर पर समारोह के लिए बनाए जाते हैं। ये गोले किसी भी तरह का नुकसान नहीं पहुंचाते, बल्कि केवल धुआं और तोप की गूंज पैदा करते हैं।