प्रयागराज महाकुंभ में सोमवार को सनातन धर्म संसद का आयोजन हुआ। इस दौरान एक बड़ा फैसला लिया गया, जिसमें सनातन बोर्ड बनाने का प्रस्ताव पारित किया गया। यह प्रस्ताव सनातन धर्म के प्रचार-प्रसार और धार्मिक संस्थाओं को स्वतंत्र बनाने के लिए है। हालांकि, इस प्रस्ताव के साथ एक बड़ा पेंच सामने आ गया। प्रस्ताव को तो पास कर दिया गया, लेकिन अखाड़े और शंकराचार्य इस बैठक में शामिल नहीं हुए। इससे सवाल उठने लगे हैं कि क्या इस बोर्ड का कोई असर होगा अगर प्रमुख धार्मिक नेता ही इसे स्वीकार नहीं कर रहे हैं?
सनातन बोर्ड का क्या है मसौदा?
सनातन बोर्ड का मसौदा तैयार करने के लिए देवकीनंदन ठाकुर महाराज ने प्रस्ताव रखा। इसके तहत एक 11 सदस्यीय बोर्ड बनेगा, जिसमें प्रमुख संतों और शंकराचार्यों को शामिल किया जाएगा। इस बोर्ड का उद्देश्य धार्मिक संस्थाओं को सरकार से मुक्त कराना, मठ-मंदिरों में गौशाला और गुरुकुल की स्थापना करना, गरीब सनातन परिवारों को आर्थिक सहायता देना, और लव जिहाद तथा धर्मांतरण जैसे मुद्दों पर काम करना होगा।
क्या है सनातन बोर्ड के गठन का उद्देश्य?
मठ-मंदिरों की स्वतंत्रता: सनातन बोर्ड का एक मुख्य उद्देश्य मठ-मंदिरों को सरकारी नियंत्रण से बाहर निकालना है। इससे इन धार्मिक स्थानों को अधिक स्वतंत्रता मिलेगी और वे अपनी गतिविधियां और विकास अपनी मर्जी से कर सकेंगे। गौशाला और गुरुकुल की स्थापना: बोर्ड का यह भी कहना है कि मठ-मंदिरों में गौशाला और गुरुकुल स्थापित किए जाएं ताकि सनातन धर्म के शिक्षाओं का प्रचार हो सके और जरूरतमंदों को मदद मिल सके। गरीब परिवारों की मदद: बोर्ड गरीब सनातन परिवारों को आर्थिक सहायता देने की योजना पर काम करेगा, ताकि उन परिवारों की स्थिति में सुधार हो सके। लव जिहाद और धर्मांतरण पर रोक: बोर्ड का एक और उद्देश्य लव जिहाद और धर्मांतरण जैसी घटनाओं को रोकना है, जो समाज में विवाद पैदा करते हैं। इसके लिए ठोस कदम उठाए जाने का प्रस्ताव है।
अखाड़े और शंकराचार्य क्यों नहीं आए?
यहां सबसे बड़ा सवाल यह है कि अखाड़े और शंकराचार्य इस प्रस्ताव में क्यों शामिल नहीं हुए? इस बैठक में उनके न आने से बहुत सारे सवाल उठे हैं। अखाड़ों का कहना है कि अभी तक उनके साथ इस विषय पर कोई बैठक नहीं हुई, इसलिए वे इस प्रस्ताव को लेकर पूरी तरह आश्वस्त नहीं हैं। वहीं, शंकराचार्य भी इस मुद्दे पर चुप्पी साधे हुए हैं और उन्होंने इस पर कोई बयान नहीं दिया है। ऐसे में, सवाल यह है कि अगर इन प्रमुख धार्मिक नेताओं का समर्थन नहीं मिलता, तो क्या इस बोर्ड का गठन सही दिशा में जाएगा?
क्या होगा अगला कदम?
अब सवाल यह है कि अगर अखाड़े और शंकराचार्य इस बोर्ड के गठन से नहीं जुड़ते हैं, तो क्या इस प्रस्ताव का असर होगा? इस स्थिति में यह संभावना है कि धर्म के बड़े संगठन और प्रमुख संत इस प्रस्ताव को खारिज कर सकते हैं। इस पर अगर कोई समझौता नहीं हुआ, तो यह बोर्ड सिर्फ एक कागज पर रह सकता है और इसका प्रभाव सीमित हो सकता है। सरकार भी इस मुद्दे में हाथ डाल सकती है। अगर यह प्रस्ताव बिना सभी धार्मिक संगठनों की सहमति के लागू होता है, तो हो सकता है कि इसे सरकारी समर्थन नहीं मिले और इसके प्रभाव को लेकर अनिश्चितता बनी रहे।
क्या सनातन धर्म को मिलेगा इससे फायदा?
सनातन बोर्ड का गठन अगर सही ढंग से होता है, तो यह सनातन धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए एक महत्वपूर्ण कदम हो सकता है। मठ-मंदिरों की स्वतंत्रता से धार्मिक गतिविधियों को बढ़ावा मिलेगा और समाज में सनातन धर्म को लेकर एक सकारात्मक माहौल बन सकता है। लेकिन, जब तक प्रमुख संत और धार्मिक संगठनों का समर्थन नहीं मिलता, तब तक इसे लागू करना मुश्किल हो सकता है।
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