प्रयागराज, जिसे पहले इलाहाबाद कहा जाता था, भारतीय इतिहास और धार्मिक दृष्टिकोण से एक अहम शहर है। ये जगह महाकुंभ जैसे बड़े आयोजन के लिए दुनिया भर में प्रसिद्ध है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि मुगलों का भी इस नगरी से गहरा संबंध रहा है? मुगलों ने न सिर्फ यहां कई निर्माण कराए, बल्कि कुंभ के समय यहां की धार्मिक गतिविधियों में भी हिस्सा लिया। इस लेख में जानिए कैसे मुगलों ने प्रयागराज की ऐतिहासिक और धार्मिक धारा को प्रभावित किया।
अकबर ने क्यों बनवाया किला और इबादतखाना?
मुगल सम्राट अकबर के शासन में प्रयागराज की अहमियत और बढ़ गई थी। 1567 में अकबर ने कड़ा के युद्ध में बगावत को कुचला और फिर प्रयागराज पहुंचे। अकबर को संगम तट बहुत भाया और यहीं उसने एक किला बनाने की ठानी। आठ साल बाद, यानी 1575 में, अकबर ने संगम तट पर किले और शाही नगर की नींव रखी और इस क्षेत्र का नाम इलाहाबास रखा। इलाहाबास का मतलब होता है “ईश्वर का स्थान”। यही नहीं, अकबर ने यहां एक इबादतखाना भी बनवाया, जहां अलग-अलग धर्मों के लोग अपने विचारों की चर्चा करते थे। किंतु, इस इबादतखाने में जो धार्मिक चर्चाएं हो रही थीं, वो अकबर को पसंद नहीं आईं। वो चाहते थे कि धार्मिक चर्चाएं बिना विवाद के हों, लेकिन इबादतखाने में तो धर्म के नाम पर ही झगड़े होने लगे। इस कारण अकबर ने इबादतखाना बंद करवा दिया और कहा कि धार्मिक चर्चाएं सिर्फ कुंभ जैसे आयोजनों में ही हो सकती हैं। यही नहीं, अकबर के दरबार में पुर्तगाली मिशनरी ने उन्हें ईसाई धर्म अपनाने की कोशिश भी की, लेकिन अकबर ने इसका विरोध किया और अपने धर्म पर स्थिर रहे।
जहांगीर और शाहजहां के योगदान
अकबर के बाद, उनके बेटे जहांगीर ने भी प्रयागराज में कई निर्माण कराए। जहांगीर ने अकबर द्वारा बनाए गए किले में रहकर कुछ और महत्वपूर्ण कार्य किए। 1611 में, उन्होंने किले में काले पत्थरों से एक सिंहासन बनवाया और फिर उसे आगरा भेज दिया। इसके अलावा, जहांगीर ने मौर्यकाल के अशोक स्तंभ को फिर से स्थापित कराया।
जहांगीर के बाद शाहजहां का समय आया। शाहजहां ने अपने बेटे दारा शिकोह को प्रयाग का सूबेदार नियुक्त किया था। दारा शिकोह ने कुंभ मेले के दौरान संगम तट पर साधु-संतों के साथ शास्त्रार्थ की परंपरा शुरू की थी। वो खुद भी उपनिषदों का अध्ययन करते थे और उनके इस काम को संतों ने सराहा था। लेकिन जब औरंगजेब ने गद्दी संभाली, तो उसने दारा के कामों पर रोक लगा दी और साधु-संतों को तकलीफ पहुंचानी शुरू कर दी।
औरंगजेब और कुंभ नगरी
अब बात करते हैं औरंगजेब की, जो खुद भी कुंभ में भाग लिया करता था। औरंगजेब का कुंभ नगरी से गहरा कनेक्शन था। वो भी जानता था कि गंगा जल में विशेष महत्व है और इस जल को पवित्र मानता था। यही वजह थी कि वो हमेशा गंगा जल साथ रखता था और इसका इस्तेमाल न केवल पूजा में करता था, बल्कि नाश्ते में भी इसे शामिल करता था। फ्रांसीसी यात्री बर्नियर ने यह भी लिखा था कि औरंगजेब गंगा जल को स्वर्ग का जल मानता था और यही कारण था कि वह अपने साथ हमेशा गंगा जल रखता था।
इतिहासकारों के अनुसार, औरंगजेब ने प्रयागराज में एक मस्जिद का भी निर्माण कराया था, जिसे “हरित मस्जिद” के नाम से जाना जाता है। हालांकि, कुछ इतिहासकारों का कहना है कि यह मस्जिद एक मंदिर को तोड़कर बनाई गई थी। यही नहीं, औरंगजेब ने बनारस के कोतवाल को आदेश दिया था कि जो हिंदू तीर्थयात्रा पर जा रहे हैं, उन्हें तंग न किया जाए। यह आदेश दिखाता है कि औरंगजेब ने तीर्थयात्रियों को परेशान करने की बजाय उनकी मदद की।
मुगलों का कुंभ नगरी से गहरा कनेक्शन
कुल मिलाकर, मुगलों ने प्रयागराज और कुंभ नगरी से अपना गहरा संबंध बनाए रखा। अकबर ने इबादतखाना बनवाया, जहां अलग-अलग धर्मों के विचारों का आदान-प्रदान होता था, वहीं जहांगीर और शाहजहां ने शहर में कई निर्माण कार्य किए। औरंगजेब ने न सिर्फ धार्मिक स्थानों का निर्माण किया, बल्कि गंगा जल को पवित्र मानते हुए उसे अपने साथ रखा। प्रयागराज की महाकुंभ नगरी में मुगलों का योगदान आज भी देखने को मिलता है, और उनके द्वारा किए गए निर्माण और धार्मिक गतिविधियां इस शहर की ऐतिहासिक धारा को जीवित बनाए रखती हैं।
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