Ganga Water: गंगा नदी हिंदू धर्म में अत्यधिक आध्यात्मिक महत्व रखती है और दुनिया के सबसे बड़े धार्मिक आयोजन महाकुंभ मेले में केंद्रीय भूमिका निभाती है। हिंदुओं का मानना है कि कुंभ के दौरान गंगा के पवित्र जल (Ganga Water) में स्नान करने से आत्मा शुद्ध होती है, पाप धुल जाते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस नदी को एक दिव्य देवी, गंगा माता माना जाता है, जो मानवता के पापों को साफ़ करने के लिए पृथ्वी पर अवतरित हुईं।
महाकुंभ, अर्ध कुंभ जैसे धार्मिक आयोजनों पर दुनिया भर से तीर्थयात्री पवित्र स्नान करने के लिए प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में इकट्ठा होते हैं। इन सभी जगहों में प्रयागराज का सबसे ज्यादा धार्मिक महत्व (Ganga Water) है। प्रयागराज में पवित्र गंगा, यमुना और पौरणिक सरस्वती नदी का मिलन स्थल संगम तट है। यहां ना केवल कुंभ जैसे आयोजनों में बल्कि माघ मेला, मौनी अमावस्या और मकर संक्रांति जैसे पर्वों पर हर साल लोग भारी संख्या में स्नान करने के लिए एकत्रित होते हैं। गंगा हिंदू अनुष्ठानों, दाह संस्कार और प्रसाद के लिए भी आवश्यक है, जो जीवन, पवित्रता और मुक्ति का प्रतीक है।
गंगाजल को कहते हैं एंटीबायोटिक
अपने असाधारण सेल्फ पूरीफिकेशन क्वालिटीज़ के कारण गंगा जल (Ganga Water Is Antibiotic) को नेचुरल एंटीबायोटिक कहा जाता है। वैज्ञानिकों ने पता लगाया है कि नदी में बैक्टीरियोफेज होते हैं, जो वायरस होते हैं जो हानिकारक बैक्टीरिया को मारते हैं और पानी को सड़ने से रोकते हैं। इसके अतिरिक्त, गंगा जल का हाई ऑक्सीजन लेवल और अद्वितीय मिनरल कम्पोजीशन इसे लंबे समय तक ताजा रहने में मदद करती है। प्राचीन काल से, हिंदू इसे पवित्र और औषधीय मानते रहे हैं, अनुष्ठानों में इसका उपयोग करते हैं, शुद्धिकरण के लिए इसे पीते हैं और यहां तक कि इसे बिना खराब हुए वर्षों तक संग्रहीत करते हैं। ये नेचुरल एंटीमाइक्रोबियल गुण गंगा जल को दुनिया की नदियों के बीच अद्वितीय बनाते हैं, जिससे इसे आध्यात्मिक अमृत की प्रतिष्ठा मिलती है।
वैज्ञानिकों ने भी की है गंगा जल के शुद्धता की पुष्टि
भारतीय वैज्ञानिकों ने भी गंगा के पानी (Ganga Water Purity) की रहस्यमय ‘विशेष शक्ति’ के वैज्ञानिक आधार को माना है। वैज्ञानिक भी गंगा जल को दिव्य अमृत मानते हैं। बीते दशक में चंडीगढ़ स्थित इंस्टीट्यूट ऑफ माइक्रोबियल टेक्नोलॉजी (IMTECH) के माइक्रोबायोलॉजिस्ट ने गंगा के पानी की विशेष विशेषताओं का अध्ययन किया था। उस स्टडी में पहली बार कई बैक्टीरियोफेज पाए हैं, जो इसे शुद्ध रखते हैं। बैक्टीरियोफेज एक प्रकार का वायरस है जो बैक्टीरिया को खाता है। इससे गंगा जल के स्व-शुद्धिकरण गुणों का रहस्य भी सुलझ गया।
गंगा जल में मौजूद हैं बैक्टीरियोफेज
गंगा के ताजे पानी के तलछट में कई वायरस रहते हैं, जिन्हे बैक्टीरियोफेज (Bacteriophages) कहा जाता है। ये बैक्टीरियोफेज कुछ क्लिनिकल आइसोलेट्स या वायरल स्ट्रेन के खिलाफ सक्रिय हैं और मल्टी-ड्रग प्रतिरोधी के खिलाफ इस्तेमाल किया जा सकता है। गंगा जल का उपयोग तपेदिक, टाइफाइड, निमोनिया, हैजा, पेचिश, डायरिया और मेनिनजाइटिस आदि के इलाज के लिए किया जा सकता है। गंगा जल के बैक्टीरियोफेज में विशिष्ट जीवाणुनाशक विशेषताएं हैं।
प्रदूषित शहरों से होकर बहने के बावजूद गंगा अभी भी कैसे शुद्ध है?
कानपुर जैसे प्रदूषित शहरों से होकर बहने के बावजूद, गंगा नदी (Bacteriophages in Ganga Water) अपने अद्वितीय स्व-सफाई गुणों के कारण अपनी पवित्रता बरकरार रखती है। वैज्ञानिक इसका श्रेय बैक्टीरियोफेज की उपस्थिति को देते हैं, जो हानिकारक बैक्टीरिया को मारकर जलजनित बीमारियों को रोकते हैं। नदी में असाधारण रूप से उच्च ऑक्सीजन धारण क्षमता है, जो पोलूटेंट्स को प्राकृतिक रूप से तोड़ने में मदद करती है।
इसके अतिरिक्त, पानी में मौजूद हिमालयी खनिज और तलछट नेचुरल प्यूरीफायर के रूप में कार्य करते हैं। प्राचीन ग्रंथ और आधुनिक शोध इस बात की पुष्टि करते हैं कि गंगा का पानी वर्षों तक संग्रहीत रहने पर भी सड़न से बचाता है। जबकि प्रदूषण एक चुनौती बना हुआ है, नदी का प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र और सूक्ष्म जीव इसकी शुद्धता और पवित्र स्थिति को बनाए रखने के लिए लगातार काम करते हैं।
गंगा जल की शुद्धता पर हुए हैं कई रिसर्च
कई वैज्ञानिक अध्ययनों ने गंगा जल के अद्वितीय सेल्फ पूरीफिकेशन क्वालिटीज़ (Research on Ganga Water) की पुष्टि की है। राष्ट्रीय पर्यावरण इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्थान (NEERI) और विभिन्न आईआईटी के शोध से पता चला है कि गंगा में बैक्टीरियोफेज, वायरस होते हैं जो हानिकारक बैक्टीरिया को मारते हैं, इस प्रकार पानी को सड़ने से रोकते हैं। इससे पता चलता है कि गंगा का पानी संग्रहित करने पर वर्षों तक ताज़ा क्यों रहता है।
एनआईएमआर के एक अध्ययन पाया गया है कि गंगा जल अपने रोगाणुरोधी गुणों के कारण मच्छरों के प्रजनन को रोकता है। इसी तरह, सीएसआईआर-राष्ट्रीय पर्यावरण इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्थान (CSIR-NEERI) के 2014 के एक अध्ययन ने पुष्टि की कि गंगा के पानी में दुनिया की किसी भी अन्य नदी की तुलना में 25 गुना अधिक ऑक्सीजन है, जो इसे जैविक कचरे को जल्दी से विघटित करने में सक्षम बनाता है।
1896 में, एक ब्रिटिश बैक्टीरियोलॉजिस्ट, अर्नेस्ट हैनबरी हैंकिन ने पाया कि गंगा के पानी में हैजा के बैक्टीरिया कुछ ही घंटों में मर जाते हैं, जबकि वे अन्य नदियों में अधिक समय तक जीवित रहते हैं। इससे इसकी आत्म-शुद्धिकरण क्षमता पर आगे के अध्ययन का मार्ग प्रशस्त हुआ।
प्रदूषण संबंधी चिंताओं के बावजूद, गंगा जल की बैक्टीरिया से लड़ने और ऑक्सीजन बनाए रखने की प्राकृतिक क्षमता इसे अद्वितीय बनाती है। हालांकि, मानव प्रदूषण इन गुणों को चुनौती देता है, जिससे संरक्षण प्रयासों की आवश्यकता होती है।
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