मिल्कीपुर में पलटा पासा, 15 हजार से वोटों से भाजपा आगे

मिल्कीपुर विधानसभा उपचुनाव में अब तक चार राउंड की गिनती पूरी हो चुकी है, जिसमें भाजपा प्रत्याशी चंद्रभानु पासवान 11,635 वोटों से आगे चल रहे हैं। भाजपा को अब तक 21,600, समाजवादी पार्टी को 9,965 और आजाद समाज पार्टी को 684 वोट मिले हैं। शुरू में मुकाबला कड़ा नजर आ रहा था, लेकिन जैसे-जैसे मतगणना आगे बढ़ी, भाजपा ने अपनी बढ़त को मजबूत कर लिया।

भाजपा ने बदला समीकरण, सपा पिछड़ी

शुरुआती दौर में सपा और भाजपा के बीच कांटे की टक्कर देखी गई थी, लेकिन तीसरे राउंड तक भाजपा ने 10,170 वोटों की बढ़त बना ली थी। चौथे राउंड में यह अंतर और बढ़ गया, जिससे सपा को करारा झटका लगा। समाजवादी पार्टी को उम्मीद थी कि वह मुकाबले में बनी रहेगी, लेकिन मतों की गिनती ने उनकी उम्मीदों पर पानी फेर दिया।

भाजपा ने तोड़ा बेईमानी का रिकॉर्ड: सपा नेता अवधेश प्रसाद

आजाद समाज पार्टी के प्रत्याशी सूरज चौधरी ने चुनाव प्रक्रिया पर गंभीर आरोप लगाए हैं। उनका कहना है कि यह चुनाव निष्पक्ष नहीं था और सत्ता पक्ष ने अपने प्रभाव का दुरुपयोग किया। उन्होंने दावा किया कि “एक-एक व्यक्ति ने 10-10 वोट डाले, सपा कार्यकर्ता लाठियां खाते रहे और प्रशासन ने भाजपा का समर्थन किया। समाजवादी पार्टी ने भी चुनाव में धांधली का आरोप लगाया है। सपा नेता अवधेश प्रसाद का कहना है कि भाजपा ने बूथ कैप्चरिंग की और मतगणना प्रक्रिया में धांधली की गई। उन्होंने कहा कि “भाजपा के गुंडों ने चुनाव को प्रभावित किया, लेकिन सपा जीत दर्ज करेगी।” चुनाव आयोग को लगातार शिकायतें दी गई हैं, लेकिन अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई है।

सपा हार की हताशा में लगा रही आरोप: भाजपा

भाजपा ने इन आरोपों को पूरी तरह से खारिज कर दिया है। डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक ने कहा कि “भाजपा को जनता का अपार समर्थन मिल रहा है और सपा हार की हताशा में बेबुनियाद आरोप लगा रही है।” उन्होंने यह भी कहा कि “दिल्ली में भी भाजपा प्रचंड बहुमत की ओर बढ़ रही है, और मिल्कीपुर में भी हमारी जीत सुनिश्चित है।”

भाजपा की बढ़त के पीछे के कारण

भाजपा की बढ़त के पीछे कई अहम कारण नजर आ रहे हैं। मोदी सरकार की लोकप्रियता और डबल इंजन सरकार के विकास कार्यों का असर इस चुनाव में साफ दिखाई दे रहा है। भाजपा का बूथ प्रबंधन भी काफी मजबूत रहा, जिससे उसे हर विधानसभा क्षेत्र में बढ़त बनाने में मदद मिली। वहीं, समाजवादी पार्टी की रणनीति कमजोर नजर आई। उनके प्रचार अभियान में वह ऊर्जा नहीं दिखी जो भाजपा के प्रचार में देखने को मिली।

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