आम आदमी पार्टी (AAP) के संयोजक अरविंद केजरीवाल को एक हफ्ते के अंदर तीन बड़े सियासी झटके लगे हैं, जो उनके और उनकी पार्टी के लिए मुश्किलें खड़ी कर रहे हैं। कभी दिल्ली की सियासत में अपनी एक अलग पहचान बनाने वाले केजरीवाल के लिए यह समय सबसे चुनौतीपूर्ण साबित हो रहा है। 2025 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में मिली हार से लेकर चंडीगढ़ के मेयर चुनाव तक, हर जगह पार्टी को हार का सामना करना पड़ा है। इन हारों का असर सिर्फ दिल्ली तक सीमित नहीं है, बल्कि यह पार्टी की राष्ट्रीय सियासत और आगामी चुनावों पर भी गहरा असर डाल सकता है। आइए जानते हैं कि AAP को इन तीन बड़े झटकों का सामना कैसे करना पड़ा और अब पार्टी का भविष्य क्या होगा?
1. दिल्ली विधानसभा चुनाव में AAP की नैया डूबी
AAP ने 2015 और 2020 के दिल्ली विधानसभा चुनावों में ऐतिहासिक जीत हासिल की थी। 2015 में पार्टी ने 67 सीटों पर विजय पाई थी और 2020 में यह आंकड़ा 63 तक पहुंचा। लेकिन 2025 के चुनाव में पार्टी को करारी हार का सामना करना पड़ा। पार्टी की सीटें सिर्फ 22 रह गईं, जिससे ना सिर्फ AAP की सियासी ताकत को बड़ा झटका लगा, बल्कि दिल्ली की सत्ता भी उससे छिन गई। यह हार AAP के लिए इसलिए भी ज्यादा दर्दनाक है क्योंकि पार्टी ने दिल्ली को अपनी ‘विकास की मॉडल’ के रूप में पेश किया था, और यह उम्मीद थी कि वह इस मॉडल को राष्ट्रीय स्तर पर फैलाने में कामयाब होंगे। लेकिन इस हार ने उनकी सभी उम्मीदों पर पानी फेर दिया।
क्या हुआ दिल्ली विधानसभा चुनाव में?
दिल्ली विधानसभा चुनाव में बीजेपी को पूर्ण बहुमत मिला, जिससे दिल्ली में भाजपा की सरकार बन गई। AAP की सीटों में गिरावट ने साबित कर दिया कि दिल्ली के मतदाताओं ने पार्टी के विकास मॉडल को पूरी तरह से नकार दिया। साथ ही, इस हार से पार्टी के अंदर के नेता भी निराश हैं, क्योंकि पार्टी का नेतृत्व अब इस स्थिति को संभालने में असमर्थ नजर आ रहा है। इस चुनावी हार के बाद AAP को अपनी रणनीतियों और सियासी दिशा पर गंभीर विचार करना होगा।
2. चंडीगढ़ में AAP को मिली हार: एक और बड़ा झटका
AAP को दूसरा बड़ा झटका चंडीगढ़ में लगा। 30 जनवरी को चंडीगढ़ में मेयर चुनाव हुए थे, जहां AAP और कांग्रेस ने गठबंधन बनाकर मेयर की सीट पर कब्जा करने का प्रयास किया था। हालांकि दोनों पार्टियों के पास पर्याप्त संख्या में वोट थे, फिर भी उनका उम्मीदवार जीतने में नाकाम रहा। चंडीगढ़ नगर निगम में कुल 35 पार्षद सीटें थीं, जिसमें AAP के पास 13, कांग्रेस के पास 6 और बीजेपी के पास 16 पार्षद थे। AAP और कांग्रेस का गठबंधन मिलकर 20 वोट तक पहुंचा था, जो मेयर सीट जीतने के लिए पर्याप्त था, लेकिन तीन AAP पार्षदों ने बीजेपी के पक्ष में क्रॉस वोटिंग की, और इसका परिणाम यह हुआ कि AAP और कांग्रेस के उम्मीदवार को सिर्फ 17 वोट मिले।
यह हार AAP के लिए बहुत बड़ा झटका साबित हुई, क्योंकि पार्टी ने चंडीगढ़ में अपनी स्थिति को मजबूत करने की योजना बनाई थी। इसके साथ ही पार्टी के अंदर कुछ असंतोष और अंदरूनी बगावत की चर्चाएं भी शुरू हो गईं, क्योंकि अब यह सवाल उठने लगा है कि पार्टी के पार्षदों ने बीजेपी के पक्ष में वोट क्यों किया।
3. केजरीवाल की खुद की हार: सबसे बड़ा झटका
सबसे बड़ा सियासी झटका तब लगा जब खुद अरविंद केजरीवाल अपनी सीट भी नहीं जीत सके। नई दिल्ली विधानसभा क्षेत्र में बीजेपी के उम्मीदवार प्रवेश वर्मा ने केजरीवाल को हराया। यह हार इसलिए भी चौंकाने वाली थी, क्योंकि केजरीवाल ने खुद को दिल्ली के सबसे बड़े नेता के रूप में स्थापित किया था। उनके पास दिल्ली में जबरदस्त समर्थन था, लेकिन इस हार ने यह साबित कर दिया कि अब उनका जादू जनता पर उतना असरदार नहीं रहा।
यह केजरीवाल और उनकी पार्टी के लिए सबसे बड़ा झटका था, क्योंकि यह हार उनके लिए व्यक्तिगत रूप से भी बहुत बड़ी थी। सिर्फ केजरीवाल ही नहीं, बल्कि पार्टी के कई प्रमुख नेता जैसे मनीष सिसोदिया, सौरभ भारद्वाज, सोमनाथ भारती, सत्येंद्र जैन और दुर्गेश पाठक जैसे नेता भी अपनी सीट नहीं जीत पाए। इन सभी नेताओं की हार ने AAP की टॉप लीडरशिप को विधानसभा से बाहर कर दिया, जो पार्टी की सियासत में एक बड़ा बदलाव ला सकता है।
अब AAP का क्या होगा?
तीन बड़े सियासी झटकों के बाद सवाल उठता है कि अब AAP का भविष्य क्या होगा। इस समय पार्टी की स्थिति बेहद कमजोर नजर आ रही है, और इसके लिए कई कारण हैं:
•- एमसीडी चुनावों में प्रभाव: दिल्ली में आगामी एमसीडी (Municipal Corporation of Delhi) चुनाव होने वाले हैं। यदि बीजेपी वहां भी अपना दबदबा बनाए रखती है, तो AAP को और भी अधिक नुकसान हो सकता है। बीजेपी के पास पूर्ण बहुमत है, जिससे पार्टी को मेयर पद पर काबिज होने का रास्ता साफ नजर आता है।
•- राज्यसभा चुनावों पर असर: दिल्ली से राज्यसभा चुनावों में AAP को केवल एक सीट मिलने की संभावना है, जबकि बीजेपी तीन सीटें जीत सकती है। इससे पार्टी को राष्ट्रीय स्तर पर भी झटका लग सकता है।
•- पंजाब की राजनीति पर असर: पंजाब में आम आदमी पार्टी की सरकार है, लेकिन अब कांग्रेस ने दावा किया है कि AAP के 30 विधायक उनके संपर्क में हैं। कांग्रेस का यह दावा AAP के लिए बड़ा खतरा बन सकता है। अगर पंजाब में पार्टी को सत्ता संघर्ष का सामना करना पड़ा, तो यह और भी मुश्किलें खड़ी कर सकता है।
AAP के लिए आत्ममंथन का समय
इन हारों के बाद AAP को अपनी रणनीति पर फिर से सोचने की जरूरत है। पार्टी को अपनी नीतियों और नेतृत्व को मजबूत करना होगा, और अपने अंदरूनी विवादों को भी सुलझाना होगा। पार्टी के नेताओं को एकजुट होकर आगे की दिशा तय करनी होगी, ताकि आने वाले चुनावों में पार्टी को फिर से मजबूत किया जा सके। यह समय AAP के लिए आत्ममंथन और अपनी छवि को फिर से सुधारने का है।