केजरीवाल का ब्रांड कैसे हुआ फ्लॉप? दिल्ली चुनाव ने खोली उनकी सियासी कमजोरी

अरविंद केजरीवाल का राजनीतिक सफर एक आंदोलन से शुरू हुआ था। 2011 में अन्ना हजारे के साथ भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन किया था, जिससे उन्होंने पूरे देश में सुर्खियां बटोरीं। इसके बाद 2013 में उन्होंने आम आदमी पार्टी (AAP) बनाई और दिल्ली में पहले ही चुनाव में सत्ता हासिल की। केजरीवाल की छवि उस वक्त बहुत साफ-सुथरी और ईमानदार नेता की थी। उन्होंने भ्रष्टाचार के खिलाफ संघर्ष करने और वीआईपी कल्चर को खत्म करने का वादा किया। दिल्ली में मुफ्त पानी, बिजली और शिक्षा जैसी योजनाएं शुरू की। इन सब से उनका ब्रांड मजबूत हुआ और दिल्लीवालों ने उन्हें सिर आंखों पर बैठा लिया।

दिल्ली में जीत से मिली देशभर में पहचान

2015 और 2020 में जब बीजेपी और पीएम मोदी की लहर पूरे देश में चल रही थी, तब भी दिल्ली में केजरीवाल का जादू चलता रहा। दिल्ली में उनका “दिल्ली विकास मॉडल” खूब चला और उन्होंने अपनी पार्टी को लगातार दो बार भारी बहुमत से जीत दिलाई। यह साबित कर दिया कि केजरीवाल का ब्रांड दिल्ली में बहुत पॉपुलर है। साथ ही, पंजाब में भी उन्होंने अपनी पार्टी को सत्ता दिलाई।

“दिल्ली मॉडल” से मिली एक अलग पहचान

केजरीवाल ने दिल्ली में मुफ्त बिजली, पानी और शिक्षा देने के वादे किए थे। इन योजनाओं को “दिल्ली मॉडल” के नाम से प्रचारित किया गया और उनकी सरकार को जनता में खूब समर्थन मिला। उनकी पार्टी ने अपनी राजनीति का फोकस सिर्फ आम आदमी पर रखा और खासकर उन लोगों को राहत देने की बात की जिनके पास ज्यादा पैसा नहीं था। लेकिन, जैसे-जैसे AAP की राजनीतिक ताकत बढ़ी, केजरीवाल का ब्रांड और उनका तरीका बदलने लगा। पहले तो वह भ्रष्टाचार को लेकर सख्त थे, लेकिन सत्ता में आते ही उनके फैसले और वादों में उलझनें आ गईं। यही वजह थी कि 2025 में उनका ब्रांड कमजोर पड़ने लगा।

क्या हुआ कि केजरीवाल का ब्रांड फ्लॉप हो गया?

2025 में दिल्ली विधानसभा चुनाव के बाद यह सवाल सबके मन में उठने लगा कि केजरीवाल का ब्रांड अब क्यों फ्लॉप हो गया? दरअसल, केजरीवाल ने जो राजनीति शुरू की थी, वह अब पूरी तरह से बदल गई थी। वह पहले खुद को भ्रष्टाचार के खिलाफ सख्त नेता के तौर पर पेश करते थे, लेकिन सत्ता में आने के बाद वह अपनी वादों को निभा नहीं सके।

ग़लत फैसले और बढ़ते विवाद

सत्ता में आते ही केजरीवाल ने अपने सरकारी घर में करोड़ों रुपये खर्च किए। बीजेपी ने इसे “शीश महल” नाम दिया और इसे चुनावी मुद्दा बना दिया। इसके अलावा, शराब घोटाले में उनका नाम भी सामने आया, जिससे उनकी ईमानदार छवि पर सवाल खड़े हो गए। यही नहीं, वह जितनी बार कहते थे कि वह वीआईपी कल्चर से दूर रहेंगे, उतनी बार ही वह खुद उसी को अपनाते नजर आए। उनके खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप तो बढ़ ही रहे थे, साथ ही उनके वादे भी अधूरे रहते गए। जैसे कि यमुना सफाई, महिलाओं को 2100 रुपये देने का वादा, और कूड़ा हटाने के वादे। इन सबका असर उनके ब्रांड पर पड़ा और लोगों का भरोसा टूटने लगा।

कैसे फ्री-बीज की राजनीति ने उन्हें नुकसान पहुंचाया?

केजरीवाल का सबसे बड़ा ब्रांड उनकी फ्री योजनाओं पर आधारित था। दिल्ली में मुफ्त बिजली, पानी, शिक्षा और महिलाओं के लिए 2100 रुपये देने का वादा। लेकिन 2025 में बीजेपी ने उसी रास्ते पर चलते हुए मुफ्त योजनाओं का ऐलान किया। बीजेपी ने महिलाओं को 2500 रुपये देने का वादा किया, जो केजरीवाल के वादे से ज्यादा था। इस एक कदम ने बीजेपी को दिल्ली में वापस सत्ता में ला दिया और केजरीवाल का ब्रांड कमजोर पड़ गया।

केजरीवाल ने वादा किया लेकिन पूरा नहीं किया

केजरीवाल ने कई बड़े वादे किए थे, लेकिन उन वादों को पूरा नहीं किया। जैसे कि यमुना सफाई का वादा, जो उन्होंने कभी नहीं किया। महिलाओं को 2100 रुपये देने का वादा भी आधे अधूरे तरीके से चल रहा था। यही नहीं, दिल्ली के कूड़े और प्रदूषण के मुद्दे पर भी उनके वादे खोखले साबित हुए।
इन सबकी वजह से उनकी साख पर सवाल उठने लगे और जनता ने महसूस किया कि केजरीवाल के वादे सिर्फ चुनावी जुमले बनकर रह गए हैं।

क्या केजरीवाल ने खुद ही अपना ब्रांड खो दिया?

केजरीवाल का ब्रांड पहले बहुत मजबूत था, लेकिन समय के साथ उन्होंने खुद को उन मुद्दों से दूर किया, जिनसे वह खुद को जोड़ते थे। वह जब सत्ता में आए, तो उन्हें यह अहसास हुआ कि वह जो कहते थे, वह करना इतना आसान नहीं है। उनके द्वारा किए गए वादे, जैसे फ्री बिजली, पानी, शिक्षा, कूड़ा सफाई, प्रदूषण खत्म करना और महिलाओं को पैसे देना, सब अब चुनावी मुद्दे बन गए हैं, जो उनके ब्रांड को कमजोर कर रहे हैं। बीजेपी ने उनकी इन्हीं योजनाओं का काउंटर प्लान बनाया और इसे जनता में प्रचारित किया, जिससे AAP का ग्राफ नीचे गिर गया।

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