Kalpvas 2025: कल 12 फरवरी, दिन बुधवार को माघ पूर्णिमा का पर्व है। इस दिन महाकुंभ में पर्व स्नान का आयोजन होगा। माघ पूर्णिमा के साथ ही प्रयागराज में संगम तट पर एक महीने तक चलने वाला कल्पवास (Kalpvas 2025) भी समाप्त होगा।
13 जनवरी को पौष पूर्णिमा से शुरू हुए महाकुंभ की अभिन्न परंपरा कल्पवास का समापन बुधवार को माघी पूर्णिमा के दिन होगा। इस अवसर पर बड़ी संख्या में कल्पवासी (Kalpvas 2025) संगम में पवित्र डुबकी लगाएंगे, दान करेंगे और घर लौट जाएंगे।
10 लाख से अधिक लोगों ने किया कल्पवास
उत्तर प्रदेश सरकार ने एक बयान में कहा कि इस साल 10 लाख से अधिक श्रद्धालुओं ने यहां त्रिवेणी संगम पर कल्पवास किया है। परंपरा के अनुसार, कल्पवास में पौष पूर्णिमा से माघ पूर्णिमा तक संगम के तट पर एक महीने तक उपवास, आत्म-संयम और सत्संग शामिल होता है। कल्पवासी बुधवार को संगम में डुबकी लगाने के बाद व्रत तोड़ेंगे। कल्पवास करने का बारह साल का चक्र महाकुंभ में समाप्त होता है।
कल्पवासी घर लौटने से पहले कराते हैं कथा, हवन और भोज
कल्पवासी माघ पूर्णिमा (Magh Purnima 2025) के दिन सबसे पहले संगम में स्नान करते हैं। उसके बाद सभी कल्पवासी (Kalpvasi) अपने शिविर के आकर वहां सत्यनारायण कथा सुनते हैं और हवन पूजन करते हैं। माघ पूर्णिमा के दिन दान का भी बहुत महत्व होता है। कल्पवासी हवन-पूजन के बाद पुरोहितों को दान करते हैं। कल्पवासी इस दिन अपने शक्ति के अनुसार लोगों को भोजन भी कराते हैं। इसके बाद खुद भोजन कर कल्पवासी अपने-अपने घरों की ओर लौट जाते हैं। कई श्रद्धालु कल्पवास के दौरान शैय्या दान भी करते हैं।
क्या है कल्पवास?
कल्पवास (What is Kalpvas)का तात्पर्य आत्म-अनुशासन, आत्मनिरीक्षण और आध्यात्मिक शुद्धि का पालन करते हुए एक महीने तक संगम तट रहने की प्रथा से है। महाकुंभ के दौरान कल्पवास करना शुभ माना जाता है। कल्पवास एक पवित्र हिंदू अनुष्ठान है जो प्रयागराज में संगम तट पर माघ महीने के दौरान मनाया जाता है। इस दौरान भक्त सांसारिक सुखों का त्याग करते हैं और त्रिवेणी संगम के तट पर रहते हैं।
कल्पवासी सख्त आध्यात्मिक अनुशासन का पालन करते हैं, जिसमें दैनिक पवित्र स्नान, उपवास, ध्यान और धर्मग्रंथों का पाठ शामिल है। माना जाता है कि माघ महीने में मनाई जाने वाली यह महीने भर की तपस्या आत्मा को शुद्ध करती है और मोक्ष की ओर ले जाती है। कल्पवास के दौरान श्रद्धालु सादा जीवन जीते हैं, दान और भक्ति में लगे रहते हैं। कल्पवास वैराग्य, तपस्या और आध्यात्मिक जागृति का प्रतीक है, जो भगवान विष्णु और अन्य देवताओं से आंतरिक शांति और दिव्य आशीर्वाद लाता है।
यह भी पढ़ें: Mahakumbh 2025: गुजरात फर्स्ट से स्वामी चिदानंद सरस्वती बोले, महाकुंभ संघर्ष नहीं संवाद की है कहानी