भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश (CJI) D.Y चंद्रचूड़ द्वारा अनुच्छेद 370 को लेकर दिए गए एक इंटरव्यू पर वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे ने कड़ी आलोचना की है। उन्होंने इस इंटरव्यू को सुप्रीम कोर्ट की साख पर असर डालने वाला करार दिया और कहा कि न्यायिक फैसलों पर चर्चा अदालत के भीतर होनी चाहिए, न कि किसी मीडिया प्लेटफॉर्म पर।
BBC को इंटरव्यू देना सही था या नहीं?
पूर्व CJI ने BBC को दिए इंटरव्यू में अनुच्छेद 370 की संवैधानिक स्थिति पर चर्चा की थी। उन्होंने इसे संविधान में “ट्रांजीशनल प्रोविजन” बताते हुए कहा कि सरकार को इसे हटाने का अधिकार था और सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले को स्वीकार किया।
हरीश साल्वे ने क्यों जताई आपत्ति?
सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे ने इस इंटरव्यू पर आपत्ति जताते हुए कहा कि भारत के मुख्य न्यायाधीश को अदालत के फैसलों पर सार्वजनिक रूप से चर्चा करने से बचना चाहिए। उन्होंने बीबीसी जैसे विदेशी मीडिया संस्थान को इंटरव्यू देने पर भी सवाल उठाया। उन्होंने कहा, ‘अगर आप इस तरह इंटरव्यू करेंगे, तो आपको पता होना चाहिए कि आप परेशानी मोल ले रहे हैं।’ उन्होंने कहा, ‘अगर आप प्रशासनिक कामों के बारे में इंटव्यू देना चाहते हैं तो दीजिए, लेकिन कभी भी फैसलों पर बात मत कीजिए।’
न्यायपालिका की निष्पक्षता पर असर का सवाल
साल्वे ने कहा कि इस तरह के सार्वजनिक बयानों से सुप्रीम कोर्ट की निष्पक्षता और उसकी गरिमा पर सवाल उठ सकते हैं। उन्होंने चेतावनी दी कि यदि न्यायपालिका के फैसलों पर इस तरह खुलकर चर्चा की गई, तो इससे संस्थान की विश्वसनीयता प्रभावित हो सकती है।
क्या सुप्रीम कोर्ट के फैसलों पर खुलकर बोलना उचित है?
यह विवाद एक महत्वपूर्ण बहस को जन्म देता है कि क्या शीर्ष न्यायाधीशों को सेवानिवृत्ति के बाद अपने फैसलों पर सार्वजनिक रूप से टिप्पणी करनी चाहिए या नहीं। इस मुद्दे पर कानूनी और राजनीतिक हलकों में लगातार चर्चा हो रही है।
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