ज्ञानेश कुमार देश के नए मुख्य चुनाव आयुक्त बनेंगे। वह राजीव कुमार की जगह लेंगे, जो 18 फरवरी को रिटायर हो रहे हैं। 19 फरवरी से ज्ञानेश कुमार यह जिम्मेदारी संभालेंगे। उनका कार्यकाल 26 जनवरी 2029 तक रहेगा।
राष्ट्रपति ने अधिसूचना जारी कर उनकी नियुक्ति की घोषणा की है। यह फैसला मुख्य निर्वाचन आयुक्त और अन्य निर्वाचन आयुक्तों (नियुक्ति, सेवा की शर्तें और कार्यालय की अवधि) अधिनियम-2023 के तहत लिया गया है।
इसके अलावा, ज्ञानेश कुमार की जगह डॉ. विवेक जोशी को नया चुनाव आयुक्त बनाया गया है।
ज्ञानेश कुमार 1988 बैच के आईएएस अधिकारी हैं और केरल कैडर से आते हैं। वो पिछले साल मार्च से चुनाव आयुक्त के पद पर कार्यरत हैं। अब उन्हें मुख्य चुनाव आयुक्त नियुक्त किया गया है। इस फैसले को लेकर लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने अपनी असहमति जताई है। उन्होंने पहले ही सुप्रीम कोर्ट में इस मुद्दे पर सुनवाई का हवाला देते हुए बैठक को टालने की मांग की थी।
कांग्रेस ने नियुक्ति पर क्यों उठाये सवाल
आज पीएमओ में चयन समिति की बैठक हुई, जिसमें पीएम मोदी, अमित शाह और लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी शामिल हुए। इसके बाद सरकार ने मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति से जुड़ी अधिसूचना जारी कर दी।
कांग्रेस ने इस पर सवाल उठाते हुए कहा कि मोदी सरकार ने जल्दबाजी में बैठक बुलाई। पार्टी का कहना है कि इस मामले पर 19 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होनी है, इसलिए बैठक को टाल देना चाहिए था।
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अजय माकन, अभिषेक मनु सिंघवी और गुरदीप सप्पल ने पार्टी कार्यालय में पत्रकारों से बात करते हुए बताया कि मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति से जुड़े 2023 के कानून को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है।
सरकार को सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का करना चाहिए इंतज़ार
सिंघवी ने कहा कि यह मामला अभी सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है और इसकी सुनवाई 19 फरवरी को होनी है। ऐसे में सरकार को बैठक स्थगित कर देनी चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई ठीक से हो।
उन्होंने बताया कि नए कानून के मुताबिक, मुख्य चुनाव आयुक्त का चयन प्रधानमंत्री, गृहमंत्री और लोकसभा में नेता विपक्ष की समिति करती है। लेकिन इस प्रक्रिया में कई संवैधानिक और कानूनी दिक्कतें हैं।
सिंघवी ने याद दिलाया कि 2 मार्च 2023 को सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति के लिए प्रधानमंत्री, लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष और मुख्य न्यायाधीश की समिति होनी चाहिए। लेकिन मौजूदा समिति इस आदेश का उल्लंघन करती है।
उन्होंने यह भी कहा कि अगर सिर्फ सरकार ही चुनाव आयोग के सदस्यों की नियुक्ति करेगी, तो आयोग निष्पक्ष नहीं रह पाएगा और कार्यपालिका (सरकार) के प्रभाव में आ सकता है।
सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा था?
सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि चुनाव आयोग की स्वतंत्रता बनाए रखने के लिए, मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों को सरकार के दबाव से मुक्त रखा जाना चाहिए। लेकिन मौजूदा चयन समिति में केंद्र सरकार को दो-तिहाई वोट देकर इसका संतुलन बिगाड़ दिया गया है।
उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार ऐसा चुनाव आयुक्त नियुक्त करना चाहती है, जो कभी भी उसके खिलाफ न जाए। उन्होंने यह भी सवाल उठाया कि चयन समिति से मुख्य न्यायाधीश को क्यों हटाया गया? इस सवाल का न तो संसद में और न ही बाहर कोई जवाब दिया गया। अगर यही प्रक्रिया जारी रही, तो इसका असर भारत की चुनाव प्रणाली की निष्पक्षता और स्वतंत्रता पर पड़ सकता है।