Yamuna Action Plan

यमुना की सफाई का अधूरा इतिहास कब होगा पूरा..? नई सरकार से दिल्ली की जनता को बड़ी उम्मीद

Yamuna Action Plan: दिल्ली के चुनाव में यमुना नदी की गंदगी का बड़ा मुद्दा बना था। जो हर चुनाव में वोटरों की चिंता का केंद्र रहता है। 2025 के चुनावों में भी यह मामला गरमाया और ‘जहरीली यमुना’ को लेकर AAP सरकार की नाकामी पर जमकर सियासत हुई। बीजेपी की रेखा गुप्ता ने इसी मुद्दे को भुनाते हुए सत्ता में एंट्री ली और अब दिल्ली की कमान संभालते ही यमुना की सफाई (Yamuna Action Plan) को मिशन मोड में डाल दिया है।

शपथ लेने के बाद वासुदेव घाट पहुंचीं सीएम

शपथ लेने के तुरंत बाद सीएम रेखा गुप्ता वासुदेव घाट पहुंचीं, जहां उन्होंने यमुना आरती की और साफ-सुथरी यमुना के लिए कमर कस ली। उनकी सरकार अब एक नए एक्शन प्लान के तहत यमुना को जहर से अमृत बनाने का संकल्प ले रही है। सवाल यह है….क्या यह सिर्फ दिखावा है, या सच में दिल्लीवालों को अब स्वच्छ यमुना नसीब होगी? बीजेपी सरकार के इस नए मिशन का राजनीतिक, प्रशासनिक और पर्यावरणीय असर क्या होगा? यमुना सफाई का यह संकल्प सिर्फ चुनावी वादा था या हकीकत में बदलाव लाएगा?

Yamuna Action Plan

यमुना की सफाई का अधूरा इतिहास

दिल्ली की राजनीति में यमुना का प्रदूषण एक पुराना लेकिन हर बार चुनावी मुद्दा बनने वाला सवाल है। 1977 में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) की स्थापना हुई, तभी से यमुना के पानी की गुणवत्ता की जांच शुरू हुई और भयावह सच्चाई सामने आई। रासायनिक परीक्षणों में खुलासा हुआ कि नदी सिर्फ औद्योगिक कचरे से ही नहीं, बल्कि मानव मल-मूत्र से भी बुरी तरह दूषित है। सरकारें आईं-गईं, हजारों करोड़ फूंके गए, लेकिन परिणाम शून्य!

Yamuna aarti

AAP सरकार का 700 करोड़ रुपये का ‘शून्य प्रभाव’

आम आदमी पार्टी की सरकार ने 2015 से अब तक 700 करोड़ रुपये यमुना की सफाई पर खर्च किए, लेकिन हकीकत यह रही कि नदी की हालत और बिगड़ती चली गई। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद 2023 में दिल्ली के उपराज्यपाल वीके सक्सेना की अध्यक्षता में हाई-लेवल कमेटी बनी, जिसमें नजफगढ़ ड्रेन की सफाई शुरू हुई। लेकिन सवाल यह है कि केवल ड्रेन की सफाई से यमुना की दशा सुधर सकती है?

1970 के दशक से बिगड़ने लगी थी यमुना की हालत

1950-60 के दशक में यमुना का पानी दिल्ली में पीने योग्य था, लेकिन 1970 के दशक में औद्योगीकरण, शहरीकरण और अनट्रीटेड सीवेज के बहाव ने नदी को मौत का कुंड बना दिया। 1980 के दशक में दिल्ली में तेजी से बढ़ते उद्योगों ने नदी में भारी धातुओं और केमिकल्स की मात्रा बढ़ा दी। 1978 में वजीराबाद में लिए गए सैंपल्स में DDT की खतरनाक मात्रा पाई गई थी।

दिल्ली के वजीराबाद से ओखला तक 22 किमी का यमुना क्षेत्र सबसे ज्यादा प्रदूषित है। यह क्षेत्र यमुना की कुल लंबाई का सिर्फ 2% है, लेकिन पूरी नदी के 76% प्रदूषण का जिम्मेदार है! हर दिन 350 लाख लीटर से ज्यादा गंदा पानी 18 बड़े नालों के जरिये यमुना में गिरता है। इसमें फास्फेट और एसिड की मात्रा इतनी ज्यादा होती है कि पानी में जहरीला झाग बनने लगता है। अब बड़ा सवाल – क्या बीजेपी सरकार वाकई यमुना को बचा पाएगी?

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