भारत में परिवहन तकनीक एक नए दौर में प्रवेश कर रही है। IIT मद्रास की एक टीम ने देश का पहला हाइपरलूप टेस्ट ट्रैक तैयार कर लिया है, जिसकी लंबाई 422 मीटर है। इस अत्याधुनिक तकनीक से दिल्ली से जयपुर (लगभग 300 किमी) की यात्रा सिर्फ 30 मिनट में पूरी होने की उम्मीद जताई जा रही है।
हाइपरलूप एक सुपर-फास्ट ट्रांसपोर्ट सिस्टम है, जो लंबी दूरी के सफर को कई गुना तेज बना सकता है। केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर इस खबर को साझा करते हुए लिखा कि सरकारों के सहयोग से परिवहन में नई तकनीकों को बढ़ावा मिल रहा है।
आइए जानते हैं, यह हाइपरलूप प्रोजेक्ट क्या है और दुनिया में इस तकनीक की स्थिति कैसी है? 🚄✨
क्या होता है हाइपरलूप?
हाइपरलूप को पाचवां परिवहन साधन कहा जाता है। यह तकनीक लंबी दूरी की यात्रा को बहुत तेज़ गति से पूरा करने के लिए बनाई गई है। इसमें एक खास तरह के पॉड या कैप्सूल को कम दबाव वाली या लगभग वैक्यूम ट्यूब के अंदर चलाया जाता है। क्योंकि इसमें हवा का रुकावट और घर्षण बहुत कम होता है, इसलिए ये पॉड बेहद तेज़ रफ़्तार से सफर कर सकते हैं।
समझें इसकी खूबिया
हाइपरलूप सिस्टम एक ऐसी तकनीक पर काम करता है, जिसमें पॉड (कैप्सूल) को ट्रैक से थोड़ा ऊपर उठाकर चलाया जाता है। यह इलेक्ट्रोमैग्नेटिक लीविटेशन नामक तकनीक की मदद से होता है, जिससे घर्षण (रगड़) बेहद कम हो जाता है और पॉड बहुत तेज़ गति से आगे बढ़ता है। यह प्रणाली 1.0 मैक (यानी करीब 761 मील प्रति घंटा) तक की रफ्तार हासिल कर सकती है।
इसकी सबसे खास बात यह है कि यह कम बिजली खर्च करता है और इसमें ऊर्जा को स्टोर करने की क्षमता भी होती है, जिससे यह 24 घंटे बिना रुके काम कर सकता है। हाइपरलूप का एक और बड़ा फायदा यह है कि यह सड़क यातायात की तरह ट्रैफिक जाम या एक्सीडेंट की समस्या से प्रभावित नहीं होता। बारिश, बर्फबारी या दूसरी प्राकृतिक परिस्थितियों का भी इस पर कोई असर नहीं पड़ता, जिससे यात्री हमेशा समय पर अपनी मंज़िल तक पहुंच सकते हैं।
विश्व में कितना सफल रहा हाइपरलूप ?
भारत में हाइपरलूप को लेकर उत्साह जरूर है, लेकिन दुनिया में इसकी प्रगति धीमी रही है। 2013 में एलन मस्क की स्पेसएक्स ने हाइपरलूप का आइडिया दिया था, लेकिन अब तक इसे व्यावसायिक रूप से सफल नहीं बनाया जा सका है।
अमेरिका में कई कंपनियां इस तकनीक पर काम कर रही थीं, लेकिन अधिकतर को वित्तीय समस्याओं और तकनीकी चुनौतियों की वजह से प्रोजेक्ट रोकने पड़े। वर्जिन हाइपरलूप, जो इस क्षेत्र की प्रमुख कंपनी मानी जाती थी, ने 2022 में अपने पैसेंजर प्रोजेक्ट को बंद कर दिया और अब सिर्फ माल ढुलाई पर ध्यान दे रही है।
यूरोप में भी इस तकनीक को लेकर प्रयोग हुए, लेकिन अब तक कोई बड़ी सफलता नहीं मिली है।
चीन और दुबई में क्या है संभावनाएं
चीन और दुबई हाइपरलूप तकनीक पर काम कर रहे हैं। चीन ने कुछ छोटे स्तर पर इसका परीक्षण किया है, जबकि दुबई इसे अबू धाबी से दुबई तक की 12 मिनट की यात्रा में बदलने की योजना बना रहा है। हालांकि, यह अभी टेस्टिंग फेज में है।
भारत में भी हाइपरलूप को लेकर उत्साह है, लेकिन इसे हकीकत में बदलने के लिए कई बड़ी चुनौतियां हैं। इंफ्रास्ट्रक्चर, फंडिंग और सुरक्षा जैसे मुद्दों पर अभी काम बाकी है।