बसपा सुप्रीमो मायावती ने एक बार फिर अपने भतीजे आकाश आनंद को बड़ा झटका दिया है। बीते 10 महीनों में यह दूसरी बार हुआ है जब उन्हें पार्टी के अहम पद से हटा दिया गया है। इस फैसले के पीछे कई कारण बताए जा रहे हैं, जिनमें बसपा की अंदरूनी राजनीति भी शामिल है। लेकिन इसके साथ ही अब मायावती के फिर से सक्रिय राजनीति में आने की चर्चा भी तेज हो गई है। खास बात यह है कि यह फैसला ऐसे वक्त में आया है जब बसपा का जनाधार लगातार कमजोर हो रहा है।
अब कोई और नहीं बनेगा पार्टी का उत्तराधिकारी
बहुजन समाज पार्टी (बसपा) प्रमुख मायावती ने अपने भतीजे आकाश आनंद को सभी पदों से हटा दिया है। उन्होंने साफ कहा कि अब उनके जीवनभर पार्टी में कोई उत्तराधिकारी नहीं होगा।
यह फैसला तब आया जब पिछले महीने मायावती ने आकाश के ससुर अशोक सिद्धार्थ को पार्टी से निकाल दिया था। रविवार को लखनऊ में हुई बसपा की राष्ट्रीय बैठक के बाद मायावती ने एक बयान जारी किया। इसमें उन्होंने कहा कि पार्टी हित में आकाश आनंद को सभी जिम्मेदारियों से मुक्त कर दिया गया है। साथ ही, उन्होंने इस फैसले के लिए पार्टी को नहीं, बल्कि पूरी तरह से अशोक सिद्धार्थ को जिम्मेदार ठहराया।
गौरतलब है कि मायावती ने पहले आकाश आनंद को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया था, लेकिन लोकसभा चुनाव के दौरान उनके एक विवादित बयान के कारण यह ओहदा वापस ले लिया था। हालांकि बाद में उन्होंने दोबारा आकाश को उत्तराधिकारी बनाया था। मगर अब मायावती ने साफ कर दिया है कि उनकी आखिरी सांस तक पार्टी में कोई उत्तराधिकारी नहीं होगा।
मायावती का आकाश को हटाया का क्या है कारण?
बसपा चीफ मायावती ने 2019 में अपने भाई आनंद को पार्टी का राष्ट्रीय समन्वयक बनाया था और उपाध्यक्ष पद की जिम्मेदारी भी अपने परिवार में ही दी थी। अब ख़बर आ रही है कि मायावती ने यह फैसला लेकर यह दिखाने की कोशिश की है कि उनके लिए पार्टी का मिशन उनके परिवार से ऊपर है।
रिपोर्ट्स के मुताबिक, जब मायावती ने अपने भाई को अहम पद दिए थे, तब उन पर वंशवाद को बढ़ावा देने के आरोप लगे थे। वहीं, पार्टी के कुछ वरिष्ठ नेता आनंद की बढ़ती भूमिका से खुश नहीं थे। इस फैसले के जरिए मायावती ने यह संदेश दिया है कि बसपा में परिवारवाद की जगह पार्टी की विचारधारा सबसे अहम है।
क्या कांशीराम की विरासत भी है वजह?
यूपी की नगीना सीट से सांसद चंद्रशेखर आजाद दलित युवाओं में काफी लोकप्रिय हैं। वह अपनी पार्टी के नाम के साथ यह दावा भी कर रहे हैं कि वे कांशीराम की राजनीतिक विरासत के असली उत्तराधिकारी हैं। अब चर्चा है कि मायावती ने आनंद को पद से हटाकर यह दिखाने की कोशिश की है कि असली उत्तराधिकारी वही हैं।
अब आकाश और बसपा का क्या होगा भविष्य?
2019 के लोकसभा चुनाव में अहम भूमिका निभाने वाले आनंद अब तक कोई बड़ी सफलता हासिल नहीं कर पाए हैं। दिल्ली विधानसभा चुनाव में भी उन्हें जिम्मेदारी दी गई थी, लेकिन बसपा का प्रदर्शन खास नहीं रहा। इससे पहले भी कई राज्यों में पार्टी का प्रदर्शन कमजोर रहा था। मायावती के इस फैसले से आनंद के राजनीतिक भविष्य पर सवाल उठने लगे हैं।
पार्टी के एक नेता ने अखबार से बातचीत में उम्मीद जताई कि आनंद एक बार फिर मजबूती से वापसी करेंगे। उन्होंने कहा, “आकाश युवा हैं और हमें उम्मीद है कि वह फिर से उभरकर आएंगे। पार्टी में अहम भूमिका निभाएंगे, क्योंकि युवाओं को जोड़ने के लिए हमें एक युवा नेता की जरूरत है।”
मायावती खुद संभालेंगी पार्टी की कमान
सवाल यह है कि बसपा अब दलित युवाओं को अपनी तरफ कैसे आकर्षित करेगी, खासकर जब चंद्रशेखर आजाद की आजाद समाज पार्टी (कांशीराम) लगातार मैदान में सक्रिय नजर आ रही है। चर्चा यह भी है कि मायावती, जिन्होंने पहले आनंद को जिम्मेदारी दी और फिर वापस ले ली, अब खुद मैदान में उतरेंगी और पार्टी के कार्यक्रमों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेंगी? यूपी में 2027 में विधानसभा चुनाव होने हैं, ऐसे में बसपा की अगली रणनीति क्या होगी?
बसपा का चुनावों में प्रदर्शन
बसपा का वोट शेयर लगातार घटता जा रहा है। 2024 के लोकसभा चुनाव में पार्टी ने 488 सीटों पर उम्मीदवार उतारे, लेकिन एक भी सीट नहीं जीत सकी। उत्तर प्रदेश में मायावती ने 79 सीटों पर उम्मीदवार खड़े किए, लेकिन पार्टी का वोट प्रतिशत 9.39% से गिरकर सिर्फ 2.04% रह गया। जबकि 2019 में बसपा को यूपी में 10 सीटें मिली थीं।
विधानसभा चुनाव में भी बसपा की स्थिति कमजोर होती गई। 2022 में पार्टी सिर्फ 1 सीट जीत पाई और उसका वोट शेयर 12.88% रह गया, जबकि 2017 में यह 22.23% था।