फिरोजाबाद का दिहुली नरसंहार: 24 दलितों की बेरहमी से हत्या कर हत्यारों ने मनाई थी दावत!

18 नवंबर 1981, शाम का वक्त… फिरोजाबाद के दिहुली गांव में अचानक गोलियों की आवाजें गूंजने लगीं। राइफल और बंदूकें लिए 17 हमलावर गांव में दाखिल हुए और तीन टुकड़ियों में बंटकर दलित समुदाय के लोगों पर ताबड़तोड़ गोलियां बरसाने लगे। जो सामने आया, उसे वहीं ढेर कर दिया। पूरा गांव चीख-पुकार और दर्दनाक कराहों से गूंज उठा। करीब तीन घंटे तक गोलियों की बौछार होती रही, जिसमें 24 दलितों की बेरहमी से हत्या कर दी गई। जो बच सके, वे किसी तरह भागकर अपनी जान बचाने में सफल हुए।

खूनी खेल के बाद हत्यारों ने जमाई दावत

इस क्रूर हत्याकांड के बाद भी अपराधियों का मन नहीं भरा। प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक, हत्यारे पूरी रात गांव में रुके और उन्होंने दावत उड़ाई। जैसे कुछ हुआ ही न हो। गांव वालों के लिए यह रात किसी भयावह सपने से कम नहीं थी, जिसे याद करके आज भी रूह कांप जाती है।

पीड़ितों की दर्दनाक दास्तान: ‘आंखों के सामने उजड़ गया घर’

इस नरसंहार ने कई परिवारों को बर्बाद कर दिया। जय देवी, जिनके पति ज्वाला प्रसाद और तीन बेटे इस हत्याकांड में मारे गए थे, उन्होंने बताया, “सबसे पहले मेरे पति को गोली मारी गई, फिर मेरे तीन बेटों को गोलियों से भून दिया। मैं कुछ नहीं कर सकी, सिर्फ रोती रही।” गांव के एक और चश्मदीद अमृतलाल ने बताया कि हमलावर पूरी तैयारी से आए थे। उन्होंने पहले से तय कर रखा था कि किन लोगों को निशाना बनाना है।

गवाहों की गवाही: ‘डकैतों को पकड़वाने की कीमत चुकाई’

दिहुली नरसंहार की जड़ें बदमाशों के एक कुख्यात गैंग से जुड़ी थीं। राधे-संतोष गैंग के कुछ अपराधियों को पुलिस ने एक मुठभेड़ में पकड़ लिया था, और शक था कि इसकी सूचना गांव के दलित समाज ने दी थी। यही वजह बनी इस वीभत्स हमले की। गैंग ने दलित बस्ती में घुसकर जो मिला, उसे मौत के घाट उतार दिया।

फैसले में देरी, लेकिन इंसाफ मिला

चार दशक बाद इस मामले में तीन दोषियों को फांसी की सजा सुनाई गई – रामसेवक, रामपाल और कप्तान सिंह। हालांकि, पीड़ित परिवारों का कहना है कि यह फैसला बहुत देर से आया। अगर पहले आता तो शायद कुछ और अपराधियों को भी कानून के शिकंजे में लाया जा सकता था।

आरोपियों के परिवार का दावा: ‘निर्दोष को मिली सजा’

फैसले के बाद दोषियों के परिवारों ने इसे गलत बताया। आरोपी रामपाल के भाई अरविंद कुमार का कहना है, “जिन्होंने यह नरसंहार किया था, उनकी पहले ही मौत हो चुकी है। अब जो बचे हैं, वे निर्दोष हैं। हम ऊपरी अदालत में जाएंगे।” हालांकि, गांव में पुलिस सुरक्षा कड़ी कर दी गई है ताकि किसी भी तरह की अनहोनी को टाला जा सके।

इंदिरा गांधी का दौरा: जब गांव में पहुंची थी प्रधानमंत्री

इस दर्दनाक घटना के बाद पूरा देश दहल गया था। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और यूपी के मुख्यमंत्री वीपी सिंह गांव पहुंचे थे। उन्होंने पीड़ित परिवारों से मुलाकात की और न्याय का भरोसा दिलाया। लखनऊ से लेकर दिल्ली तक इस नरसंहार की गूंज सुनाई दी थी।

इन 24 दलितों को उतारा गया मौत के घाट

इस हत्याकांड में मारे गए लोगों में ज्वाला प्रसाद, रामप्रसाद, रामदुलारी, शांति, राजेंद्र, राजेश, रामसेवक, शिवदयाल, मुनेश, भारत सिंह, दाताराम, आशा देवी, लालाराम, गीतम, लीलाधर, मानिकचंद, भूरे, कुमारी शीला, मुकेश, धनदेवी, गंगा सिंह, गजाधर और प्रीतम सिंह शामिल थे।

एफआईआर में दर्ज थे ये नाम

इस हत्याकांड के आरोपियों में शामिल थे – संतोष उर्फ संतोषा, राधे, कमरुद्दीन, श्यामवीर, कुंवर पाल, राजेंद्र, भूरा, प्रमोद राना, मलखान सिंह, रविंद्र सिंह, युधिष्ठिर (दो नाम), पंचम, ज्ञानचंद उर्फ गिन्ना, रामसेवक और कप्तान सिंह। इनमें से 13 अपराधियों की पहले ही मौत हो चुकी है। पुलिस अभी तक फरार आरोपी गिन्ना को गिरफ्तार नहीं कर सकी है।

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