Adani Solar Project

अडानी सौर परियोजना को लेकर फंसी आंध्र सरकार, एक तरफ कुआं तो दूसरी तरफ खाई वाली स्तिथि, लेकिन क्या होगा इसका नतीजा?

Adani Solar Project: आंध्र प्रदेश सरकार इन दिनों एक बड़ी दुविधा में फंसी हुई है। एक तरफ वह अडानी ग्रुप के साथ किए गए 7,000 मेगावाट सौर परियोजना समझौते को रद्द करने की सोच रही है, तो दूसरी तरफ इस फैसले के गंभीर आर्थिक परिणाम भी हो सकते हैं। आइए जानते हैं कि आखिर क्या है पूरा मामला और सरकार के सामने क्या-क्या विकल्प हैं।

अडानी ग्रुप पर लगे आरोप और सरकार की चिंता

पिछले दिनों अमेरिकी अभियोजकों ने गौतम अडानी और उनके सात सहयोगियों पर आरोप लगाया है कि उन्होंने 2021 और 2022 के बीच कई राज्यों में सौर ऊर्जा आपूर्ति अनुबंध प्राप्त करने के लिए रिश्वत दी थी। इन राज्यों में आंध्र प्रदेश भी शामिल है। इस खबर के बाद से ही आंध्र प्रदेश सरकार अडानी ग्रुप के साथ किए गए समझौते की समीक्षा कर रही है।

मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू खुद इस मामले की समीक्षा कर रहे हैं। उन्होंने एक नोट तैयार किया है जिसमें विभिन्न विकल्पों और वित्तीय प्रभावों का जिक्र किया गया है। सरकार के सामने दो बड़े विकल्प हैं – या तो वह समझौते को जारी रखे या फिर उसे रद्द कर दे। लेकिन दोनों ही स्थितियों में राज्य को भारी आर्थिक नुकसान उठाना पड़ सकता है।

सरकार के सामने क्या हैं विकल्प?

पहला विकल्प: समझौता जारी रखना

अगर सरकार समझौते को जारी रखती है, तो उसे अडानी ग्रुप से 2.49 रुपये प्रति किलोवाट घंटा की दर से बिजली खरीदनी होगी। लेकिन यह दर वास्तव में इतनी कम नहीं रहेगी। बुनियादी सीमा शुल्क और जीएसटी लगने के बाद यह दर 3.069 रुपये प्रति किलोवाट घंटा तक पहुंच जाएगी। इसके अलावा, ट्रांसमिशन घाटे से इस दर में और 80 पैसे की बढ़ोतरी होगी।

इस तरह, प्रभावी दर 3.869 रुपये प्रति किलोवाट घंटा हो जाएगी। 25 साल के लिए इस दर से बिजली खरीदने पर राज्य को कुल 1.61 लाख करोड़ रुपये का बिजली बिल चुकाना पड़ेगा। यह राशि राज्य के लिए बहुत बड़ा आर्थिक बोझ होगी।

दूसरा विकल्प: समझौता रद्द करना

अगर सरकार समझौते को रद्द करने का फैसला लेती है, तो उसे सोलर एनर्जी कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (SECI) के साथ किए गए पावर सेल एग्रीमेंट (PSA) को समाप्त करना होगा। लेकिन ऐसा करने पर सरकार को 2,100 करोड़ रुपये का जुर्माना भरना पड़ सकता है।

सरकार की रणनीति क्या हो सकती है?

ऐसी स्थिति में सरकार एक तीसरा रास्ता भी अपना सकती है। वह अडानी ग्रुप के साथ टैरिफ पर फिर से बातचीत कर सकती है। इसके लिए वह जांच का सहारा ले सकती है। अगर जांच में कोई गड़बड़ी पाई जाती है, तो सरकार के पास टैरिफ को कम करने का मौका होगा।

लेकिन यह भी आसान नहीं होगा। क्योंकि अडानी ग्रुप ने पहले ही 2.49 रुपये प्रति किलोवाट घंटा का टैरिफ ऑफर किया है, जो कि काफी कम है। इससे कम दर पर प्रोजेक्ट चलाना मुश्किल हो सकता है।

 

 

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