what is a gpr survey: उत्तर भारत के ऐतिहासिक शहर आगरा की जामा मस्जिद का मामला अब अदालत तक पहुंच चुका है। जामा मस्जिद की सीढ़ियों के नीचे भगवान श्रीकृष्ण की मूर्तियों के दबे होने का दावा किया गया है। इस मामले में कोर्ट में याचिका दायर की गई है, जिसमें जामा मस्जिद की सीढ़ियों का ग्राउंड पेनेट्रेटिंग रडार (GPR) से सर्वे कराने की मांग की गई है। तो चलिए, जानते हैं कि ये ग्राउंड पेनेट्रेटिंग रडार (GPR) क्या होता है और यह कैसे काम करता है।
जीपीआर (GPR) सर्वे क्या है?
ग्राउंड पेनेट्रेटिंग रडार (GPR) एक अत्याधुनिक तकनीक है जो भूतल के नीचे छिपी हुई वस्तुओं का पता लगाने में मदद करती है। इसे जियोफिजिकल लोकेटिंग मैथड कहा जाता है और यह रेडियो तरंगों का इस्तेमाल करता है। जीपीआर में इलेक्ट्रोमैग्नेटिक वेव्स का उपयोग करके जमीन के नीचे छिपी चीजों की इमेज बनाई जाती है। इसकी खासियत यह है कि यह किसी भी चीज़ को बिना जमीन को नुकसान पहुँचाए ढूंढ निकालता है। जीपीआर के जरिए किए गए सर्वे से यह पता किया जा सकता है कि कहीं जमीन के नीचे कोई संरचना या वस्तु दबी हुई है या नहीं।
जीपीआर सिस्टम दो मुख्य उपकरणों से काम करता है, ट्रांसमीटर और एंटिना। ट्रांसमीटर से इलेक्ट्रोमैग्नेटिक वेव्स को मिट्टी या अन्य पदार्थों में भेजा जाता है। जब ये तरंगें किसी वस्तु से टकराती हैं तो वे उसे प्रतिविंबित करती हैं, यानी उसका घनत्व संकेतों में बदल जाता है। इस घनत्व के बदलाव को एंटिना रिकॉर्ड करता है। एंटिना के जरिए प्राप्त इस सिग्नल को खास सॉफ़्टवेयर प्रोसेस करता है, जिससे जमीन के नीचे दबी वस्तु की इमेज तैयार हो जाती है।
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जीपीआर का इस्तेमाल कई प्रकार की वस्तुओं का पता लगाने में किया जाता है। इसमें धातु, प्लास्टिक, पीवीसी, कंक्रीट, प्राकृतिक पदार्थ, पानी की पाइपलाइन, सीवर लाइंस, भूमिगत संरचनाओं, चट्टानों और अन्य कई चीजों का पता लगाया जा सकता है। इसका उपयोग यह पता करने के लिए किया जाता है कि जमीन के नीचे कहीं कोई वस्तु दबी हुई है या नहीं। यही कारण है कि यह तकनीक बहुत प्रभावी साबित होती है जब हमें खुदाई किए बिना जमीन के नीचे की चीजों का पता लगाना हो।
आगरा की जामा मस्जिद में क्या हुआ?
आगरा की जामा मस्जिद में भगवान श्रीकृष्ण की मूर्तियों के दबे होने का मामला अब अदालत में पहुंच चुका है। इस मामले में 23 दिसंबर को सुनवाई होगी। दरअसल, योगेश्वर श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संघ ट्रस्ट और श्रीकृष्ण जन्मभूमि संरक्षित सेवा ट्रस्ट ने याचिका दायर की है, जिसमें जामा मस्जिद की सीढ़ियों के नीचे श्रीकृष्ण की मूर्तियां दबे होने का दावा किया गया है। इन ट्रस्टों का संबंध प्रख्यात कथावाचक देवकीनंदन ठाकुर से है। याचिकाकर्ता ने अदालत से मांग की है कि जामा मस्जिद की सीढ़ियों का ग्राउंड पेनेट्रेटिंग रडार (GPR) सर्वे कराया जाए, ताकि सच्चाई सामने आ सके।
याचिका में यह भी दावा किया गया है कि 1670 में औरंगजेब ने केशवदेव मंदिर को ध्वस्त कर दिया था और वहां रखी मूर्तियों को आगरा की जामा मस्जिद में दफन कर दिया था। इस संदर्भ में किताबों का हवाला दिया गया है। अधिवक्ता अजय प्रताप सिंह ने कहा कि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) के पहले डायरेक्टर जनरल अलेक्जेंडर कनिंघम ने अपनी किताब ‘ए टूर इन ईस्टर्न राजपूताना 1882-83’ में यह उल्लेख किया था कि औरंगजेब ने श्रीकृष्ण की मूर्तियों को कुदसिया बेगम की सीढ़ियों के नीचे दबा दिया था। इसके अलावा इतिहासकार जदुनाथ सरकार ने अपनी पुस्तक ‘मआसिर-ए-आलमगीरी’ में भी यह दावा किया था कि औरंगजेब ने श्रीकृष्ण की मूर्तियों को आगरा की बेगम साहिब मस्जिद की सीढ़ियों के नीचे दबवाया था।
आगे याचिकाकर्ता ने यह भी कहा कि सीढ़ियों पर हर समय लोगों का आना-जाना होता है, जिससे उनकी धार्मिक भावनाएं आहत होती हैं। वहीं, कथावाचक देवकीनंदन ठाकुर ने यह दावा किया कि सनातन धर्म की भावना की सुरक्षा के लिए इस सर्वे का होना बेहद जरूरी है, ताकि सच्चाई का पता चल सके।
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इस मामले में याचिकाकर्ता के वकील विनोद शुक्ला ने भी ज्ञानवापी मस्जिद और राम मंदिर मामले का हवाला दिया। उन्होंने कहा कि वाराणसी में ज्ञानवापी मामले में वैज्ञानिक सर्वे का आदेश दिया गया था, जबकि राम मंदिर के मामले में ASI ने सर्वे किया था। ASI ने सूचना के अधिकार के तहत यह जानकारी दी है कि आगरा की जामा मस्जिद में अब तक कोई उत्खनन या अन्वेषण नहीं किया गया है। इसलिए यह जानना जरूरी है कि जामा मस्जिद का कितना हिस्सा जमीन के नीचे दबा हुआ है, और इसके लिए जीपीआर सर्वे और अन्य वैज्ञानिक तरीकों से जांच की जरूरत है।
अदालत में क्या हो रहा है?
आगरा की कोर्ट में दायर की गई याचिका पर 23 दिसंबर को सुनवाई होनी है। इसमें यह मांग की गई है कि जामा मस्जिद की सीढ़ियों के नीचे दबे भगवान श्रीकृष्ण की मूर्तियों को निकाल कर उन्हें संबंधित ट्रस्ट को सौंपा जाए। इस याचिका में एक किताब का भी हवाला दिया गया है। इस किताब का नाम है “ए टूर इन ईस्टर्न राजपूताना 1882-83”, जिसे भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) के पहले डायरेक्टर जनरल अलेक्जेंडर कनिंघम ने लिखा था। कनिंघम ने अपनी किताब में दावा किया है कि औरंगजेब ने श्रीकृष्ण की मूर्तियों को कुदसिया बेगम की सीढ़ियों के नीचे दबा दिया था। इस पुस्तक में इस घटना का विस्तार से उल्लेख है और यही दावा अब अदालत में किया जा रहा है।
आगरा की जामा मस्जिद में दबे श्रीकृष्ण की मूर्तियों को लेकर कोर्ट में कई सवाल उठ रहे हैं। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि औरंगजेब ने 1670 में केशवदेव मंदिर को तोड़ा था और उसकी मूर्तियों को मस्जिद में दफन कर दिया। हालांकि, इस दावे के समर्थन में किसी ठोस ऐतिहासिक प्रमाण का अभाव है। इसलिए अदालत में यह मुद्दा अब पेचीदा हो गया है और इसके हल के लिए जीपीआर सर्वे को मंजूरी दी जा सकती है।
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इस सर्वे से अगर किसी प्रकार की मूर्तियां या अन्य वस्तुएं जमीन के नीचे दबीं हुई पाई जाती हैं, तो यह ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण साबित हो सकता है। लेकिन इस प्रक्रिया में काफी समय और संसाधन लग सकते हैं। इसके अलावा, इस मामले में धार्मिक और राजनीतिक पक्ष भी जुड़े हुए हैं, जिससे स्थिति और भी जटिल हो सकती है।