इलाहाबाद हाईकोर्ट का आदेश: मस्जिद और दरगाह के सर्वे की मांग में इजाफा

कोर्ट का वो आदेश, जिसके बाद हर तरफ से होने लगी मस्जिद-दरगाह के सर्वे की मांग!

देश भर में धार्मिक स्थलों के सर्वेक्षण के आदेशों को लेकर हाल ही में कई खबरें सामने आई हैं। इनमें खासकर मस्जिदों और दरगाहों के सर्वे के आदेशों का मुद्दा तूल पकड़ता जा रहा है। इस सबकी शुरुआत बनारस के ज्ञानवापी मस्जिद मामले से हुई, जिसके बाद कई धार्मिक स्थलों के बारे में अदालतों ने सर्वे कराने के आदेश दिए। हालांकि, सवाल उठ रहा है कि इन सर्वे आदेशों के पीछे आखिर क्या वजह है? क्या इन आदेशों की वजह सिर्फ इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला है, या फिर सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की एक टिप्पणी भी इसका कारण बनी?

आखिरकार, धार्मिक स्थलों के सर्वे का यह सिलसिला कब और क्यों शुरू हुआ? इसके पीछे कौन से कानूनी फैसले हैं, और इसका असर क्या हो सकता है? आइए, इसे समझते हैं।

इलाहाबाद हाईकोर्ट का  ऐतिहासिक फैसला

सबसे पहले, यह समझना जरूरी है कि धार्मिक स्थलों के सर्वेक्षण का आदेश इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक अहम फैसले से आया है। यह फैसला विशेष रूप से ज्ञानवापी मस्जिद से जुड़ा हुआ था। 19 दिसंबर 2023 को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इस मामले में एक महत्वपूर्ण आदेश दिया था, जिसमें उसने पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम 1991 की व्याख्या की।

इस फैसले के अनुसार, अदालत ने कहा कि अगर किसी धार्मिक स्थल का धार्मिक चरित्र पर विवाद उठता है, तो वह सिर्फ सक्षम अदालत ही तय कर सकती है। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि 1991 के पूजा स्थल कानून में यह नहीं कहा गया है कि किसी धार्मिक स्थल के धार्मिक चरित्र का निर्धारण कैसे किया जाए। इसी वजह से ज्ञानवापी मस्जिद के संबंध में दायर याचिकाओं का निपटारा करते हुए अदालत ने यह निर्णय लिया कि इस स्थान का धार्मिक चरित्र क्या होगा, यह सिर्फ अदालत ही तय करेगी।

अब इस फैसले का एक बड़ा असर यह हुआ कि इसके बाद कई अन्य धार्मिक स्थलों पर भी सर्वे के आदेश दिए गए हैं। उदाहरण के तौर पर धार की भोजशाला, संभल की जामा मस्जिद और अजमेर की दरगाह शरीफ जैसी जगहों पर भी सर्वे कराने का आदेश निचली अदालतों द्वारा जारी किया गया।

Places of Worship Act 1991

पूजा स्थल कानून-1991: इसका उद्देश्य क्या था?

पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम 1991 को तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव की सरकार ने राम मंदिर आंदोलन के दौरान लाया था। इस कानून का उद्देश्य था कि देश में धार्मिक स्थलों का मौजूदा स्वरूप बनाए रखा जाए और किसी भी स्थल का धार्मिक चरित्र न बदला जाए। इस कानून के तहत यह प्रावधान किया गया कि 15 अगस्त 1947 के बाद बने किसी भी धार्मिक स्थल को नहीं बदला जा सकता है। इसका मतलब यह था कि अगर कोई स्थल पहले किसी धर्म का था, तो उसे अब किसी और धर्म के स्थल में बदलने की इजाजत नहीं थी।

Places of Worship Act 1991: विवादों को सुलझाने वाला कानून, अब खुद क्यों बन गया है विवादों की जड़?

हाईकोर्ट ने इस कानून की व्याख्या करते हुए यह भी कहा कि पूजा स्थल अधिनियम में धार्मिक स्थल के चरित्र परिवर्तन पर रोक तो है, लेकिन यह तय नहीं किया गया कि यह धार्मिक चरित्र कैसे परिभाषित किया जाएगा। इसी कारण, ज्ञानवापी मस्जिद जैसे विवादित स्थलों का धार्मिक चरित्र क्या होगा, इसका फैसला अदालत पर छोड़ा गया है।

CJI की टिप्पणी और सर्वे आदेशों का सिलसिला

अब बात करते हैं सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस (CJI) डीवाई चंद्रचूड़ की उस टिप्पणी के बारे में, जिसे लेकर चर्चा हो रही है। 2022 में, सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने ज्ञानवापी मस्जिद मामले में एक मौखिक टिप्पणी की थी। उन्होंने कहा था कि पूजा स्थल अधिनियम, किसी धार्मिक संरचना के धार्मिक चरित्र की जांच पर रोक नहीं लगाता है। हालांकि, यह टिप्पणी केवल ज्ञानवापी मस्जिद से संबंधित थी और इसका मतलब यह था कि अदालत किसी भी धार्मिक स्थल के धार्मिक चरित्र पर सुनवाई कर सकती है।

सुप्रीम कोर्ट में 1 मार्च 2024 को ज्ञानवापी से संबंधित याचिकाओं की सुनवाई हुई थी, जिसमें मस्जिद समिति ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती दी थी। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने इस पर कोई रोक नहीं लगाई और मामले को लंबित रखा। इसके बाद से ही अन्य धार्मिक स्थलों पर सर्वेक्षण के आदेश देने का सिलसिला बढ़ गया।

यहां पर गौर करने वाली बात यह है कि सीजेआई की यह टिप्पणी सिर्फ ज्ञानवापी मस्जिद तक सीमित थी, लेकिन इसके बाद कई अन्य धार्मिक स्थलों पर सर्वे के आदेश जारी किए गए, जैसे कि संभल की जामा मस्जिद और अजमेर की दरगाह शरीफ।

निचली अदालतों के आदेश: क्या हैं इसके प्रभाव?

इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के बाद, निचली अदालतों ने कई धार्मिक स्थलों का सर्वे करने का आदेश दिया। उदाहरण के तौर पर, धार की भोजशाला और अजमेर की दरगाह शरीफ में सर्वे के आदेश दिए गए। इन आदेशों के बाद से यह सवाल उठने लगा कि क्या इन आदेशों के पीछे सुप्रीम कोर्ट या सीजेआई की कोई टिप्पणी है, या फिर यह सिर्फ हाईकोर्ट के आदेश का पालन है?

विशेषज्ञों के अनुसार, निचली अदालतों ने यह सर्वे आदेश हाईकोर्ट के फैसले के आधार पर दिए हैं। अदालत ने कहा था कि पूजा स्थल अधिनियम-1991 में धार्मिक स्थल के चरित्र परिवर्तन पर रोक तो है, लेकिन इसका निर्धारण कैसे होगा, यह अदालत को तय करना होगा। इसी कारण से, यह मामला अदालत के फैसले पर निर्भर करेगा।

पूजा स्थल कानून की वैधता पर सवाल

पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम 1991 की वैधता को लेकर भी सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं लंबित हैं। ये याचिकाएं इस कानून की संवैधानिकता पर सवाल उठाती हैं। कुछ लोग इसे अचानक लाया गया कानून मानते हैं, जो धार्मिक समानता के खिलाफ हो सकता है।

अगर सुप्रीम कोर्ट इस कानून को वैध ठहराता है, तो इसका मतलब यह होगा कि अदालतें भविष्य में धार्मिक स्थल के चरित्र पर कोई फैसला नहीं ले सकतीं। वहीं, अगर सुप्रीम कोर्ट इसे असंवैधानिक करार देती है, तो इस कानून के तहत किए गए सभी फैसले रद्द हो सकते हैं।

क्या होगा आगे?

अब जब पूजा स्थल अधिनियम की वैधता पर सुनवाई होनी है, तो यह देखना अहम होगा कि सुप्रीम कोर्ट क्या फैसला करता है। अगर सुप्रीम कोर्ट इस कानून को सही ठहराता है, तो जिन धार्मिक स्थलों पर सर्वे के आदेश दिए गए हैं, उनका भविष्य इस फैसले पर निर्भर करेगा। यानी अगर अदालत का फैसला आता है और अगर सर्वे के आदेश पहले हो चुके हैं, तो उनका परिणाम उलट भी सकता है।

इसके अलावा, अगले हफ्ते 4 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट में पूजा स्थल कानून-1991 से संबंधित याचिकाओं पर सुनवाई हो सकती है। इस मामले में मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाली पीठ सुनवाई करेगी। यह सुनवाई इस बात को तय करेगी कि इस कानून की वैधता को लेकर क्या कदम उठाए जाएं।

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ज्ञानवापी मस्जिद और उसका विवाद

ज्ञानवापी मस्जिद का विवाद 1919 से शुरू हुआ था। उस वक्त वाराणसी जिला कोर्ट में पहली याचिका दायर की गई थी। इसके बाद से यह मामला कई बार अदालतों में पहुंचा और समय-समय पर नए मोड़ लेते हुए विवाद बढ़ता गया।

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1980 के दशक में राम मंदिर आंदोलन के चलते इस मस्जिद के धार्मिक चरित्र पर सवाल उठाए गए। 1991 में हिंदू पक्ष ने दावा किया कि ज्ञानवापी मस्जिद एक मंदिर के स्थान पर बनाई गई थी और इसे फिर से मंदिर में तब्दील किया जाना चाहिए। इसके बाद से इस विवाद में कई अदालतों के आदेश, सर्वे और पुरातात्विक अध्ययन शामिल हुए, जो आज भी जारी हैं।