केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने रविवार, 22 दिसंबर को त्रिपुरा के बुरहा पाड़ा गांव का दौरा किया। इस दौरान उन्होंने ब्रू-रियांग समुदाय के लोगों से मुलाकात की और कहा, ‘मैं आप लोगों से भी ज्यादा खुश हूं।’ ब्रू-रियांग समुदाय पूर्वोत्तर भारत के त्रिपुरा राज्य के प्रमुख कबीले में से एक है। ये समुदाय त्रिपुरा के अलग-अलग इलाकों में बसे हुए हैं, और असम व मिजोरम राज्यों में भी इनकी आबादी पाई जाती है।
रियांग समुदाय कोकबोरोक भाषा से मिलती-जुलती रियांग बोली बोलते हैं, जिसे स्थानीय लोग “कौ ब्रू” के नाम से जानते हैं। इनकी भाषा की जड़ें तिब्बती-बर्मी परिवार से जुड़ी हुई हैं। रियांग लोग अर्ध-खानाबदोश जीवन जीते हैं और पहाड़ियों पर खेती करने के लिए “झूम खेती” का तरीका अपनाते हैं, जिसमें जमीन काटकर और जलाकर खेती की जाती है। इस विधि के कारण उन्हें हर कुछ साल में अपनी जगह बदलनी पड़ती है।
ब्रू-रियांग समुदाय 12 कुलों से मिलकर बना है
भारतीय संविधान में ब्रू-रियांग समुदाय को रियांग के नाम से जाना जाता है। यह समुदाय 12 कुलों से मिलकर बना है: मोलसोई, तुइमुई, मशा, तौमायाचो, एपेटो, वैरेम, मेस्का, रायकचक, चोरखी, चोंगप्रेंग, नौखम और याकस्टाम।
संविधान (अनुसूचित जनजाति) आदेश, 1950 के भाग XVII के अनुसार, रियांग जनजाति को कुकी जनजाति की उप-जनजाति माना गया है और यह मिजोरम की अनुसूचित जनजातियों में शामिल है।
ब्रू समुदाय बोडो भाषाई समूह से संबंध रखते हैं। इसी वजह से, संविधान (अनुसूचित जनजाति) के भाग XV- त्रिपुरा की धारा 16 के तहत त्रिपुरा के ब्रू/रियांग समुदाय को एक अलग जनजाति के रूप में मान्यता दी गई है।
जनवरी 2020 में ब्रू आदिवासियों का स्थायी पुनर्वास त्रिपुरा में किया गया
मिजोरम के तीन जिलों – ममित, लुंगलेई और कोलासिब – से ब्रू समुदाय के लोग 1997, 1998 और 2009 में जातीय हिंसा के कारण त्रिपुरा के उत्तरी जिलों में शरण लेने आ गए थे। इस हिंसा में ब्रू और मिजो समुदायों के बीच गंभीर तनाव हुआ था।
जनवरी 2020 में एक समझौता हुआ, जिसके तहत ब्रू आदिवासियों का स्थायी पुनर्वास त्रिपुरा में किया गया। यह समझौता भारत सरकार, त्रिपुरा और मिजोरम की सरकारों और ब्रू संगठनों के बीच हुआ। ब्रू (रियांग) आदिवासी समुदाय में लगभग 70% लोग हिंदू हैं, जबकि बाकी ईसाई धर्म का पालन करते हैं।