बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी (BLA) ने मंगलवार को जाफर एक्सप्रेस ट्रेन को हाईजैक कर लिया, जिसमें पाकिस्तानी नागरिकों के साथ कई सैनिक भी सवार थे। इस घटना ने एक बार फिर बलूचिस्तान के संघर्ष की याद दिला दी।
बलूचिस्तान पर पाकिस्तान का जबरन कब्जा और वहां के लोगों पर होने वाला अत्याचार कोई नई बात नहीं है। पाकिस्तान, जो खुद आतंकवाद का गढ़ माना जाता है, दशकों से बलूचिस्तान के लोगों को दबाने की कोशिश कर रहा है।
लेकिन क्या आप जानते हैं कि बलूचिस्तान कभी आजाद देश था? यह देश सिर्फ 25 दिनों तक ही आजाद रह पाया, उसके बाद पाकिस्तान ने उस पर जबरदस्ती कब्जा कर लिया। इस विलय में भारत की क्या भूमिका थी और बलूचिस्तान की आजादी की लड़ाई कैसे शुरू हुई, आइए इसे विस्तार से समझते हैं।
पहले बलूचिस्तान के इतिहास को समझें
बलूचिस्तान पाकिस्तान का सबसे बड़ा और खनिज संपदा से भरपूर इलाका है, लेकिन यहां के लोग सालों से दमन, भेदभाव और पाक सेना के अत्याचारों का सामना कर रहे हैं। यहां आजादी की मांग लगातार तेज होती जा रही है, जिससे यह सवाल उठता है कि क्या बलूचिस्तान भी बांग्लादेश की तरह पाकिस्तान से अलग हो सकता है? दरअसल, बलूचिस्तान का इतिहास भारत-पाकिस्तान के बंटवारे के समय से ही विवादों में रहा है।
1947 में स्वतंत्र रियासत था बलूचिस्तान
1947 में ब्रिटिश शासन खत्म होने के बाद बलूचिस्तान एक स्वतंत्र रियासत थी। यह कुछ संधियों (ट्रीटीज) के तहत उन प्रिंसली स्टेट्स में शामिल था, जिन पर ब्रिटिश क्राउन का सीधा नियंत्रण नहीं था। इन रियासतों को अपने फैसले खुद लेने की आजादी थी। उन्हें यह अधिकार था कि वे भारत या पाकिस्तान में शामिल हो सकते हैं या फिर एक स्वतंत्र देश बनने का फैसला भी कर सकते थे।
बलूचिस्तान के थे चार हिस्से
बलूचिस्तान के चार मुख्य हिस्से थे – कलात, खारान, लॉस बुला और मकरान। जब 1947 में भारत का बंटवारा हुआ, तो खारान, लॉस बुला और मकरान ने पाकिस्तान में शामिल होने का फैसला किया। लेकिन कलात के शासक, मीर अहमद खान, अलग रहना चाहते थे।
तीनों रियासतों के पाकिस्तान में जाने के बाद, कलात पर दबाव बढ़ने लगा। पाकिस्तान चाहता था कि कलात भी उसका हिस्सा बने, लेकिन मीर अहमद खान ने साफ इनकार कर दिया। उन्होंने पाकिस्तान को जवाब देते हुए कहा कि –
“हमारी संस्कृति अफगानिस्तान और ईरान से मिलती-जुलती है, न कि पाकिस्तान से। सिर्फ मुसलमान होने से हम पाकिस्तानी नहीं बन जाते।”
कलात का जबरन विलय
28 मार्च 1948 को जिन्ना ने पाकिस्तानी सेना को आदेश दिया कि वे कलात पर हमला करें। इसके बाद, मेजर जनरल अकबर खान के नेतृत्व में सात बलोच रेजिमेंट ने अगले ही दिन कलात पर कब्जा कर लिया। कलात के शासक (खान) को जबरदस्ती कराची ले जाया गया और वहां उनसे विलय पत्र पर दस्तखत करवा लिए गए।
इस तरह, महज 25 दिनों की आजादी के बाद, कलात को पाकिस्तान में मिला दिया गया, लेकिन यह विलय सेना के बल पर हुआ। इस वजह से बलूचिस्तान में आज भी कई संगठन आजादी की मांग करते रहते हैं। समय-समय पर यह विरोध भड़कता है, और पाकिस्तान अक्सर इसका आरोप भारत पर लगाता है।
बलूचिस्तान पाकिस्तान का सबसे बड़ा प्रांत है, जो देश के कुल क्षेत्रफल का 44% हिस्सा कवर करता है। लेकिन आबादी के लिहाज से यहां पाकिस्तान की कुल जनसंख्या का सिर्फ 5% लोग ही रहते हैं। यह इलाका खनिज संपदा से भरपूर है—यहां तांबा, सोना और यूरेनियम के बड़े भंडार हैं। पाकिस्तान के तीन बड़े नौसैनिक अड्डे भी यहीं स्थित हैं।
बलूचिस्तान का एक इलाका, चगाई, वही जगह है जहां पाकिस्तान ने अपना पहला परमाणु परीक्षण किया था और खुद को परमाणु ताकतवर देश घोषित किया था। लेकिन इसके बावजूद, यह क्षेत्र आज भी उपेक्षित है और यहां के लोग खुद को पाकिस्तान से अलग मानते हैं।
नैचुरल रिसोर्सेज भरपूर है बलूचिस्तान
पाकिस्तान के इस इलाके में संसाधनों की कोई कमी नहीं है। यहां से निकलने वाली गैस पूरे पाकिस्तान में घरों को रोशन करती है, लेकिन बलूचिस्तान के लोगों को इसका कोई फायदा नहीं मिलता। पाकिस्तान लंबे समय से इस इलाके को जबरदस्ती अपने नियंत्रण में रखे हुए है। यहां के लोग जब भी अपने हक की आवाज उठाते हैं, तो पाकिस्तानी सेना उन्हें दबाने के लिए ताकत का इस्तेमाल करती है।
बलोच आंदोलन को बार-बार कुचलने की कोशिश की गई है। 1950, 1970, 2006 और हाल के वर्षों में कई बार बलोच अलगाववादी आंदोलनों को सेना ने दबाने का प्रयास किया। लेकिन 2006 में बलोच नेता नवाब अकबर बुग्ती की हत्या ने इस विद्रोह को और भड़का दिया, जिससे यहां का विरोध और तेज हो गया।
जब बलोचों की हत्या करने लगी पाकिस्तानी सेना
पाकिस्तानी सेना पर बलोच लोगों को जबरन गायब करने और उनकी गुप्त हत्या के गंभीर आरोप लगे हैं। मार्च 2007 में, पाकिस्तान के मानवाधिकार आयोग ने सुप्रीम कोर्ट के सामने 148 बलोच लोगों की सूची पेश की थी, जो अचानक लापता हो गए थे। उनके परिवार वालों को भी उनकी कोई खबर नहीं थी।
हाल ही में, बलोच वॉइस एसोसिएशन ने संयुक्त राष्ट्र से अपील की है कि बलूचिस्तान में हो रहे जबरन गायब किए जाने के मामलों की गहराई से जांच की जाए और इसके दोषियों को सजा मिले। साल 2022 के आंकड़ों के मुताबिक, बलूचिस्तान से 787 लोग लापता हो चुके हैं, जिनमें 101 महिलाएं और बच्चे भी शामिल हैं।
यहां के हालात इतने खराब हो चुके हैं कि कई लोग इसे “पाकिस्तान का अगला बांग्लादेश” कहने लगे हैं। अब तो बलोच आर्मी ने खुलकर पाकिस्तानी सेना के खिलाफ जंग छेड़ दी है।
बलूचिस्तान की आर्थिक स्तिथि
बलूचिस्तान पाकिस्तान के कुल क्षेत्रफल का 44% हिस्सा है, लेकिन इसकी अर्थव्यवस्था में इसका योगदान सिर्फ 3% ही है। पाकिस्तान अपनी आधी गैस की जरूरत बलूचिस्तान से पूरी करता है, लेकिन वहां के लोग खुद बुनियादी सुविधाओं से वंचित हैं। पाक सेना की ज्यादती इतनी ज्यादा है कि बलूच लोगों को बिना किसी कानूनी प्रक्रिया के जेल में डाल दिया जाता है। कई बलोच नेता संयुक्त राष्ट्र और अंतरराष्ट्रीय संगठनों से पाकिस्तान के अत्याचारों की जांच की मांग करते रहे हैं।
हमले का चीन का क्या है एंगल?
चीन ग्वादर बंदरगाह का विकास कर रहा है, जो चीन-पाकिस्तान इकनॉमिक कॉरिडोर (CPEC) का हिस्सा है। लेकिन बलोच विद्रोहियों को लगता है कि इस प्रोजेक्ट से स्थानीय लोगों को कोई फायदा नहीं हो रहा, बल्कि उनके संसाधनों का दोहन किया जा रहा है। चीन की बढ़ती गतिविधियों के कारण वे ग्वादर पोर्ट और CPEC परियोजना पर हमले कर रहे हैं। उनका मानना है कि यह पाकिस्तान और चीन की विस्तारवादी नीति का हिस्सा है, जो उनके हितों के खिलाफ है।
भारत और बलूचिस्तान के रिश्ते
बलूचिस्तान का भारत से गहरा सांस्कृतिक और ऐतिहासिक रिश्ता रहा है। यहां हिंगलाज माता का प्रसिद्ध मंदिर स्थित है, जिसे 51 शक्ति पीठों में से एक माना जाता है। प्राचीन काल में बलूचिस्तान भारतीय सभ्यता का हिस्सा था और यहां बौद्ध धर्म के कई पुराने अवशेष मिले हैं। यह क्षेत्र कभी गांधार सभ्यता में शामिल था, जो भारत के 16 महाजनपदों में से एक था।
आज के समय में, बलूचिस्तान में आज़ादी की मांग को लेकर आंदोलन चल रहे हैं। बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी (BLA) जैसे संगठन पाकिस्तानी सेना पर हमले कर रहे हैं। पाकिस्तान सरकार का दावा है कि भारत इन विद्रोही संगठनों को समर्थन दे रहा है, हालांकि भारत इन आरोपों से इनकार करता है।