बांग्लादेश में तख्तापलट के बाद भी स्थिति अभी तक ठीक नहीं हो पाई है। वहीं बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने रविवार को कहा कि वह अपदस्थ प्रधानमंत्री शेख हसीना और अन्य ‘भगोड़ों’ को भारत से वापस लाने के लिए इंटरपोल से मदद मांगेगी। जिससे उन सभी पर मानवता के खिलाफ कथित अपराधों के लिए मुकदमा चलाया जा सके। बता दें कि पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना और उनकी पार्टी के नेताओं पर सरकार विरोधी छात्र आंदोलन को क्रूर तरीके से दबाने का आदेश देने का आरोप है।
बांग्लादेश में विरोध प्रदर्शन
गौरतलब है कि बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना अपनी सरकार के खिलाफ बड़े पैमाने पर छात्र नेतृत्व वाले विद्रोह के बीच पांच अगस्त को भारत चली गई थी। इस दौरान हुए विरोध प्रदर्शन में कई लोग घायल हुए हैं। बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के मुताबिक विरोध प्रदर्शनों के दौरान कम से कम 753 लोग मारे गए और हजारों लोग घायल हुए थे। वहीं बाद में यह आंदोलन बड़े पैमाने पर विद्रोह में तब्दील हो गया था, जिस कारण हसीना को पांच अगस्त को गुप्त रूप से भारत भागना पड़ा था। इस घटना को यूनुस ने मानवता के विरुद्ध अपराध और नरसंहार बताया था।
शेख हसीना के खिलाफ शिकायत दर्ज
बता दें बांग्लादेश में अक्टूबर के मध्य तक हसीना और उनकी पार्टी के नेताओं के खिलाफ मानवता के विरुद्ध अपराध और नरसंहार की 60 से ज्यादा शिकायतें दर्ज कराई गई थी। वहीं कानूनी मामलों के सलाहकार आसिफ नजरुल ने यहां अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण (आईसीटी) में जीर्णोद्धार की कार्य स्थिति का निरीक्षण करने के बाद संवाददाताओं को बताया था कि “इंटरपोल के जरिये बहुत जल्द ही रेड नोटिस जारी किया जाएगा। चाहे ये भगोड़े फासीवादी दुनिया में कहीं भी छिपे हों, उन्हें वापस लाया जाएगा और अदालत में जवाबदेह ठहराया जाएगा।
बांग्लादेश में क्यों हुई थी हिंसा?
बांग्लादेश को साल 1971 में आजादी मिली थी। वहीं आजादी के बाद से ही बांग्लादेश में आरक्षण व्यवस्था लागू है। इसके तहत स्वतंत्रता सेनानियों के बच्चों को 30 प्रतिशत, देश के पिछड़े जिलों के युवाओं को 10 प्रतिशत, महिलाओं को 10 प्रतिशत, अल्पसंख्यकों के लिए 5 प्रतिशत और दिव्यांगों के लिए एक प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान था। इस तरह बांग्लादेश में सरकारी नौकरियों में 56 प्रतिशत आरक्षण था। वहीं साल 2018 में बांग्लादेश के युवाओं ने इस आरक्षण के खिलाफ प्रदर्शन किया था। कई महीने तक चले प्रदर्शन के बाद बांग्लादेश सरकार ने आरक्षण खत्म करने का ऐलान किया था।
आरक्षण था मुख्य मुद्दा
बता दें कि बीते 5 जून को बांग्लादेश की सुप्रीम कोर्ट ने देश में फिर से आरक्षण की पुरानी व्यवस्था लागू करने का आदेश दिया था। शेख हसीना सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ अपील भी की थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने आदेश को बरकरार रखा था। इससे छात्र नाराज हो गए और उन्होंने विरोध प्रदर्शन शुरू किया था। बांग्लादेश के विश्वविद्यालयों से शुरू हुआ ये विरोध प्रदर्शन बाद में बढ़ते-बढ़ते हिंसा में तब्दील हो गया था।