अंतरिम सरकार के फैसलों से बांग्लादेश में मचा हड़कंप, लोकतंत्र पर संकट के बादल!
बांग्लादेश में हाल के दिनों में कुछ ऐसी घटनाएं हुई हैं, जिनसे देश के लोकतांत्रिक और धर्मनिरपेक्ष मूल्यों पर सवाल उठने लगे हैं। अंतरिम सरकार के कुछ फैसलों से लग रहा है कि देश धीरे-धीरे इस्लामिक कट्टरता की ओर बढ़ रहा है। आइए जानते हैं कि आखिर क्या हो रहा है बांग्लादेश में और क्यों चिंतित हैं वहां का अल्पसंख्यक समाज।
सेकुलरिज्म पर सवाल
बांग्लादेश के अटॉर्नी जनरल मोहम्मद असदुज्जमां ने हाल ही में एक चौंकाने वाला बयान दिया है। उन्होंने कहा कि देश में सेकुलरिज्म की कोई जरूरत नहीं है, क्योंकि यहां 90 फीसदी आबादी मुसलमानों की है। उन्होंने यह बात हाई कोर्ट में एक सुनवाई के दौरान कही। असदुज्जमां ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 8 में सेकुलरिज्म को रखना ठीक नहीं है। उनका यह बयान बांग्लादेश के संविधान में 2011 में किए गए 15वें संशोधन के खिलाफ था, जिसमें देश को धर्मनिरपेक्ष घोषित किया गया था।
यह बयान बांग्लादेश की राजनीति में एक बड़े बदलाव का संकेत दे रहा है। शेख हसीना की सरकार के हटने के बाद अंतरिम सरकार लगातार कट्टरपंथी रुख अपनाती दिख रही है। देश के संस्थापक शेख मुजीबुर रहमान के योगदान को कम करने से लेकर बंगाली राष्ट्रवाद को हटाने तक की बातें हो रही हैं। ऐसा लग रहा है कि सरकार पाकिस्तान की विचारधारा की ओर झुक रही है।
पत्रकारिता पर हमला
बांग्लादेश में प्रेस की आजादी भी खतरे में दिख रही है। अंतरिम सरकार ने हाल ही में 167 पत्रकारों की मान्यता रद्द कर दी है। इनमें कई अनुभवी पत्रकार और संपादक शामिल हैं। यह कदम तीन चरणों में उठाया गया है। इस फैसले से देश के मीडिया जगत में हड़कंप मच गया है।
बांग्लादेश की एडिटर्स काउंसिल ने इस फैसले की कड़ी निंदा की है। उनका कहना है कि यह कदम प्रेस की स्वतंत्रता के लिए खतरनाक है। काउंसिल ने चेतावनी दी है कि इससे सेंसरशिप बढ़ सकती है और लोकतांत्रिक माहौल कमजोर हो सकता है। उन्होंने कहा कि बिना किसी स्पष्ट आरोप या सबूत के पत्रकारों के प्रेस कार्ड रद्द करना एक खतरनाक मिसाल है।
राजनीतिक उथल-पुथल
बांग्लादेश में राजनीतिक हालात भी तनावपूर्ण हैं। अंतरिम सरकार ने कहा है कि वह पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना और उनकी पार्टी के नेताओं को भारत से वापस लाने के लिए इंटरपोल की मदद लेगी। हसीना पर छात्र आंदोलन के दमन का आरोप है। सरकार का दावा है कि इस दौरान 753 लोग मारे गए और हजारों घायल हुए।
हसीना की पार्टी के समर्थकों पर भी कार्रवाई हो रही है। उन्हें रैली निकालने की अनुमति नहीं दी जा रही और कई लोगों को हिरासत में लिया गया है। ऐसा लग रहा है कि देश की लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को कमजोर किया जा रहा है।
यह भी पढ़े :