Berlin Hindu Temple : जर्मनी में बनकर तैयार हुआ सबसे बड़ा मंदिर, दिवाली पर कर सकेंगे दर्शन…
Berlin Hindu Temple जर्मनी के बर्लिन शहर में सबसे बड़ा मंदिर बनकर अब तैयार हो गया है। इस मंदिर के बनने के पीछे सबसे बड़ा योगदान 70 वर्षीय शख्स विल्वनाथन कृष्णमूर्ति का है। उनके अथक प्रयासों के बाद 20 सालों में यह मंदिर बनकर तैयार हुआ है। हालांकि इस मंदिर में अभी किसी देवता को विराजित नहीं किया गया है। सूत्रों की माना जाए तो यह मंदिर के कपाट दिवाली पर खुलेंगे, जिसके बाद श्रृद्धालु दर्शन कर सकेंगे। कृष्णमूर्ति ने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि नवंबर में इस विशाल मंदिर का उद्घाटन समारोह आयोजित किया जा सकता है। उन्होंने मुस्कुराते हुए डीडब्ल्यू को बताया कि हम देवताओं का इंतजार कर रहे हैं।
50 साल पहले आए थे बर्लि
कृष्णमूर्ति ने एक मीडिया संस्थान को बताया कि वे लगभग 50 साल पहले अपनी पत्नी के साथ पश्चिमी बर्लिन आए थे। उनका सपना था कि वे अपने समुदाय के लिए यहां मंदिर (Berlin Hindu Temple) बनवाएं। इसके बाद उन्होंने मंदिर निर्माण के उद्देश्य से एक संस्था की स्थापना की। उन्होंने कहा, यह मंदिर मेरे लिए एक सपना है। कृष्णमूर्ति ने कहा कि एक हिंदू के रूप में मैं घर पर भी हर चीज का जश्न मना सकता हूं, लेकिन मैं इसे अन्य लोगों के साथ नहीं मना सकता। उन्होंने कहा कि दोस्तों के साथ जश्न मनाने और ऐसा करने का आनंद लेने के लिए एक जगह की आवश्यकता होती है।
2004 में एसोशिएसन का किया था गठन
कृष्णमूर्ति ने कहा कि 2004 में श्री-गणेश हिंदू मंदिर के निर्माण के लिए एसोसिएशन का गठन किया गया। इसके तुरंत बाद जिला प्राधिकरण ने एसोसिएशन को क्रुजबर्ग, न्यूकोलन और टेम्पेलहोफ जिलों के बीच, हसनहाइड पार्क के किनारे पर एक टुकड़ा भूमि प्रदान किया। कृष्णमूर्ति ने इसे भगवान् की ओर से दिया गया एक उपहार कहा। उन्होंने कहा कि नई सुविधा के लिए निर्माण कार्य 2007 में शुरू होने वाला था, लेकिन वह 2010 तक भी शुरू नहीं हो पाया। उन्होंने कहा कि कई महत्वपूर्ण समारोह हुए, इसे पूरा होने के लिए विभिन्न तिथियां निर्धारित की गईं। लेकिन वित्तीय परेशानियां थीं।
सदस्यों ने किया है दान
विल्वनाथन कृष्णमूर्ति ने कहा कि आर्थिक परेशानियां अभी भी हैं। इस मंदिर (Berlin Hindu Temple) को पूरी तरह से फाउंडेशन ने अपने फंड से बनाया है। इसके लिए सदस्यों स्वयं दान किया है। बर्लिन सीनेट, जिला प्राधिकरण या संघीय सरकार से कोई समर्थन नहीं मिला है। उन्होंने आगे कहा, “हम उधार पर मंदिर नहीं बनाना चाहते थे। हमारी आने वाली पीढ़ियों को अंततः इसका भुगतान करना होगा। इसलिए, हम दान पर निर्भर थे।”
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