राजस्थान (डिजिटल डेस्क): Bharat Ratna Karpoori Thakur: बिहार के वो मुख्यमंत्री जो चाहता था कि पिछड़े राजनीति के मंच पर सबसे आगे खड़े हों, वो मुख्यमंत्री जो ऐसा करने में भी सफल हुआ। नितीश और लालू यादव के राजनैतिक गुरु, बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री, जानिया कर्पुर ठाकुर (Bharat Ratna Karpoori Thakur) के बारे में जिन्हें हाल ही में भारत रत्न की घोषणा केंद्र सरकार ने की है।
राजनीति में दिखावे की नहीं, सत्य थी उनकी सादगी
बिहार छात्र आन्दोलन में 1974 में जेपी पूरे भारत में चमक रहे थे। पटना में हुई मीटिंग में कर्पूरी ठाकुर (Bharat Ratna Karpoori Thakur) भी शामिल हुए, परन्तु उन्हें देख कर सभी ने उनके फटे हुए कुर्ते पर तंज कसा। वहां दिल्ली से आए चंद्रशेखर ने सभी को अपनी जेब से पैसे निकलने को कहा और वो पैसे लेकर कर्पूरी ठाकुर को दे दिए। पैसे देते हुए कहा कि कुछ नए कुर्ते ले लीजिए।
बिहार में बदलाव का स्तंभ बने
बिहार में गिने चुने मेट्रिक पास के बीच पहले दर्जे यानी फर्स्ट डिविज़न से पास हुए थे कर्पूरी (Bharat Ratna Karpoori Thakur)। परन्तु तत्कालीन समय में सामन्ती सोच और पैसों ओहदों के प्रभुत्व से समाज अपाहिज होता जा रहा था। इसी बात से प्रभावित हो कर पिछड़े समाज को पिछड़ा न रहने देने की ठान ली। बिहार की राजनीति में बदलाव का एक सक्षम चेहरा बनने के बाद भी सादगी की मिसाल बने रहे कर्पूरी ठाकुर।
कर्पूरी ठाकुर का दिलचस्प राजनैतिक सफ़र
बिहार के समस्तीपुर के पितौंझिया नाम के गाँव में 24 जनवरी 1924 में जन्म हुआ। नाइ समाज से यानी अति पिछड़ा वर्ग में जन्म लेने के बाद भी बिहार की राजनीति का सादगी भरा पर प्रभावी चेहरा बन कर उभरे। पहली बार बिहार विधानसभा चुनाव जीत कर विधायक 1952 में बने और इसके बाद कभी कोई विधानसभा चुनाव नहीं हारे। बल्कि इसके बाद बिहार के दो बार मुख्यमंत्री और एक बार उपमुख्यमंत्री (Bharat Ratna Karpoori Thakur) पद की शोभा बढाई।
पिछड़ों के लिए निर्णय लिए, मिसाल बन गए
पहली बार शिक्षा मंत्री बनने के बाद कर्पूरी ठाकुर (Bharat Ratna Karpoori Thakur) ने अंग्रेजी भाषा की अनिवार्यता को खत्म कर दिया। इसके बाद इस निर्णय के लिए उनको बहुत झेलना भी पड़ा पर वो अपने निर्णय पर अडिग रहे। इसके अलावा उन्होने पिछड़ों के लिए 27 प्रतिशत तक आरक्षण की घोषणा की। पढाई के महत्व को समझने वाले कर्पूरी ठाकुर ने मेट्रिक्स तक की शिक्षा में फीस को सिरे से माफ़ कर दिया था। कर्पूरी ठाकुर पहले ऐसे मुख्यमंत्री बने जिसने शिक्षा के अधिकार को लेकर इतना बड़ा कदम उठाया था।
40 दशक के राजनैतिक सफ़र में एक इंच ज़मीन हिस्से नहीं आई
राजनीति में ईमानदारी की मिसाल तय करने में कर्पूरी ठाकुर (Bharat Ratna Karpoori Thakur) का इतना बड़ा नाम ऐसे ही नहीं हो गया। जब 17 फरवरी 1988 को उनका देहांत हुआ तो अपने बच्चों को देने के लिए विरासत में कोई ज़मीन नहीं थी। पटना में तो दूर उनके पैतृक गाँव तक में ज़मीन का छोटा सा टुकड़ा तक नहीं था कर्पूरी के नाम। फटे हुए कोट को पहन कर विदेश जाने की कहानी से आज भी कई लोग उनकी सादगी और इमानदारी की तारीफ करते हैं।
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