Bhaum Pradosh Vrat: प्रत्येक महीने के शुक्ल और कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को प्रदोष का व्रत किया जाता है। उल्लेखनीय है कि जो भी प्रदोष व्रत की तिथि मंगलवार के दिन आती है, तो उसे भौम प्रदोष व्रत के नाम से जाना जाता है। भौम प्रदोष व्रत( Bhaum Pradosh Vrat) भगवान शिव को समर्पित एक पवित्र उपवास दिवस है, जो मंगलवार (भौमवार) को प्रदोष काल के दौरान मनाया जाता है, जो सूर्यास्त से पहले का गोधूलि काल है। इस साल यह व्रत 11 मार्च, मंगलवार को पड़ रहा है। यह शुभ व्रत दैवीय आशीर्वाद, स्वास्थ्य, समृद्धि और ग्रह दोषों से राहत देता है, खासकर मंगल ग्रह से जुड़े दोषों से।
भौम प्रदोष व्रत का महत्व
“प्रदोष” शब्द गोधूलि बेला का प्रतीक है, जो हिंदू अनुष्ठानों में एक महत्वपूर्ण अवधि है। जब प्रदोष व्रत( Bhaum Pradosh Vrat) मंगलवार के दिन पड़ता है, तो इसे भौम प्रदोष के नाम से जाना जाता है, जो मांगलिक दोष, वित्तीय कठिनाइयों और स्वास्थ्य समस्याओं से राहत चाहने वालों के लिए विशेष रूप से शक्तिशाली है। मंगल ग्रह मंगलवार को नियंत्रित करता है और इस दिन शिव के साथ इसका संबंध इसके आध्यात्मिक लाभों को बढ़ाता है।
ऐसा माना जाता है कि इस व्रत को करने से व्यक्तिगत और व्यावसायिक जीवन (Bhaum Pradosh Vrat 2025) में आने वाली बाधाओं को दूर करता है । साथ ही ये किसी की कुंडली में मंगल के अशुभ प्रभावों को दूर करने में सहायता करने , शारीरिक और मानसिक कल्याण करने , घर में समृद्धि, सुख और शांति प्रदान करने और पापों और नकारात्मक कर्मों से मुक्ति प्रदान कराने में विशेष फलदायी है।
भौम प्रदोष व्रत के पीछे की पौराणिक कथा
प्रदोष व्रत के साथ कई किंवदंतियाँ जुड़ी हुई हैं, जो भगवान शिव की भक्ति के महत्व (Bhaum Pradosh Vrat date) पर जोर देती हैं। सबसे प्रसिद्ध कहानियों में से एक समुद्र मंथन, समुद्र मंथन के इर्द-गिर्द घूमती है।
देवताओं और असुरों द्वारा अमृत प्राप्त करने के लिए किए गए महान ब्रह्मांड मंथन के दौरान, हलाहल नामक एक घातक जहर निकला, जो पूरे ब्रह्मांड को नष्ट करने की धमकी दे रहा था। इस आपदा से परेशान होकर देवता और असुर दोनों ने भगवान शिव (Bhaum Pradosh Vrat importance) से मदद मांगी। करुणावश, शिव ने ब्रह्मांड की रक्षा के लिए जहर पी लिया। हालाँकि, उन्होंने इसे निगलने के बजाय इसे अपने गले में दबा लिया, जिससे यह नीला हो गया, जिससे इसका नाम नीलकंठ (नीले गले वाला) पड़ गया।
ऐसा माना जाता है कि प्रदोष काल के दौरान दिव्य प्राणियों ने शिव से प्रार्थना की और उन्होंने उन्हें अपना दिव्य आशीर्वाद प्रदान किया। यही कारण है कि भक्त अपने जीवन से नकारात्मकता और कष्टों को दूर करने के लिए उनकी कृपा पाने के लिए प्रदोष व्रत रखते हैं।
भौम प्रदोष व्रत की पूजा विधि
इस दिन भक्त सख्त या आंशिक उपवास रखते हैं, पूरे दिन केवल फल, दूध या पानी (Bhaum Pradosh Vrat katha) का सेवन करते हैं, शाम को प्रार्थना करने के बाद इसे तोड़ते हैं। शरीर और आत्मा को शुद्ध करने के लिए सुबह और फिर सूर्यास्त से पहले स्नान करने की सलाह दी जाती है। मुख्य पूजा प्रदोष काल के दौरान की जाती है, जो सूर्यास्त से लगभग डेढ़ घंटे पहले शुरू होती है। शिव लिंग को दूध, जल, शहद, दही और घी से स्नान कराया जाता है। भक्त बेल पत्र, सफेद फूल, चंदन का लेप और धूप चढ़ाते हैं। इस दिन महा मृत्युंजय मंत्र का जाप और ओम नमः शिवाय का जाप करना अत्यधिक लाभकारी माना जाता है। माना जाता है कि मंदिरों और घरों (Bhaum Pradosh Vrat pujan vidhi) में तिल के तेल से दीपक जलाने से भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त होता है। इस दिन जरूरतमंदों को भोजन, कपड़े या आर्थिक मदद देना एक धार्मिक कार्य माना जाता है।
भौम प्रदोष व्रत के ज्योतिषीय लाभ
मंगल दोष को शांत करता है: जो लोग अपनी कुंडली में मांगलिक दोष या मंगल से संबंधित चुनौतियों से पीड़ित हैं, वे इस व्रत को करने से राहत का अनुभव कर सकते हैं।
शक्ति और साहस में सुधार: मंगल ग्रह ऊर्जा और जीवन शक्ति का ग्रह है। इस व्रत को करने से इच्छाशक्ति और दृढ़ संकल्प मजबूत होता है।
वित्तीय स्थिरता को बढ़ाता है: व्रत नकारात्मक ग्रहों के प्रभाव को कम करके वित्तीय ऋण और अस्थिरता को दूर करने में मदद करता है।
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