सुप्रीम कोर्ट ने तिरुपति प्रसादम विवाद की जांच के लिए एक नई पांच सदस्यीय एसआईटी का गठन किया है। कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि राज्य की एसआईटी को अब खत्म कर दिया गया है और इस नए दल में सीबीआई के दो अधिकारी, राज्य पुलिस के दो सदस्य और एक एफएसएसएआई अधिकारी शामिल होंगे। यह फैसला उन आरोपों के बाद लिया गया है जो पूर्व मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने लगाए थे, जिसमें उन्होंने कहा था कि तिरुपति में लड्डू बनाने में जानवरों की चर्बी का इस्तेमाल किया गया।
राजनीतिक नाटक से बचने की चेतावनी
सुनवाई के दौरान जस्टिस गवई ने यह स्पष्ट किया कि वे नहीं चाहते कि यह मामला राजनीतिक नाटक का हिस्सा बने। उन्होंने कहा कि एक स्वतंत्र निकाय के द्वारा जांच कराई जाने से सभी पक्षों में विश्वास रहेगा। अदालत ने कहा कि जब जांच निष्पक्ष होगी, तो किसी को भी कोई आपत्ति नहीं होगी। इससे पहले की सुनवाई में, कोर्ट ने जस्टिस गवई की अगुवाई में यह सुनिश्चित किया कि जांच की प्रक्रिया को गंभीरता से लिया जाए।
पिछली सुनवाई में क्या हुआ?
पिछली सुनवाई में सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत के समक्ष अपना पक्ष रखा। उन्होंने कहा कि अगर राज्य सरकार की एसआईटी में कोई खामी नहीं है, तो उन्हें भरोसा है कि यह मामला सुलझ जाएगा। हालांकि, जस्टिस गवई ने सुझाव दिया कि स्वतंत्र एजेंसी की जांच अधिक उपयुक्त होगी। यह सवाल उठाते हुए कि क्या राज्य की एसआईटी वास्तव में पर्याप्त है, उन्होंने कहा कि अगर इस मामले में सच्चाई है, तो यह गंभीर है और इसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
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एसजी ने सुझाव दिया कि एसआईटी की निगरानी एक वरिष्ठ केंद्रीय अधिकारी द्वारा की जाए, जिससे जांच की निष्पक्षता और बढ़ जाएगी। जस्टिस गवई ने यह भी कहा कि अगर राज्य के मुख्यमंत्री ने जांच में सहयोग करने का संकेत दिया है, तो यह भी सकारात्मक है।
तिरुपति लड्डू विवाद कैसे शुरू हुआ?
यह विवाद तब शुरू हुआ जब चंद्रबाबू नायडू ने आरोप लगाया कि वर्तमान सरकार के दौरान तिरुपति में लड्डू बनाने में जानवरों की चर्बी का उपयोग किया गया। उनके इस बयान ने राजनीतिक हलचल मचा दी और यह मुद्दा तूल पकड़ गया। नायडू के आरोपों ने कई याचिकाओं का आधार बनाया, जो सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की गईं, जिनमें प्रमुख रूप से सुब्रमण्यम स्वामी, राज्यसभा सांसद वाईवी सुब्बा रेड्डी और इतिहासकार विक्रम संपत शामिल हैं।
इन याचिकाओं में मांग की गई है कि मामले की निष्पक्ष और स्वतंत्र जांच की जाए। 30 सितंबर को हुई सुनवाई में, सुप्रीम कोर्ट ने सख्ती से यह कहा कि इस मामले में कम से कम भगवान को राजनीति से दूर रखा जाना चाहिए।
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